ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 52/ मन्त्र 10
समिन्द्रो॒ रायो॑ बृह॒तीर॑धूनुत॒ सं क्षो॒णी समु॒ सूर्य॑म् । सं शु॒क्रास॒: शुच॑य॒: सं गवा॑शिर॒: सोमा॒ इन्द्र॑ममन्दिषुः ॥
स्वर सहित पद पाठसम् । इन्द्रः॑ । रायः॑ । बृ॒ह॒तीः । अ॒धू॒नु॒त॒ । सम् । क्षो॒णी इति॑ । सम् । ऊँ॒ इति॑ । सूर्य॑म् । सम् । शु॒क्रासः॑ । शुच॑यः । सम् । गोऽआ॑शिरः । सोमाः॑ । इन्द्र॑म् । अ॒म॒न्दि॒षुः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
समिन्द्रो रायो बृहतीरधूनुत सं क्षोणी समु सूर्यम् । सं शुक्रास: शुचय: सं गवाशिर: सोमा इन्द्रममन्दिषुः ॥
स्वर रहित पद पाठसम् । इन्द्रः । रायः । बृहतीः । अधूनुत । सम् । क्षोणी इति । सम् । ऊँ इति । सूर्यम् । सम् । शुक्रासः । शुचयः । सम् । गोऽआशिरः । सोमाः । इन्द्रम् । अमन्दिषुः ॥ ८.५२.१०
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 52; मन्त्र » 10
अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 21; मन्त्र » 5
Acknowledgment
अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 21; मन्त्र » 5
Acknowledgment
भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
Let Indra, divine soul, chant and liberate the grand abundance of spontaneous divine hymns in honour of Indra, let the earth and heaven resound, let the hymns reach the sun. Let the pure, powerful and sanctified soma abundance of divine celebration please Indra, lord omnipotent and omnificent.
मराठी (1)
भावार्थ
भगवद्गुण कीर्तन चांगल्या प्रकारे केले पाहिजे. ज्ञानपूर्वक शब्दांच्या अर्थांना चांगल्या प्रकारे हृदयंगम केलेले गुणकीर्तन अपूर्व मग्नता उत्पन्न करते. ॥१०॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
हे (इन्द्र) ऐश्वर्य के साधक मननशील जीवात्मा! उपर्युक्त (बृहतीः) बृहत् ऋचाओं रूप (रायः) ऐश्वर्य को (सम् अधूनुत) भली-भाँति से प्रवर्तित कर और इस स्तवन द्वारा (क्षोणी) द्युलोक से पृथिवी तक को (उ) और (सूर्यम्) सूर्यलोक को भी (सम्, अधूनुत) गुंजित कर दे। उस इन्द्र को (शुक्रासः) वीर्यकारक और (शुचयः) पवित्र (सोमाः) दिव्यानन्द रस तथा (गवाशिरः) ज्ञानमिश्रित दिव्यानन्द रस (सम्, अमन्दिषुः) भली-भाँति हर्षित करते हैं॥१०॥
भावार्थ
परमात्मा की स्तुति वन्दना भली-भाँति करनी चाहिये। ज्ञानपूर्वक शब्दों के अर्थों को भली-भाँति समझते हुए--किया हुआ गुणकीर्तन अपूर्व आनन्द प्रदान करता है॥१०॥ अष्टम मण्डल में बावनवाँ सूक्त व इक्कीसवाँ वर्ग समाप्त॥
विषय
उसकी स्तुति प्रार्थनाएं।
भावार्थ
( इन्द्रः ) परमेश्वर ही ( रायः ) समस्त ऐश्वर्यों और ( बृहतीः ) जगत् की बड़ी २ शक्तियों को ( सम् अधूनुत ) अच्छी प्रकार संचालित करता है। वही ( क्षोणीः सं सूर्यंम् उ सम् ) समस्त पृथिवियों और सूर्य को चलाता है, ( शुचयः शुक्रासः ) शुद्धाचारवान्, तेजस्वी पुमान् पुरुष और ( गवाशिरः सोमाः ) वेदवाणी का आश्रय लेने वाले जितेन्द्रिय पुरुष ( इन्द्रम् सं सम् अमन्दिषुः ) अच्छी प्रकार स्तुति करते, उसे प्रसन्न करते हैं। इत्येकविंशो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
आयुः काण्व ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१, ७ निचृद् बृहती। ३, बृहती। ६ विराड् बृहती। २ पादनिचृत् पंक्तिः। ४, ६, ८, १० निचृत् पंक्तिः॥ दशर्चं सूक्तम्॥
विषय
प्रभु ही ऐश्वर्य के प्रेरक हैं
पदार्थ
[१] (इन्द्रः) = वह परमैश्वर्यशाली प्रभु (बृहतीः रायः) = वृद्धि के कारणभूत धनों को (सम् अधूनुत) = [Promoted] हमारी ओर प्रेरित करते हैं। वे प्रभु ही (क्षोणी) = पृथिवी को संप्रेरित करते हैं, (उ) = और (सूर्यं) = सूर्य को संप्रेरित करते हैं। [२] (शुचयः) = जीवन को पवित्र बनानेवाले (शुक्रास:) = वीर्यकण (इन्द्रम्) = इस परमैश्वर्यशाली प्रभु को (सम् अमन्दिषुः) = आनन्दित करते हैं। वीर्यकणों की रक्षा करनेवाला पुरुष प्रभु का प्रिय बनता है। ये (गवाशिरः) = इन्द्रियों के मलों का संहार करनेवाले (सोमाः) = सोमकण प्रभु को आनन्दित करते हैं। जब उपासक सोमकणों के रक्षण के द्वारा इन्द्रियों को सशक्त व निर्मल बनाता है, तो यह प्रभु का प्रिय होता है।
भावार्थ
भावार्थ - प्रभु ही सब ऐश्वर्यों को हमारी ओर प्रेरित करते हैं। प्रभु ही पृथिवी व सूर्य को गति देते हैं। सोमरक्षक पुरुष प्रभु का प्रिय बनता है। जीवन को पवित्र बनानेवाला 'मेध्य काण्व' अगले सूक्त का ऋषि है। यह इन्द्र की उपासना इस प्रकार करता है-
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal