Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 42 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 42/ मन्त्र 2
    ऋषिः - मेध्यातिथिः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    ए॒ष प्र॒त्नेन॒ मन्म॑ना दे॒वो दे॒वेभ्य॒स्परि॑ । धार॑या पवते सु॒तः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒षः । प्र॒त्नेन॑ । मन्म॑ना । दे॒वः । दे॒वेभ्यः॑ । परि॑ । धार॑या । प॒व॒ते॒ । सु॒तः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एष प्रत्नेन मन्मना देवो देवेभ्यस्परि । धारया पवते सुतः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    एषः । प्रत्नेन । मन्मना । देवः । देवेभ्यः । परि । धारया । पवते । सुतः ॥ ९.४२.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 42; मन्त्र » 2
    अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 32; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (प्रत्नेन मन्मना) प्राक्तनया वेदमयस्तुत्या (देवः) प्रकाशमानः (एषः सुतः) अयं स्वयंसिद्धः परमात्मा (देवेभ्यः) दिव्यगुणसम्पन्नान् विदुषः (धारया) आनन्दस्रोतसा (परि पवते) सुष्ठु आह्लादयति ॥२॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (प्रत्नेन मन्मना) प्राचीन वेदरूप स्तोत्र से (देवः) प्रकाशमान (एषः सुतः) यह स्वयंसिद्ध परमात्मा (देवेभ्यः) दिव्यगुणसम्पन्न विद्वानों को (धारया) आनन्द की धारा से (परि पवते) भली प्रकार आह्लादित करता है ॥२॥

    भावार्थ

    परमात्मा अपने वैदिक ज्ञान से सब लोगों को ज्ञानी-विज्ञानी बनाकर आनन्दित करता है ॥२॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    दिव्यवृत्ति की प्राप्ति

    पदार्थ

    [१] (एषः) = यह (सुतः) = उत्पन्न हुआ हुआ सोम (देवः) = प्रकाशमय है, यह हमारे जीवन को प्रकाशमय बनाता है। यह (प्रत्नेन मन्मना) = उस सनातन [अनादि सिद्ध] ज्ञान के साथ हमें प्राप्त होता है । सोमरक्षण से ही बुद्धि की दीप्तता को प्राप्त करके इस वेदज्ञान को प्राप्त करने का सम्भव होता है । [२] यह सोम (देवेभ्यः) = देववृत्तिवाले व्यक्तियों के लिये (धारया) = धारणशक्ति के साथ (परिपवते) = शरीर में चारों ओर गति करता है, वस्तुतः इसके शरीर में व्याप्त होने से ही हमारी वृत्ति दिव्य बनती है।

    भावार्थ

    भावार्थ- सुरक्षित हुआ हुआ सोम हमें दिव्यवृत्तिवाला बनाता है ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    सर्वज्ञानप्रद प्रभु।

    भावार्थ

    (एषः सुतः) वह समस्त जगत् को उत्पन्न करने वाला प्रभु (देवः) सब सुखों का दाता (प्रत्नेन) अनादि सिद्ध (मन्मना) ज्ञानमय वेद से (देवेभ्यः) सब ज्ञान के इच्छुक मनुष्यों के लिये (धारया परि पवते) वेदवाणी वा धारण-पोषणकारिणी शक्ति से ज्ञान प्रदान और पोषण करता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    मेध्यातिथिर्ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १, २ निचृद् गायत्री। ३, ४, ६ गायत्री। ५ ककुम्मती गायत्री॥ षडृचं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    This divine Soma, light and life of the world, self-realised by the sages and adored with ancient and eternal hymns of the Veda, vibrates for them in the heart and soul and sanctifies them with showers of heavenly bliss.

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्मा आपल्या वैदिक ज्ञानाने सर्व लोकांना ज्ञानी-विज्ञानी बनवून आनंदित करतो. ॥२॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top