Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 50 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 50/ मन्त्र 10
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - इन्द्राबृहस्पती छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    इन्द्र॑श्च॒ सोमं॑ पिबतं बृहस्पते॒ऽस्मिन्य॒ज्ञे म॑न्दसा॒ना वृ॑षण्वसू। आ वां॑ विश॒न्त्विन्द॑वः स्वा॒भुवो॒ऽस्मे र॒यिं सर्व॑वीरं॒ नि य॑च्छतम् ॥१०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्रः॑ । च॒ । सोम॑म् । पि॒ब॒त॒म् । बृ॒ह॒स्प॒ते॒ । अ॒स्मिन् । य॒ज्ञे । म॒न्द॒सा॒ना । वृ॒ष॒ण्व॒सू॒ इति॑ वृषण्ऽवसू । आ । वा॒म् । वि॒श॒न्तु॒ । इन्द॑वः । सु॒ऽआ॒भुवः॑ । अ॒स्मे इति॑ । र॒यिम् । सर्व॑ऽवीरम् । नि । य॒च्छ॒त॒म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रश्च सोमं पिबतं बृहस्पतेऽस्मिन्यज्ञे मन्दसाना वृषण्वसू। आ वां विशन्त्विन्दवः स्वाभुवोऽस्मे रयिं सर्ववीरं नि यच्छतम् ॥१०॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रः। च। सोमम्। पिबतम्। बृहस्पते। अस्मिन्। यज्ञे। मन्दसाना। वृषण्वसू इति वृषण्वसू। आ। वाम्। विशन्तु। इन्दवः। सुऽआभुवः। अस्मे इति। रयिम्। सर्वऽवीरम्। नि। यच्छतम् ॥१०॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 50; मन्त्र » 10
    अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 27; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ राजानः कीदृशो भवेयुरित्याह ॥

    अन्वयः

    हे बृहस्पते ! इन्द्रश्च मन्दसाना वृषण्वसू युवामस्मिन् यज्ञे सोमं पिबतं यथा स्वाभुव इन्दवो वामा विशन्तु तथाऽस्मे सर्ववीरं रयिं युवां नियच्छतम् ॥१०॥

    पदार्थः

    (इन्द्रः) परमैश्वर्य्यवान् (च) (सोमम्) सदोषधिरसम् (पिबतम्) (बृहस्पते) पूर्णविद्वन् ! (अस्मिन्) (यज्ञे) राज्यपालनाख्ये व्यवहारे (मन्दसाना) प्रशंसितावानन्दितौ (वृषण्वसू) यौ वृष्णो बलिष्ठान् वीरान् वासयतस्तौ (आ) (वाम्) युवाम् (विशन्तु) प्राप्नुवन्तु (इन्दवः) ऐश्वर्य्याणि (स्वाभुवः) ये स्वयं भवन्ति ते (अस्मे) अस्मभ्यम् (रयिम्) धनम् (सर्ववीरम्) सर्वे वीरा यस्मात्तम् (नि) नितराम् (यच्छतम्) प्रदद्यातम् ॥१०॥

    भावार्थः

    हे राजराजोपदेशकौ ! युवां कदाचिदपि मादकद्रव्यं मा सेवेथां राज्यपालनेन सत्योपदेशेनैव प्रजाः सम्पाल्य सदैवानन्देतमस्मभ्यं सर्वैश्वर्य्यं प्रदद्यातम् ॥१०॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    अब राजा कैसे हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (बृहस्पते) पूर्णविद्वन् ! (च) और (इन्द्रः) अत्यन्त ऐश्वर्य्यवाला (मन्दसाना) प्रशंसित और आनन्दयुक्त (वृषण्वसू) बलिष्ठ वीर पुरुषों को निवास करानेवाले आप दोनों (अस्मिन्) इस (यज्ञे) राज्यपालननामक व्यवहार में (सोमम्) उत्तम ओषधियों के रस का (पिबतम्) पान करो और जैसे (स्वाभुवः) आप होनेवाले (इन्दवः) ऐश्वर्य्य (वाम्) आप दोनों को (आ, विशन्तु) प्राप्त हों, वैसे (अस्मे) हम लोगों के लिये (सर्ववीरम्) सब वीर हों जिससे उस (रयिम्) धन को आप दोनों (नि, यच्छतम्) उत्तम प्रकार दीजिये ॥१०॥

    भावार्थ

    हे राजा और राजोपदेशको ! तुम कभी मदकारक वस्तु का सेवन न करो और राज्यपालन तथा सत्योपदेश से ही प्रजाओं का पालन कर सदैव आनन्दित होओ और हम लोगों के लिये सब ऐश्वर्य्य अच्छे प्रकार देओ १०॥ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    ब्राह्मण + क्षत्रिय [बृहस्पति+इन्द्र]

    पदार्थ

    [१] (अस्मिन् यज्ञे) = इस राष्ट्र-यज्ञ में हे (बृहस्पते) = ज्ञान के स्वामिन् ब्राह्मण! तू (च इन्द्रः) = और बल के कर्मों को करनेवाला इन्द्र [राजा] दोनों ही (सोमं पिबतम्) = सोम का पान करनेवाले होओ। (मन्दसाना) = तुम दोनों हर्ष का अनुभव करो और (वृषण्वसू) = शक्तिशाली धनवाले व प्रजा पर धन की वर्षा करनेवाले होओ। [२] (वाम्) = आप दोनों को (इन्दवः) = ये सोमकण (आविशन्तु) = आविष्ट हों, जो कि (स्वाभुव:) = [सुष्ठु सर्वतो भवन्ति] सम्यक् सब अंगों में व्याप्त होनेवाले हैं। आप (अस्मे) = हम सब के लिए (सर्ववीरम्) = सब वीरताओं से युक्त (रयिम्) = धन को (नियच्छतम्) = देनेवाले होइये ।

    भावार्थ

    भावार्थ- राष्ट्र में ब्राह्मण व क्षत्रिय सोम का [वीर्य का] रक्षण करनेवाले हों। ऐसे ही ब्राह्मण व क्षत्रिय [पुरोहित व राजा] प्रजाओं को आनन्दित व धन्य बना सकते हैं।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    और परमेश्वर का वर्णन

    भावार्थ

    (इन्द्रः च बृहस्पते) हे इन्द्र ऐश्वर्यवन्! हे वेदवाणी और महान् राष्ट्र के पालक ! आप दोनों (अस्मिन् यज्ञे) इस परस्पर संग, सेवन, सहयोग और राज्यकार्य में (मन्दसाना) हर्ष, प्रसाद अनुभव करते हुए (वृषण्वसू) ज्ञान धन आदि के वर्षाने वाले और बलवान् प्रबन्धक पुरुष को राज्य में बसाने वाले एवं बसे प्रजा जनों के बीच स्वयं बलवान् होकर (सोमं पिबतं) पुत्र वा शिष्यवत् राज्य का पालन करें। और ओषधिरस के समान अति स्वल्प मात्रा में और गुणकारी रूप से (पिबतं) उसका उपभोग करो । आप दोनों (अस्मे) हमें (सर्ववीरं) सब प्रकार के वीरों और पुत्रों से युक्त (रयिं) धन को (नि यच्छतम्) प्रदान करो और हमारे उक्त राष्ट्र धन की नियम व्यवस्था करो, उसको नष्ट न होने दो। और (स्वाभुवः) स्वयं आपसे आप उत्पन्न होने वाले (इन्दवः) ऐश्वर्य और प्रेमयुक्त समृद्ध प्रजाजन (वां विशन्तु) तुम दोनों को प्राप्त करें, आप दोनों के अधीन रहें । अध्यात्म में—इन्द्र जीव, बृहस्पति प्रभु, वे दोनों वसु अर्थात् लोकों और प्राणों में सुख आनन्दादि का वर्षण करने से ‘वृषण्वसू’ हैं ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः॥ १-९ बृहस्पतिः। १०, ११ इन्द्राबृहस्पती देवते॥ छन्द:-१—३, ६, ७, ९ निचृत्त्रिष्टुप् । ५, ४, ११ विराट् त्रिष्टुप् । ८, १० त्रिष्टुप ॥ धैवतः स्वरः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे राजा व राजोपदेशकांनो ! तुम्ही कधी मादक पदार्थांचे सेवन करू नका व राज्यपालन आणि सत्योपदेशाने प्रजेचे पालन करा व सदैव आनंदात राहा. आम्हाला सर्व प्रकारचे ऐश्वर्य द्या. ॥ १० ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Brhaspati, master of the knowledge of omniscience, and Indra, lord ruler of the world, both rejoicing and giving showers of wealth and comfort to the people, drink the soma of bliss in this yajna of human excellence. O lords of glory in your own right, may the majesty and sublimity of divinity bless you both and may you create and give us the wealth and honour of a brave and perfect nation with a brave young generation.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The qualities of an ideal king are told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O great scholar and preceptor of the king let the king and you drink the juice of the invigorating herbs like soma and be delighted in this Yajna in the form of the proper protection of the State; both of you being admired and inhabiting the heroic persons. Let well earned riches enter into you and give us wealth which makes all heroes.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O king and preceptor or preacher of the king ! never take intoxicant. Be our delight by preserving the State through the preaching of truth to all people and grant us all kinds of prosperity.

    Foot Notes

    (यज्ञे ) राज्यपालनाख्ये व्यवहारे । = In the dealing of the sustenancer of the State. (मन्दसाना) प्रष्ण्सितावानन्दितौ (मन्दसाना) मदि-स्तुतिमोदमदस्वप्नकान्ति गतिषु अत्र स्तुति मोदार्थग्रहणम् = Admire and delighted, full-of bliss. (इन्दव:) ऐश्वर्य्याणि = Wealth,

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top