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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 71 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 71/ मन्त्र 5
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - अश्विनौ छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    यु॒वं च्यवा॑नं ज॒रसो॑ऽमुमुक्तं॒ नि पे॒दव॑ ऊहथुरा॒शुमश्व॑म् । निरंह॑स॒स्तम॑सः स्पर्त॒मत्रिं॒ नि जा॑हु॒षं शि॑थि॒रे धा॑तम॒न्तः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यु॒वम् । च्यवा॑नम् । ज॒रसः॑ । अ॒मु॒मु॒क्त॒म् । नि । पे॒दवे॑ । ऊ॒ह॒थुः॒ । आ॒शुम् । अश्व॑म् । निः । अंह॑सः । तम॑सः । स्पर्त॑म् । अत्रि॑म् । नि । जा॒हु॒षम् । शि॒थि॒रे । धा॒तम् । अ॒न्तरिति॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    युवं च्यवानं जरसोऽमुमुक्तं नि पेदव ऊहथुराशुमश्वम् । निरंहसस्तमसः स्पर्तमत्रिं नि जाहुषं शिथिरे धातमन्तः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    युवम् । च्यवानम् । जरसः । अमुमुक्तम् । नि । पेदवे । ऊहथुः । आशुम् । अश्वम् । निः । अंहसः । तमसः । स्पर्तम् । अत्रिम् । नि । जाहुषम् । शिथिरे । धातम् । अन्तरिति ॥ ७.७१.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 71; मन्त्र » 5
    अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 18; मन्त्र » 5
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    हे विद्वांसः (युवम्) युष्माकं (जरसः) जीर्णतया (अमुमुक्तम्) रहितं (च्यवानम्) ज्ञानं (नि) निरन्तरं (पेदवे) अस्मान् रक्षितुं भवतु अन्यच्च (निः) निःसंशयं (अश्वम्) राष्ट्रं (आशुम्) शीघ्रं (ऊहथुः) प्रापयतु (अन्धसः तमसः) अज्ञानरूपादन्धकारात् (अत्रिम्) अरक्षितं राष्ट्रं (जाहुषम्) निवर्तयतु तथा च (शिथिरे) राष्ट्रे शिथिले सति (अन्तः धातम्) आत्मरूपं सत् धारयतु ॥५॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    हे विद्वानों ! (युवं) तुम्हारा (जरसः अमुमुक्तं) जीर्णता से रहित (च्यवानं) ज्ञान (नि) निरन्तर (पेदवे) हमारी रक्षा के लिये हो और (निः) निस्सन्देह (अश्वं आशुं ऊहथुः) राष्ट्र को शीघ्र प्राप्त कराये (अन्धसः तमसः) अज्ञानरूप तम से (अत्रिं) अरक्षित राष्ट्र को (जाहुषं) निकाले और उसके (शिथिरे) शिथिल होने पर (अन्तः धातं) आत्मा बनकर धारण करे ॥५॥

    भावार्थ

    हे विद्वानों ! आपका जीर्णता से रहित नित नूतन ज्ञान हमारी सब ओर से रक्षा करे और वह पवित्र ज्ञान हमें राष्ट्र=ऐश्वर्य्य प्राप्त कराये और आपके ज्ञान द्वारा हम अपने गिरे हुए राष्ट्र को भी पुनः जीवित करें ॥ तात्पर्य्य यह है कि विद्वानों के उपदेशों से ज्ञान को प्राप्त हुए प्रजाजन अपने ऐश्वर्य्य को बढ़ाते और गिरे हुए राष्ट्र को भी फिर उठाते हैं अर्थात् जिस प्रकार इस अस्थिमय चर्मावगुण्ठित शरीर को केवल अपनी सत्ता से जीवात्मा ही उठाता है, इस प्रकार राष्ट्ररूप कलेवर को उठानेवाला एकमात्र ज्ञान ही है, इसलिये इस मन्त्र में विद्वानों से प्रार्थना है। आप ऐसी कृपा करें कि हम लोग ज्ञानी तथा विज्ञानी बनकर राष्ट्र को शरीरवत् धारण करते हुए सुखपूर्वक रहें ॥५॥

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    विषय

    उत्तम स्त्री पुरुषों के कर्तव्य।

    भावार्थ

    हे विद्वान् जितेन्द्रिय स्त्री पुरुषो ! हे ( अश्विना ) अश्ववत् वेग युक्त रथों, अश्वों, वाहनों और विद्यावान् पुरुषों के स्वामी जनो ! सभा-सेनापतियो ! ( युवं ) आप दोनों (च्यवानं) सन्मार्ग से जाने वाले पुरुष को ( जरसः ) वृद्धावस्था वा आयु के नाश से ( अमुमुक्तम् ) दूर करो । ( पेदवे ) दूर देश में जाने वाले के लिये (आशुम् अश्वम् ) शीघ्र गामी अश्ववत् दूरयायी साधन को ( नि ऊहथुः ) निरन्तर चलाओ । और ( अत्रिम् ) तीनों प्रकार के दोषों से रहित वा इस लोक में विद्यमान पुरुष को ( अंहसः ) पाप और ( तमसः ) अज्ञान अन्धकार से ( निः स्पर्त्तम् ) पार करो, ( जाहुषम् ) त्यागी निःसंग, निस्वार्थी पुरुष को ( शिथिरे ) शिथिल राष्ट्र में ( अन्तः नि घातम् ) भीतर के केन्द्र स्थान पर नियुक्त करो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः ॥ अश्विनौ देवते । छन्दः – १, ५ त्रिष्टुप् । २, ३, ४, ६ विराट् त्रिष्टुप् ॥ षडृचं सूक्तम् ॥

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    विषय

    पाप व अज्ञान से पार

    पदार्थ

    पदार्थ- हे वेग युक्त रथों, अश्वों, वाहनों और विद्यावान् पुरुषों के स्वामी स्त्री-पुरुषो! सभासेनापतियो ! (युवं) = आप दोनों (च्यवानं) = सन्मार्गगामी पुरुष को (जरस:) = वृद्धावस्था वा आयु के नाश से (अमुमुक्तम्) = दूर करो। (पेदवे) = दूर देश-गामी के लिये (आशुम् अश्वम्) = शीघ्रगामी अश्वतुल्य साधन को (नि ऊहथुः) = निरन्तर चलाओ और (अत्रिम्) = तीनों दोषों से रहित पुरुष को (अंहसः) = पाप और (तमसः) = अज्ञान-अन्धकार से (नि: स्पर्त्तम्) = पार करो, (जाहुषम्) = त्यागी, पुरुष को (शिथिरे) = शिथिल राष्ट्र में (अन्तः नि धातम्) = भीतर केन्द्र स्थान पर नियुक्त करो।

    भावार्थ

    भावार्थ-विद्यावान् स्त्री-पुरुष प्रजा जनों को ज्ञान का उपदेश प्रदान कर उन्हें वृद्धावस्था पर्यन्त स्वस्थ जीवन जीने की कला सिखावें। तथा अज्ञान अन्धकार व पाप से बचावें। ऐसे त्यागी व पुरुषार्थी पुरुष को राष्ट्र की शासन व्यवस्था में उस क्षेत्र में नियुक्त करें जहाँ पर शिथिलता हो।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    You exempt the active and dynamic from the decay of age, raise the relentlessly progressive commonwealth to higher achievements in no time, you save the man of threefold freedom of body, mind and soul from sin and ignorance, and you rejuvenate the optimist back to inner light and strength when he feels exhausted.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे विद्वानांनो! तुमच्या जीर्णतारहित, नित्यनूतन ज्ञानाने आमचे सगळीकडून रक्षण व्हावे. त्या पवित्र ज्ञानाने आम्हाला राष्ट्रऐश्वर्य प्राप्त व्हावे व आपल्या ज्ञानाद्वारे आपल्या पतन झालेल्या राष्ट्रालाही पुनर्जीवित करावे.

    टिप्पणी

    तात्पर्य हे, की विद्वानाच्या उपदेशाने ज्ञान प्राप्त झालेले प्रजाजन आपले ऐश्वर्य वाढवितात व अवनत झालेल्या राष्ट्राला पुन्हा उन्नत करतात. अर्थात, ज्या प्रकारे या अस्थिचर्ममय देहाला आपल्या सत्तेने जीवात्मा उन्नत करतो त्याच प्रकारे राष्ट्ररूप कलेवराला वर काढण्यासाठी ज्ञानच उपयुक्त असते. त्यासाठी या मंत्रात विद्वानांना ही प्रार्थना केलेली आहे, की तुम्ही अशी कृपा करा, की आम्ही ज्ञानी व विज्ञानी बनून राष्ट्राला शरीराप्रमाणे धारण करून सुखाने राहावे. ॥५॥

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