ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 100/ मन्त्र 8
ऋषिः - रेभसूनू काश्यपौ
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
पव॑मान॒ महि॒ श्रव॑श्चि॒त्रेभि॑र्यासि र॒श्मिभि॑: । शर्ध॒न्तमां॑सि जिघ्नसे॒ विश्वा॑नि दा॒शुषो॑ गृ॒हे ॥
स्वर सहित पद पाठपव॑मान । महि॑ । श्रवः॑ । चि॒त्रेभिः॑ । या॒सि॒ । र॒श्मिऽभिः॑ । शर्ध॑न् । तमां॑सि । जि॒घ्न॒से॒ । विश्वा॑नि । दा॒शुषः॑ । गृ॒हे ॥
स्वर रहित मन्त्र
पवमान महि श्रवश्चित्रेभिर्यासि रश्मिभि: । शर्धन्तमांसि जिघ्नसे विश्वानि दाशुषो गृहे ॥
स्वर रहित पद पाठपवमान । महि । श्रवः । चित्रेभिः । यासि । रश्मिऽभिः । शर्धन् । तमांसि । जिघ्नसे । विश्वानि । दाशुषः । गृहे ॥ ९.१००.८
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 100; मन्त्र » 8
अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 28; मन्त्र » 3
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अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 28; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(पवमान) हे सर्वस्य पावयितः ! भवान् (महि श्रवः) महायशस्कः (चित्रेभिः) अनेकधा (रश्मिभिः) स्वशक्तिभिः (यासि) व्याप्नोति च (शर्धन्) स्वज्ञानमाश्रयन् (दाशुषः गृहे) भक्तान्तःकरणे (विश्वानि, तमांसि) सर्वाण्यज्ञानानि (जिघ्नसे) नाशयति ॥८॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(पवमान) हे सबको पवित्र करनेवाले परमात्मन् ! आप (महि श्रवः) सर्वोपरि यशवाले हैं, (चित्रेभिः) आप नाना प्रकार की (रश्मिभिः) शक्तियों के द्वारा (यासि) सर्वत्र प्राप्त हैं और तुम (शर्धन्) अपनी ज्ञानरूपी गति से (विश्वानि तमांसि) सब अज्ञानों को (जिघ्नसे) हनन करते हो और (दाशुषो गृहे) उपासक के अन्तःकरण में स्थिर होकर आप उसे ज्ञान से प्रकाशित करते हैं ॥८॥
भावार्थ
परमात्मा के ज्ञानरूप प्रकाश से सब अज्ञानों का नाश होता है ॥८॥
विषय
सूर्यवत् उसका वर्णन।
भावार्थ
हे (पवमान) परम पावन ! तू (शर्धन्) बलवान् होकर (चित्रेभिः रश्मिभिः) आश्चर्यकारक रश्मियों से सूर्य के समान (महि श्रवः यासि) बड़े यश, धन और श्रवणीय ज्ञान को प्राप्त करता है। (दाशुषः गृहे) अपने को त्यागने वाले के गृह में (विश्वानि तमांसि जिघ्नसे) उसके बहुतसे अज्ञान अन्धकारों को नष्ट करता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
रभसूनू काश्यपौ ऋषी ॥ पवमानः सोमो देवता ॥ छन्दः - १, २, ४,७,८ निचृदनुष्टुप्। ३ विराडनुष्टुप्। ५, ६, ८ अनुष्टुप्॥ नवर्चं सूक्तम्॥
विषय
अज्ञानान्धकार- विनाश
पदार्थ
हे (पवमान) = पवित्र करनेवाले सोम ! तू (चित्रेभिः रश्मिभिः) = अद्भुत ज्ञानरश्मियों के द्वारा (महि शवः) = महनीय ज्ञान को (यासि) = प्राप्त कराता है [या प्रापणे] । सुरक्षित सोम ही तो ज्ञानाग्नि का ईंधन बनता है । हे सोम ! तू (दाशुषः गृहे) = दाश्वान् के घर में, तेरे प्रति अपना अपना अर्पण करनेवाले के इस शरीरगृह में (शर्धन्) = शक्तिशाली की तरह आचरण करता हुआ (विश्वानि तमांसि) = सब अन्धकारों को (जिप्रसे) = समाप्त करता है। भावार्थ- सुरक्षित सोम अज्ञानान्धकार का विनाशक होता है।
इंग्लिश (1)
Meaning
Soma, pure, purifying vibrant spirit of life divine commanding great power, honour and glory, you go forward with wondrous manifestations of your power, bold and indomitable, destroying the darkness and evils of the world, and reach and bless the yajnic house of the man of charity and generosity.
मराठी (1)
भावार्थ
परमेश्वराच्या ज्ञानरूप प्रकाशाने सर्व अज्ञानाचा नाश होतो. ॥८॥
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