ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 64/ मन्त्र 3
मि॒त्रस्तन्नो॒ वरु॑णो दे॒वो अ॒र्यः प्र साधि॑ष्ठेभिः प॒थिभि॑र्नयन्तु । ब्रव॒द्यथा॑ न॒ आद॒रिः सु॒दास॑ इ॒षा म॑देम स॒ह दे॒वगो॑पाः ॥
स्वर सहित पद पाठमि॒त्रः । तत् । नः॒ । वरु॑णः । दे॒वः । अ॒र्यः । प्र । साधि॑ष्ठेभिः । प॒थिऽभिः॑ । न॒य॒न्तु॒ । ब्रव॑त् । यथा॑ । नः॒ । आत् । अ॒रिः । सु॒ऽदासे॑ । इ॒षा । म॒दे॒म॒ । स॒ह । दे॒वऽगो॑पाः ॥
स्वर रहित मन्त्र
मित्रस्तन्नो वरुणो देवो अर्यः प्र साधिष्ठेभिः पथिभिर्नयन्तु । ब्रवद्यथा न आदरिः सुदास इषा मदेम सह देवगोपाः ॥
स्वर रहित पद पाठमित्रः । तत् । नः । वरुणः । देवः । अर्यः । प्र । साधिष्ठेभिः । पथिऽभिः । नयन्तु । ब्रवत् । यथा । नः । आत् । अरिः । सुऽदासे । इषा । मदेम । सह । देवऽगोपाः ॥ ७.६४.३
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 64; मन्त्र » 3
अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 6; मन्त्र » 3
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अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 6; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
हे राजानः भवन्तः (तत्) सः (मित्रः) अध्यापकः (वरुणः) उपदेशकश्च (अर्यः) न्यायाधीशः (देवः) विद्वान् इमे सर्वे (प्र, साधिष्ठेभिः) शुभसाधनवद्भिः (पथिभिः) मार्गैः (नयन्तु) गमयन्तु, अन्यच्च (देवगोपाः) राजजनैः तथा प्रजाजनैः (सह) परस्परं मिलित्वा (इषा) ऐश्वर्येण (मदेम) हृष्येम, अन्यच्च (सुदासे) उत्तमदानाय (अरिः) अर्ति गच्छति यथातत्त्वं न्यायं करोतीति न्यायकारी परमात्मा (नः) अस्मान्प्रति (यथा) येन प्रकारेण (आत्) सदैव (ब्रवत्) उपदिशति एवं भवन्तः (नः) अस्मान्प्रति उपदिशन्तु ॥३॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
हे राजा तथा प्रजाजनो ! तुमको (तत्) वह (मित्रः) अध्यापक (वरुणः) उपदेशक (अर्यः) न्यायाधीश (देवः) विद्वान् (प्र, साधिष्ठेभिः पथिभिः) भले प्रकार शुभ साधनोंवाले मार्गों से (नयन्तु) ले जायें, ताकि (सह, देवगोपाः) राजा तथा प्रजाजन साथ-साथ (इषा, मदेम) ऐश्वर्य का सुखलाभ करें, (सुदासे) उत्तम दान के लिए (अरिः) न्यायकारी परमात्मा (नः) हमको (यथा) जिस प्रकार (आत्) सदैव (ब्रवत्) उत्तम उपदेश करते हैं, उसी प्रकार आप (नः) हमको उपदेश करें ॥३॥
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे राजा तथा प्रजाजनो ! तुम उस सर्वोपरि न्यायकारी परमात्मा की आज्ञा का यथावत् पालन करो, जिससे तुम मनुष्यजन्म के फलचतुष्टय को प्राप्त कर सको, तुमको तुम्हारे अध्यापक, उपदेष्टा तथा न्यायाधीश सदैव उत्तम मार्गों से चलायें, जिससे तुम्हारा ऐश्वर्य प्रतिदिन वृद्धि को प्राप्त हो ॥३॥
विषय
वायु मेघवत् राजाओं के प्रजापतिवत् कर्त्तव्य ।
भावार्थ
( मित्रः ) स्नेहवान् ( वरुणः ) वरण करने योग्य ( देवः ) दानशील ( अर्य: ) स्वामी, ( नः ) हमें ( तत् ) वे सब जन ( साधिष्ठेभिः पथिभिः ) अति उत्तम २ मार्गों से ( प्र-यन्तु ) अच्छी प्रकार ले जावें, चलावें । (आत् ) अनन्तर ( यथा ) यथोचित रीति से ( नः ) हम में से (सु-दासे) उत्तम दानशील के हितार्थ (अरिः) स्वामी राजा (नः ब्रवत् ) हमें उपदेश करे । हम सब ( देव-गोपाः ) विद्वानों से सुरक्षित और विद्वानों की रक्षा करते हुए (इषा मदेम) अन्न से खूब तृप्त प्रसन्न हों।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः । मित्रावरुणौ देवते ॥ छन्दः–१, २, ३, ४ त्रिष्टुप् । ५ विराट् त्रिष्टुप् ॥ पञ्चर्चं सूक्तम् ॥
विषय
राजा का कर्त्तव्य
पदार्थ
पदार्थ - (मित्रः) = स्नेहवान् (वरुणः) = वरणीय (देवः) = दानशील (अर्यः) = स्वामी, (नः) = हमें (तत्) = वे सब जन (साधिष्ठेभिः पथिभिः) = अति उत्तम मार्गों से (प्र यन्तु) = अच्छी प्रकार ले जावें। (आत्) = अनन्तर यथा यथोचित रीति से (नः) = हममें से (सु-दासे) = उत्तम दानशील के हितार्थ (अरिः) = स्वामी राजा (नः ब्रवत्) = हमें उपदेश करे। हम सब (देव-गोपाः) = विद्वानों से सुरक्षित होकर (इषा मदेम) = अन्न से (तृप्त) = प्रसन्न हों।
भावार्थ
भावार्थ- राजा अपने राष्ट्र में शिक्षा व वितरण व्यवस्था को उत्तम बनावे जिससे विद्वानों के संग से उत्तम शिक्षा व प्रशासन के माध्यम से उत्तम व्यवस्था व अन्न को प्राप्त तृप्त व प्रसन्न होवें।
इंग्लिश (1)
Meaning
May the teacher, Mitra, giver of light, the discriminative judge, Varuna, and the brilliant ruler, Aryama, all lead us by the paths of rectitude with all good means of life and living, just as the lord supreme, self-refulgent and generous, would speak and illuminate the path of progress for the man of generosity so that, under the protection of the lord supreme and the brilliant leaders, we may enjoy and celebrate the gifts of life all together with plenty and prosperity.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करतो, की हे राजा व प्रजाजनांनो तुम्ही त्या संपूर्ण उत्तम व न्यायी परमात्म्याच्या आज्ञेचे पालन करा. त्यामुळे तुम्ही मनुष्य जन्माच्या फक्त चतुष्ट यांना प्राप्त करू शकाल. तुमचे अध्यापक, उपदेशक व न्यायाधीश यांनी तुम्हाला सदैव उत्तम मार्गाने चालवावे. त्यामुळे तुमचे ऐश्वर्य प्रत्येक दिवशी वाढेल. ॥३॥
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