साइडबार
ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 60/ मन्त्र 2
तं त्वा॑ स॒हस्र॑चक्षस॒मथो॑ स॒हस्र॑भर्णसम् । अति॒ वार॑मपाविषुः ॥
स्वर सहित पद पाठत्वम् । त्वा॒ । स॒हस्र॑ऽचक्षसम् । अथो॒ इति॑ । स॒हस्र॑ऽभर्णसम् । अति॑ । वार॑म् । अ॒पा॒वि॒षुः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
तं त्वा सहस्रचक्षसमथो सहस्रभर्णसम् । अति वारमपाविषुः ॥
स्वर रहित पद पाठत्वम् । त्वा । सहस्रऽचक्षसम् । अथो इति । सहस्रऽभर्णसम् । अति । वारम् । अपाविषुः ॥ ९.६०.२
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 60; मन्त्र » 2
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 17; मन्त्र » 2
Acknowledgment
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 17; मन्त्र » 2
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
हे परमात्मन् ! (तम् त्वा) लोकप्रसिद्धं त्वां स्तोतारो जनाः (अति) अत्यन्तं (अपाविषुः) स्तुतिद्वारा प्रकाशितं कुर्वन्ति। यो भवान् (सहस्रचक्षसम्) अनेकवेदवाग्रचयितास्ति तथा (सहस्रभर्णसम्) सर्वेषां जीवानां पोषकः, अथ च (वारम्) भजनीयोऽस्ति ॥२॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
हे परमात्मन् ! (तम् त्वा) लोकप्रसिद्ध उन आपको स्तोता लोग (अति) अत्यन्त (अपाविषुः) स्तुति द्वारा प्रकाशित करते हैं। जो आप (सहस्रचक्षसम्) अनके वेदवाक् के रचयिता हैं तथा (सहस्रभर्णसम्) सम्पूर्ण जीवों के पोषक हैं और (वारम्) भजनीय हैं ॥२॥
भावार्थ
इस मन्त्र में परमात्मा की सर्वज्ञता का वर्णन किया गया है और एकमात्र उसी को उपास्यदेव वर्णन किया है ॥२॥
विषय
सहस्त्रचक्षस्-सहस्त्रभर्णस्
पदार्थ
[१] हे सोम ! (तम्) = उस (सहस्रचक्षसम्) = शतशः ज्ञानों के देनेवाले (त्वा) = तुझे (अति अपाविषुः) = अतिशयेन पवित्र करने का प्रयत्न करते हैं । पवित्र सोम ही शरीर में सुरक्षित रहता है । वासनाओं से मलिन होते ही यह विनष्ट हो जाता है। [२] यह सोम 'सहस्रचक्षस् ' तो है ही, अथो और (सहस्त्रभर्णसम्) = हजारों प्रकार से हमारा भरण करनेवाला है। (वारम्) = सब अशुभों का निवारण करनेवाला है।
भावार्थ
भावार्थ- हम सोम को वासनाओं से मलिन न होने दें। यह सोम ही हमें शतशः ज्ञानों को प्राप्त कराता है, यही हमारा भरण करता है, हमें अशुभों से बचाता है ।
विषय
missing
भावार्थ
(तं) उस (सहस्र-चक्षसम्) हज़ारों चक्षुओं वाले और (सहस्रभर्णसम्) सहस्रों के पालक पोषक (वारम् अति) आवरण के पार विराजमान तुझ को (अपाविषुः) परिष्कृत करते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अवत्सार ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, २, ४ गायत्री। ३ निचृदुष्णिक्॥ चतुर्ऋचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
That Supreme lord most adorable, of infinite vision and voice and infinite sustenance of life and existence, extremely lovable, worthiest of choice, you internalise and sanctify in the heart and soul.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात परमेश्वराच्या सर्वज्ञतेचे वर्णन केलेले आहे व एकमात्र त्यालाच उपास्यदेव म्हटले आहे. ॥२॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal