ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 23/ मन्त्र 2
अया॑मि॒ घोष॑ इन्द्र दे॒वजा॑मिरिर॒ज्यन्त॒ यच्छु॒रुधो॒ विवा॑चि। न॒हि स्वमायु॑श्चिकि॒ते जने॑षु॒ तानीदंहां॒स्यति॑ पर्ष्य॒स्मान् ॥२॥
स्वर सहित पद पाठअया॑मि । घोषः॑ । इ॒न्द्र॒ । दे॒वऽजा॑मिः । इ॒र॒ज्यन्त॑ । यत् । शु॒रुधः॑ । विऽवा॑चि । न॒हि । स्वम् । आयुः॑ । चि॒कि॒ते । जने॑षु । तानि॑ । इत् । अंहां॑सि । अति॑ । प॒र्षि॒ । अ॒स्मान् ॥
स्वर रहित मन्त्र
अयामि घोष इन्द्र देवजामिरिरज्यन्त यच्छुरुधो विवाचि। नहि स्वमायुश्चिकिते जनेषु तानीदंहांस्यति पर्ष्यस्मान् ॥२॥
स्वर रहित पद पाठअयामि। घोषः। इन्द्र। देवऽजामिः। इरज्यन्त। यत्। शुरुधः। विऽवाचि। नहि। स्वम्। आयुः। चिकिते। जनेषु। तानि। इत्। अंहांसि। अति। पर्षि। अस्मान् ॥२॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 23; मन्त्र » 2
अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 7; मन्त्र » 2
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अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 7; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनः स राजाऽमात्याश्चाऽन्योऽन्यं कथं वर्त्तेरन्नित्याह ॥
अन्वयः
हे इन्द्र यद्ये शुरुधो विवाचीरज्यन्त यैः सह देवजामिर्घोषः प्रवर्तेत यो जनेषु स्वमायुश्चिकिते तान्यंहांसि दूरेऽति पर्ष्यस्माँश्च सुरक्षति तमहमयामि एते सर्वे वयं पुरुषार्थेन कदाचित् पराजिता इन्नहि भवेम ॥२॥
पदार्थः
(अयामि) प्राप्नोति (घोषः) सुवक्तृत्वयुक्ता वाक्। घोष इति वाङ्नाम। (निघं०१.११)। (इन्द्र) परमैश्वर्यप्रद (देवजामिः) यो देवैस्सह जमति सः (इरज्यन्त) प्राप्नुवन्तु (यत्) ये (शुरुधः) ये सद्यो रुन्धन्ति ते (विवाचि) विविधासु विद्यासु प्रवृत्ता वाक् तस्याम् (नहि) निषेधे (स्वम्) स्वकीयम् (आयुः) जीवनम् (चिकिते) जानाति (जनेषु) मनुष्येषु (तानि) (इत्) एव (अंहांसि) अधर्मयुक्तानि कर्माणि (अति) (पर्षि) पूरयसि (अस्मान्) ॥२॥
भावार्थः
हे मनुष्या ! यथा विद्वांसो धर्म्ये वर्त्तेरँस्तथा यूयमपि वर्त्तध्वम्, ब्रह्मचर्यादिना स्वकीयमायुर्वर्धयत ॥२॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर वह राजा और मन्त्री जन परस्पर कैसे वर्तें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (इन्द्र) परम ऐश्वर्य के देनेवाले ! (यत्) जो (शुरुधः) शीघ्र रूंधनेवाले (विवाचि) नाना प्रकार की विद्याओं में जो प्रवृत्त वाणी उसमें (इरज्यन्त) प्राप्त होते हैं वा जिनके साथ (देवजामिः) विद्वानों के सङ्ग रहनेवाली (घोषः) अच्छी वक्तृता से युक्त वाणी प्रवृत्त हो वा जो (जनेषु) मनुष्यों में (स्वम्) अपनी (आयुः) उमर को (चिकिते) जानता है वा (तानि) उन (अंहांसि) अधर्मयुक्त कामों को दूर (अति, पर्षि) आप अति पार पहुँचाते वा (अस्मान्) हम लोगों की अच्छे प्रकार रक्षा करता है उसकी मैं (अयामि) रक्षा करता हूँ, ये समस्त हम लोग पुरुषार्थ से पराजित (इत्, नहि) कभी न हों ॥२॥
भावार्थ
हे मनुष्यो ! जैसे विद्वान् जन धर्मयुक्त व्यवहार में वर्तें, वैसे तुम भी वर्तो, ब्रह्मचर्य्य आदि से अपनी आयु को बढ़ाओ ॥२॥
विषय
आज्ञापक सेनापति की आज्ञा का वर्णन । पापों के रक्षक राजा ।
भावार्थ
जिस प्रकार जव ( देवजामिः घोषः ) जलदाता मेघ की गर्जना होती है और ( विवाचि ) विविध मध्यमा वाक् विद्युत् के गर्जते हुए ( शुरुधः ) शीघ्र आने वाली ओषधियां खूब बढ़ती हैं उसी प्रकार हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्यवन् ! ज्ञानवन् ! ( यत् ) जब ( देव-जामिः ) 'देव' व्यवहारवान्, और विजयेच्छु पुरुषों में रहने वाला ( घोषः ) घोष, या वाणी उठती है उस समय (वि-वाचि) विविध या विशेष वाणी के प्रवक्ता पुरुष के अधीन ( शुरुधः ) शीघ्र ही शत्रुओं को रोकने में समर्थ वीरजन ( इरज्यन्त ) आगे बढ़ते हैं । ( जनेषु ) मनुष्यों में कोई भी ( स्वम् आयु: ) अपना जीवन सुरक्षित ( नहि चिकिते ) नहीं जानता तब हे राजन् ! तू ही ( तानि इत् अहांसि ) उन नाना प्रकार के पापाचारों से ( अस्मान् अतिपर्षि ) हमें पार करता है ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः।। इन्द्रो देवता ॥ छन्दः – १, ६ भुरिक् पंक्ति: । ४ स्वराट् पंक्ति:। २, ३ विराट् त्रिष्टुप् । ५ निचृत्त्रिष्टुप् ॥ षडृचं सूक्तम्॥
विषय
वेदवाणी के प्रवक्ता पुरुष शत्रुओं को रोकने में समर्थ होते हैं
पदार्थ
पदार्थ-जैसे (देवजामिः घोष:) = जलदाता मेघ की गर्जना होती है और (विवाचि) = विविध मध्यमा वाक् विद्युत् के गर्जते हुए (शुरुधः) = शीघ्र आनेवाली ओषधियाँ बढ़ती हैं, वैसे हे (इन्द्र) = ऐश्वर्यवन् ! (यत्) = जब (देव-जामि:) = विजयेच्छु पुरुषों में रहनेवाला (घोष:) = घोष उठता है उस समय (वि वाचि) = विशेष वाणी के प्रवक्ता पुरुष के अधीन (शुरुधः) = शत्रुओं को रोकने में समर्थ वीर (इरज्यन्त) = आगे बढ़ते हैं। (जनेषु) = मनुष्यों में कोई भी (स्वम् आयुः) = अपना जीवन सुरक्षित (नहि चिकिते) = नहीं जानता है, तब, हे राजन् ! तू ही (तानि इत् अंहांसि) = उन पापाचारों से (अस्मान् अतिपर्षि) = हमें पार करता है।
भावार्थ
भावार्थ- वेदज्ञ पुरुष राष्ट्र में वेदवाणी का उपदेश करके राष्ट्र के नायक एवं नागरिकों को शत्रुओं से युद्ध करने में समर्थ बनावें जिससे शत्रु का पराभव होवे।
मराठी (1)
भावार्थ
हे माणसांनो! जसे विद्वान लोक धार्मिक व्यवहार करतात, तसे तुम्हीही वागा. ब्रह्मचर्याने आपले आयुष्य वाढवा. ॥ २ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
I come, lord Indra, the sound of prayer rises like a battle cry with the divine waves of nature, charming, mastering, the notes resounding in the tumultuous roar. No one knows the thread of his span of life in humanity. O lord, cleanse us of those sins which pollute us to darkness.
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