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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 55 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 55/ मन्त्र 5
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - इन्द्र: छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    सस्तु॑ मा॒ता सस्तु॑ पि॒ता सस्तु॒ श्वा सस्तु॑ वि॒श्पतिः॑। स॒सन्तु॒ सर्वे॑ ज्ञा॒तयः॒ सस्त्व॒यम॒भितो॒ जनः॑ ॥५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सस्तु॑ । मा॒ता । सस्तु॑ । पि॒ता । सस्तु॑ । श्वा । सस्तु॑ । वि॒श्पतिः॑ । स॒सन्तु॑ । सर्वे॑ । ज्ञा॒तयः॑ । सस्तु॑ । अ॒यम् । अ॒भितः॑ । जनः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सस्तु माता सस्तु पिता सस्तु श्वा सस्तु विश्पतिः। ससन्तु सर्वे ज्ञातयः सस्त्वयमभितो जनः ॥५॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सस्तु। माता। सस्तु। पिता। सस्तु। श्वा। सस्तु। विश्पतिः। ससन्तु। सर्वे। ज्ञातयः। सस्तु। अयम्। अभितः। जनः ॥५॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 55; मन्त्र » 5
    अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 22; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्गृहस्थाः गृहे किं किं कुर्युरित्याह ॥

    अन्वयः

    ये मनुष्या यथा मद्गृहे मम माताऽभितः सस्तु पिता सस्तु श्वा सस्तु विश्पतिस्सस्तु सर्वे ज्ञातयोऽभितः ससन्त्वयं जनः सस्तु तथा युष्माकं गृहेऽपि ससन्तु ॥५॥

    पदार्थः

    (सस्तु) शयताम् (माता) (सस्तु) (पिता) (सस्तु) (श्वा) कुक्कुरः (सस्तु) (विश्पतिः) प्रजापतिः (ससन्तु) शयीरन् (सर्वे) (ज्ञातयः) सम्बन्धिनः (सस्तु) (अयम्) (अभितः) सर्वतः (जनः) उत्तमो विद्वान् ॥५॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैरीदृशानि गृहाणि निर्मातव्यानि यत्र सर्वेषां सर्वव्यवहारकरणाय पृथक् पृथक् शालागृहाणि च भवेयुः ॥५॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर गृहस्थ घर में क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    जो मनुष्य जैसे मेरे घर में मेरी (माता) माता (अभितः) सब ओर से (सस्तु) सोवे (पिता) पिता (सस्तु) सोवे (श्वा) कुत्ता (सस्तु) सोवे (विश्पतिः) प्रजापति (सस्तु) सोवे (सर्वे) सब (ज्ञातयः) सम्बन्धी सब ओर से (ससन्तु) सोवें (अयम्) यह (जनः) उत्तम विद्वान् सोवे, वैसे तुम्हारे घर में भी सोवें ॥५॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । मनुष्यों को ऐसे घर रचने चाहियें, जिनमें सब के सर्व व्यवहारों के करने को अलग-अलग शाला और घर होवें ॥५॥

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    विषय

    उनके शासन में राष्ट्र प्रजा को सुख

    भावार्थ

    राष्ट्र और गृह के उत्तम प्रबन्ध रहने पर ( माता सस्तु ) माता सुख की नींद सोवे । ( पिता सस्तु ) पिता भी सुख की नींद सोवे । ( श्वा सस्तु ) कुत्ता आदि रखवारे भी सुख से सोवें । ( विश्पतिः सस्तु) प्रजाओं का स्वामी राजा भी सुख से सोवे । ( सर्वे ज्ञातयः ससन्तु ) सब सम्बन्धी जन भी सुख से सोवें । ( अयम् ) यह ( अभितः जनः ) चारों ओर बसा प्रजाजन भी ( सस्तु ) सुख से सोवे ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः ॥ १ वास्तोष्पतिः । २—८ इन्द्रो देवता॥ छन्दः —१ निचृद्गायत्री। २,३,४ बृहती। ५, ७ अनुष्टुप्। ६, ८ निचृदनुष्टुप् । अष्टर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    माता सस्तु राष्ट्र की सुन्दर व्यवस्था

    पदार्थ

    पदार्थ- राष्ट्र और गृह का उत्तम प्रबन्ध होने पर (माता सस्तु) = माता सुख से सोवे, (पिता सस्तु) = पिता सुख से सोवे । (श्वा सस्तु) = कुत्ता आदि सुख से सोवें। (विश्पतिः सस्तु) = प्रजाओं का स्वामी सुख से सोवे । (सर्वे ज्ञातयः ससन्तु) = सब सम्बन्धी सुख से सोवें। (अयम्) = यह (अभितः जनः) = चारों ओर बसा (प्रजाजन सस्तु) = सुख से सोवे ।

    भावार्थ

    भावार्थ- उत्तम राजा को योग्य है कि वह अपने राज्य में सुरक्षा आदि की ऐसी व्यवस्था करे कि समस्त प्रजाजन, मित्रजन तथा पारिवारिक जनों के साथ स्वयं भी सुखपूर्वक सो सके।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. माणसांनी अशी घरे तयार केली पाहिजेत ज्यात सर्वांचे सर्व व्यवहार करण्यासाठी पृथक पृथक खोल्या असाव्यात. ॥ ५ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    In the ideal state of order, let the mother sleep in peace, let the father rest at peace, let the watch guard be sure of peace and security, let the head of the community rest at peace. And let this nation of humanity be at peace all round all ways.

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