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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 57 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 57/ मन्त्र 4
    ऋषिः - श्यावाश्व आत्रेयः देवता - मरुतः छन्दः - विराड्जगती स्वरः - निषादः

    वात॑त्विषो म॒रुतो॑ व॒र्षनि॑र्णिजो य॒माइ॑व॒ सुस॑दृशः सु॒पेश॑सः। पि॒शङ्गा॑श्वा अरु॒णाश्वा॑ अरे॒पसः॒ प्रत्व॑क्षसो महि॒ना द्यौरि॑वो॒रवः॑ ॥४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वात॑ऽत्विषः । म॒रुतः॑ । व॒र्षऽनि॑र्निजः । य॒माःऽइ॑व । सुऽस॑दृशः । सु॒ऽपेश॑सः । पि॒शङ्ग॑ऽअश्वाः । अ॒रु॒णऽअ॑स्वाः । अ॒रे॒पसः॑ । प्रऽत्व॑क्षसः । म॒हि॒ना । द्यौःऽइ॑व । उ॒रवः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वातत्विषो मरुतो वर्षनिर्णिजो यमाइव सुसदृशः सुपेशसः। पिशङ्गाश्वा अरुणाश्वा अरेपसः प्रत्वक्षसो महिना द्यौरिवोरवः ॥४॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वातऽत्विषः। मरुतः। वर्षऽनिर्निजः। यमाःऽइव। सुऽसदृशः। सुऽपेशसः। पिशङ्गऽअश्वाः। अरुणऽअश्वाः। अरेपसः। प्रऽत्वक्षसः। महिना। द्यौःऽइव। उरवः ॥४॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 57; मन्त्र » 4
    अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 21; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे विद्वांसो ! ये यमाइव वातत्विषो वर्षनिर्णिजः सुसदृशः सुपेशसः पिशङ्गाश्वा अरेपसोऽरुणाश्वा प्रत्वक्षसो महिना द्यौरिवोरवो मरुतः स्युस्तान् सत्कुरुत ॥४॥

    पदार्थः

    (वातत्विषः) वातस्य त्विट् कान्तिर्येषान्ते (मरुतः) मनुष्याः (वर्षनिर्णिजः) ये वर्षं निर्नेनिजन्ति ते (यमाइव) न्यायाधीशा इव (सुसदृशः) सम्यक्तुल्यगुणकर्मस्वभावाः (सुपेशसः) सुष्ठु पेशो रूपं सुवर्णं वा येषान्ते (पिशङ्गाश्वाः) आ पीतवर्णा अश्वा येषान्ते (अरुणाश्वाः) रक्तवर्णाऽश्वाः (अरेपसः) अनपराधिनः (प्रत्वक्षसः) प्रकर्षेण सूक्ष्मकर्त्तारः (महिना) महिम्ना (द्यौरिव) सूर्य्य इव (उरवः) बहवः ॥४॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः । ये मनुष्याः सूर्य्यवदात्मप्रकाशा न्यायाधीशवद् व्यवहर्त्तारो विमानादियानयुक्ताः सन्ति तान् सततं सत्कुरुत ॥४॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे विद्वान् जनो ! जो (यमाइव) न्यायाधीशों के सदृश (वातत्विषः) वायु की कान्ति के समान कान्ति जिनकी ऐसे (वर्षनिर्णिजः) वर्ष का निर्णय करनेवाले (सुसदृशः) उत्तम प्रकार तुल्य गुण, कर्म और स्वभाव युक्त (सुपेशसः) उत्तम तुल्य रूप वा सुवर्ण जिनका वे (पिशङ्गाश्वाः) सब ओर से पीले वर्ण के घोड़ोंवाले (अरेपसः) अपराध से रहित (अरुणाश्वाः) रक्त वर्ण के घोड़ोंवाले (प्रत्वक्षसः) अत्यन्त सूक्ष्म करनेवाले (महिना) महिमा से (द्यौरिव) सूर्य्य के सदृश (उरवः) बहुत (मरुतः) मनुष्य होवें, उनका सत्कार करो ॥४॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जो मनुष्य सूर्य्य के सदृश आत्मा से प्रकाशित और न्यायाधीशों के सदृश व्यवहार करनेवाले विमान आदि वाहन से युक्त हैं, उनका निरन्तर सत्कार करो ॥४॥

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    विषय

    उनके कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    भा०- ( वात-त्विष: ) वायु वा प्राण के समान विद्युत् वा उत्तम तीक्ष्ण कान्ति को धारण करने वाले, ( वर्ष-निर्णिजः ) वर्षों तक शुद्ध आचरण से अपने को शुद्ध करने हारे जलों द्वारा पदाभिषिक्त ( यमाः इवः ) संयम के पालक तपस्वियों के समान, इन्द्रियों के नियन्ता ( सु-सदृशः) उत्तम रीति से सबको एक समान देखने वाले, (सु-पेशसः) उत्तम रूपवान्, (पिशङ्गाश्वाः ) पीले घोड़ों वाले, ( अरुणाश्वाः ) और लाल घोड़ों वाले, ( प्र-त्वक्षसः ) अच्छी प्रकार शत्रुओं का छेदन भेदन करने में समर्थ और (महिना) अपने महान् सामर्थ्य से ( द्यौः इव ) सूर्य, अन्तरिक्ष और पृथिवी वा नायक के तुल्य ( उरवः ) महान् पराक्रमी हों । और वे –

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    श्यावाश्व आत्रेय ऋषिः ॥ मरुतो देवताः ॥ छन्द:- १, ४, ५ जगती । २, ६ विराड् जगती । ३ निचृज्जगती । ७ विराट् त्रिष्टुप् । ८ निचृत्-त्रिष्टुप ॥ अष्टर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    'वर्षनिर्णिजो' मरुतः

    पदार्थ

    [१] (मरुतः) = ये वीर सैनिक (वातत्विषः) = [वातेन त्विट् येषां] गति के द्वारा दीप्तवाले हैं। (वर्षनिर्णिज:) = देश का शोधन करनेवाले हैं। शत्रुओं को नष्ट करके देश को मानो शत्रु मलशून्य कर देते हैं। ये सैनिक (यमाः इव) = एक साथ उत्पन्न होनेवालों के समान (सुसदृश:) = परस्पर समान प्रतीत होते हैं अपने वेश में एक जैसे लगते हैं। (सुपेशसः) = बड़ी उत्तम आकृतिवाले हैं। [२] (पिशंगाश्वाः) = [reddish] रक्तवर्ण के घोड़ोंवाले (अरुणाश्वाः) = अरुण वर्ण के तेजस्वी घोड़ोंवाले (अरेपसः) = लोभ व कायरता आदि दोषों से शून्य (प्रत्वक्षसः) = शत्रुओं को छील डालनेवाले ये मरुत् (महिना) = अपनी महिमा से (द्यौः इव उरवः) = द्युलोक के समान विशाल हैं। इनकी महिमा सर्वत्र फैल जाती है।

    भावार्थ

    भावार्थ- समान वेशवाले वायुवत् तीव्र गतिवाले वीर सैनिक शुत्रओं को नष्ट करके देश को शुद्ध कर डालते हैं।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. जी माणसे सूर्याप्रमाणे आत्मप्रकाशी न्यायाधीशाप्रमाणे व्यवहारतज्ज्ञ, विमान इत्यादी यानांनी सज्ज असतात त्यांचा सतत सत्कार करा. ॥ ४ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    The Maruts command the fury and splendour of the winds. Cleansed and anointed by holy water, they replete the showers of love and justice all the year round. They are highly impressive and handsome in body and mind as self-controlled people are. They command the moderate yellow as well as the intense red flames of the yajnic fires of life’s dynamics. Untouched by sinful involvements, refined and discriminative in thought and judgement, they are refulgent like the sun and large- hearted like space by virtue of their innate greatness.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The Same subject of Maruts is dealt.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O highly learned persons! honour the heroes who are blazing like the wind as of the administrators of justice and, purifiers of the rain (through the Yajnas). They like (help Ed.) one another in their merits, actions and temperaments, lovely or well adorned with gold. They have yellow horses or red steeds, are faultless or sinless, endowed with exceeding vigorous to analyse all objects. In greatness like the sun, they are multiplied in many numbers.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    The upamalankara or simile is used in the mantra. Always honour those brave persons who are glorious like the sun (with the light of their soul), just in dealing like the judges and possessors of the aircraft and other vehicles.

    Foot Notes

    (सुपेशसः) सुष्ठु पेशो रूपं सुवर्णा वा येषान्ते । पेश इति रूपनाम (NG 3, 7) पेश इनि हिरण्यनाम (NG 1, 2) = Lovely or decked with gold. (द्यौरिव) सूर्य्य इव। = Like the sun.

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