ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 17/ मन्त्र 12
ऋषिः - इरिम्बिठिः काण्वः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
शाचि॑गो॒ शाचि॑पूजना॒यं रणा॑य ते सु॒तः । आख॑ण्डल॒ प्र हू॑यसे ॥
स्वर सहित पद पाठशाचि॑गो॒ इति॒ शाचि॑ऽगो । शाचि॑ऽपूजन । अ॒यम् । रणा॑य । ते॒ । सु॒तः । आख॑ण्डल । प्र । हू॒य॒से॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
शाचिगो शाचिपूजनायं रणाय ते सुतः । आखण्डल प्र हूयसे ॥
स्वर रहित पद पाठशाचिगो इति शाचिऽगो । शाचिऽपूजन । अयम् । रणाय । ते । सुतः । आखण्डल । प्र । हूयसे ॥ ८.१७.१२
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 17; मन्त्र » 12
अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 24; मन्त्र » 2
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अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 24; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (2)
पदार्थः
(शाचिगो) हे समर्थवाक् (शाचिपूजन) समर्थपूजन ! (अयम्) अयं सोमः (ते, रणाय) तव सुखाय (सुतः) संस्कृतः अतः (आखण्डल) हे आखण्डयितः ! (प्रह्वयसे) अस्माभिराहूयसे ॥१२॥
विषयः
पुनस्तदनुवर्त्तते ।
पदार्थः
हे शाचिगो=“शाचयः शक्ताः स्वस्वकार्य्ये समर्था गावः पृथिव्यादिलोकाः यस्य स शाचिगुः । ” हे दृढतरपृथिव्यादिलोकोत्पादक ! हे शाचिपूजन=प्रसिद्धपूजन देव ! ते=तव । सुतः=सम्पादित उत्पादितोऽयं संसारः । रणाय=आनन्दाय वर्तते । अतः हे आखण्डल=दुष्टानां आखण्डयितः । त्वं सर्वत्र । प्र+हूयसे=प्रकृष्टाभिः स्तुतिभिः । आहूयसे=पूज्यसे ॥१२ ॥
हिन्दी (4)
पदार्थ
(शाचिगो) हे समर्थ वाणीवाले (शाचिपूजन) समर्थ पूजनवाले योद्धा ! (अयम्) यह सोम (ते, रणाय) आपके सुख के लिये (सुतः) संस्कृत किया है इससे (आखण्डल) हे शत्रुओं का खण्डन करनेवाले ! (प्रह्वयसे) हम लोगों से आह्वान किये जाते हैं ॥१२॥
भावार्थ
हे विश्वासार्ह वाणीवाले तथा सत्कारयोग्य योद्धा जनो ! हम लोग आपको यज्ञसदन में बुलाकर सत्कार करते हैं। आप हमारी और हमारे यज्ञ की शत्रुओं से सदैव रक्षा करते रहें, जिससे हमारे यज्ञ में कोई विघ्न न हो और हम अपने उद्देश्य की सिद्धि में कृतकार्य्य हों ॥१२॥
विषय
पुनः वही विषय आ रहा है ।
पदार्थ
(शाचिगो) हे दृढतर पृथिव्यादिलोकोत्पादक ! (शाचिपूजन) हे प्रख्याताभ्यर्चन महादेव ! (ते) तेरा (अयम्+सुतः) उत्पादित यह संसार (रणाय) सकल जीवों को आनन्द पहुँचाने के लिये विद्यमान है । इस कारण (आखण्डल) हे दुष्टनिवारक ! (प्र+हूयसे) तू सर्वत्र उत्तमोत्तम स्तोत्रों से पूजित हो रहा है ॥१२ ॥
भावार्थ
जिस कारण ईश्वर ने इस जगत् को रचा है और इसके द्वारा सर्व प्राणियों को सुख पहुँचा रहा है, अतः इस तत्त्व को जानकर ऋषि-मुनिगण इसकी सदा पूजा किया करते हैं ॥१२ ॥
विषय
शक्तिशाली प्रभुवत् राजा ।
भावार्थ
( शाचि-गो ) शक्तिशाली बैलों, अश्वों, धनुषों और वाणियों चाले राजन् ! विद्वन् ! प्रभो ! हे ( शाचि-पूजन ) शक्तियों से या शक्तिशाली सेनाओं के कारण पूजनीय, हे ( आखण्डल ) शत्रुओं को सब ओर छिन्न भिन्न करने हारे ! ( अयं ) यह ( सुतः ) ऐश्वर्य देने वाला प्रजाजन ( ते रणाय ) तेरे ही रमण करने के लिये है। तू ( प्र हूयसे ) बड़े आदर से बुलाया जाता है। (२) हे (शाचि-गो ) शक्तियों से सूर्यादि को सञ्चालित करने वाले वा व्यक्त वाणी से बोलने योग्य वेद वाणी के स्वामिन् ! हे ( शाचि-पूजन ) व्यक्त वाणी द्वारा पूजने योग्य ! यह उत्पन्न वा शिष्य तेरी ही ( रणाय ) प्रसन्नता के लिये है । हे ( आखण्डल ) प्रलयकारिन् ! विघ्ननाशक ! हे संशयच्छेदक ! तुझे आदर से बुलाते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
इरिम्बिठिः काण्व ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१—३, ७, ८ गायत्री। ४—६, ९—१२ निचृद् गायत्री। १३ विराड् गायत्री। १४ आसुरी बृहती। १५ आर्षी भुरिग् बृहती॥ पञ्चदशचं सूक्तम्॥
विषय
आखण्डल का आह्वान
पदार्थ
[१] हे (शाचिगो) = शक्तिशाली इन्द्रियों को प्राप्त करानेवाले [गाव : इन्द्रियाणि], (शाचिपूजन) = शक्ति के द्वारा उपासनीय प्रभो ! (अयम्) = यह सोम (ते रणाय) = आप के अन्दर रमण के लिये (सुतः) = उत्पन्न हुआ है। इसका रक्षण करके मैं आपका दर्शन कर पाता हूँ और आनन्द का अनुभव करता हूँ। [२] हे (आखण्डल) = सर्वतः वासनाओं का खण्डन करनेवाले प्रभो ! (प्रहूयसे) = हमारे से आप ही पुकारे जाते हैं। आपने ही तो इन वासनाओं पर मुझे विजय प्राप्त करानी है।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु हमें शक्तिशाली इन्द्रियाँ प्राप्त कराते हैं। शक्ति के द्वारा ही प्रभु का पूजन होता है। । इस शक्ति के लिये सोम का रक्षण आवश्यक है । सोमरक्षण के लिये हम प्रभु को पुकारते हैं।
इंग्लिश (1)
Meaning
Lord self-refulgent creator of stars and planets, glorious adorable, this cosmic soma of the universe of your creation is for the joy of life. Therefore, O lord imperishable, you are invoked and adored with love and faith.
मराठी (1)
भावार्थ
ज्या कारणाने ईश्वराने हे जग निर्माण केलेले आहे त्याद्वारे तो सर्व प्राण्यांना सुख देत आहे. त्यामुळे हे तत्त्व जाणून ऋषिमुनी त्याची सदैव पूजा करतात. ॥१२॥
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