ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 34/ मन्त्र 11
ऋषिः - वसिष्ठः
देवता - विश्वेदेवा:
छन्दः - निचृत्त्रिपाद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
राजा॑ रा॒ष्ट्रानां॒ पेशो॑ न॒दीना॒मनु॑त्तमस्मै क्ष॒त्रं वि॒श्वायु॑ ॥११॥
स्वर सहित पद पाठराजा॑ । रा॒ष्ट्राना॑म् । पेशः॑ । न॒दीना॑म् । अनु॑त्तम् । अ॒स्मै॒ । क्ष॒त्रम् । वि॒श्वऽआ॑यु ॥
स्वर रहित मन्त्र
राजा राष्ट्रानां पेशो नदीनामनुत्तमस्मै क्षत्रं विश्वायु ॥११॥
स्वर रहित पद पाठराजा। राष्ट्रानाम्। पेशः। नदीनाम्। अनुत्तम्। अस्मै। क्षत्रम्। विश्वऽआयु ॥११॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 34; मन्त्र » 11
अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 26; मन्त्र » 1
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अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 26; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्स राजा किंवत् किं कुर्यादित्याह ॥
अन्वयः
यो राजा नदीनां पेश इव राष्ट्रानां रक्षां विधत्तेऽस्माअनुत्तं विश्वायु क्षत्रं भवति ॥११॥
पदार्थः
(राजा) प्रकाशमानः (राष्ट्रानाम्) राज्यानाम्। अत्र वा छन्दःसीति णत्वाभावः। (पेशः) रूपम् (नदीनाम्) (अनुत्तम्) अनुकूलं शत्रुभिरबाधितम् (अस्मै) (क्षत्रम्) धनं राज्यं वा (विश्वायु) विश्वं सम्पूर्णामायु यस्मात्तत् ॥११॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यो राजा न्यायकारी विद्वान् भवति तम्प्रति समुद्रं नद्य इव प्रजा अनुकूला भूत्वैश्वर्यं जनयन्ति पूर्णमायुश्चास्य भवति ॥११॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर वह राजा किसके तुल्य क्या करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
जो (राजा) प्रकाशमान (नदीनाम्) नदियों के (पेशः) रूप के समान (राष्ट्रानाम्) राज्यों की रक्षा का विधान करता है (अस्मै) इसके लिये (अनुत्तम्) शत्रुओं से अपीड़ित (विश्वायु) जिससे समस्त आयु होती है वह (क्षत्रम्) धन वा राज्य होता है ॥११॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जो राजा न्यायकारी विद्वान् होता है, उसके प्रति समुद्र को नदी जैसे, वैसे प्रजा अनुकूल होकर ऐश्वर्य्य को उत्पन्न कराती हैं और इस राजा को पूरी आयु भी होती है ॥११॥
विषय
जलवत् राजा का कर्त्तव्य ।
भावार्थ
वरुण, अर्थात् जल जिस प्रकार ( नदीनां पेश: ) नदियों के स्वरूप को बनाता है, उसी प्रकार यह ( राजा ) राजा ( राष्ट्रानां ) राष्ट्रों और समृद्ध प्रजाओं के ( पेशः ) उत्तम समृद्धि रूप को बनाता, और (अस्मै ) उसका ( विश्वायु ) सर्वगामी, (अनुत्तम् ) अबाधित, ( क्षत्रं ) बल वीर्य होता है ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ १-१५, १८-२५ विश्वे देवाः। १६ अहिः। १७ र्बुध्न्यो देवता। छन्दः— १, २, ५, १२, १३, १४, १६, १९, २० भुरिगर्चीगायत्री। ३,४,१७ आर्ची गायत्री । ६,७,८,९,१०,११,१५,१८,२१ निचृत्त्रिपादगायत्री। २२,२४ निचृदार्षी त्रिष्टुप् । २३ आर्षी त्रिष्टुप् । २५ विराडार्षी त्रिष्टुप् च ॥ पञ्चविंशत्यृचं सूक्तम् ॥
विषय
निर्माण समृद्ध राष्ट्र का
पदार्थ
पदार्थ-वरुण अर्थात् जल जैसे (नदीनां पेश:) = नदियों के रूप को बनाता है, वैसे यह (राजा) = राजा (राष्ट्रानां) = राष्ट्रों और प्रजाओं का (पेश:) = समृद्ध रूप बनाता और (अस्मै) = उसका (विश्वायु) = सर्वगामी, (अनुत्तम्) = अबाधित (क्षत्रं) = बल होता है।
भावार्थ
भावार्थ-जैसे जल की धारा नदियों के स्वरूप का निर्माण कर देती है उसी प्रकार बल और बुद्धि के द्वारा राजा समृद्ध राष्ट्र का निर्माण कर देता है। इससे उस राजा का बल एवं पराक्रम चमकता है।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जो राजा न्यायी विद्वान असतो, जशा नद्या समुद्राला मिळतात तशी प्रजा त्याला अनुकूल असून ऐश्वर्य उत्पन्न करविते व राजा दीर्घायुषी होतो. ॥ ११ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
If the ruler of nations, Varuna, of a thousand eyes, be of the form of flowing streams, dynamic and fluent in speech, policy and action, his order of governance would be better than the best, i.e., permanent, of universal sway over the world.
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