ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 62/ मन्त्र 4
ऋषिः - जमदग्निः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - पिपीलिकामध्यागायत्री
स्वरः - षड्जः
असा॑व्यं॒शुर्मदा॑या॒प्सु दक्षो॑ गिरि॒ष्ठाः । श्ये॒नो न योनि॒मास॑दत् ॥
स्वर सहित पद पाठअसा॑वि । अं॒शुः । मदा॑य । अ॒प्ऽसु । दक्षः॑ । गि॒रि॒ऽस्थाः । श्ये॒नः । न । योनि॑म् । आ । अ॒स॒द॒त् ॥
स्वर रहित मन्त्र
असाव्यंशुर्मदायाप्सु दक्षो गिरिष्ठाः । श्येनो न योनिमासदत् ॥
स्वर रहित पद पाठअसावि । अंशुः । मदाय । अप्ऽसु । दक्षः । गिरिऽस्थाः । श्येनः । न । योनिम् । आ । असदत् ॥ ९.६२.४
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 62; मन्त्र » 4
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 24; मन्त्र » 4
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अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 24; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(अप्सु दक्षः) क्रियाकुशलः (गिरिष्ठाः श्येनः न) मेघस्थितविद्युदिव शीघ्रकारी (अंशुः) तेजस्वी सेनाधीशः (असावि) ईश्वरत उत्पन्नः (योनिम् आसदत्) स्वपदवीं गृह्णाति ॥४॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(अप्सु दक्षः) क्रियाओं में कुशल (गिरिष्ठाः श्येनः न) मेघ में स्थित विद्युत् के समान शीघ्रकारी (अंशुः) तेजस्वी सेनापति (असावि) ईश्वर से पैदा किया गया (योनिम् आसदत्) अपनी पदवी को ग्रहण करता है ॥४॥
भावार्थ
उक्त गुणसम्पन्न सेनापति ईश्वर की आज्ञा से उत्पन्न होता है। तात्पर्य यह है कि ईश्वर उपदेश करता है कि मनुष्यों ! तुम उक्तगुणोंवाले पुरुष को सेनापति मानो और ऐसे सेनापतियों से राजधर्म का दृढ़ प्रबन्ध करके रक्षा का प्रचार करो ॥४॥
विषय
आनन्द - कर्मकुशलता व ज्ञान
पदार्थ
[१] (अंशुः) = सोम (असावि) = शरीर में उत्पन्न किया जाता है। यह (मदाय) = शरीर में रक्षित हुआ आनन्द की वृद्धि के लिये होता है । (अप्सु दक्षः) = यह कर्मों में कुशल होता है, सोमरक्षण करनेवाला पुरुष कर्मों को कुशलता से करता है। यह सोम (गिरिष्ठाः) = वेदवाणी में स्थित होता है । सोमरक्षण से ज्ञानाग्नि दीप्त होती है और हम इन ज्ञान की वाणियों को अच्छी प्रकार समझने लगते हैं । [२] यह सोम (न) = [इदानीं ] अब (श्येनः) = शंसनीय गतिवाला होता हुआ (योनिम्) = सारे ब्रह्माण्ड के प्रभव रूप प्रभु में (आसदत्) = आसीन होता है। हमें प्रभु को यह प्राप्त करानेवाला बनता है । इस सोम के रक्षण से ही तो उस सोम की प्राप्ति होती है।
भावार्थ
भावार्थ- सुरक्षित सोम 'आनन्द, कर्मकुशलता व ज्ञान' को प्राप्त कराता हुआ प्रभु प्राप्ति का साधन बनता है ।
विषय
बलवान् शासक के कर्त्तव्य।
भावार्थ
(अंशुः गिरिष्ठाः अप्सु असावि) जिस प्रकार पर्वत में स्थित सोम लता जलों के आश्रय पर उत्पन्न होती है। वा जलों से सेचन किया जाकर सोम (मदाय) आनन्दप्रद होता है उसी प्रकार (अंशुः) तेजस्वी व्यापक बल वाला (दक्षः) बलवान् शत्रु को दग्ध करने हारा (गिरिष्ठाः) वाणी, आज्ञा देने के अधिकार पर स्थित पुरुष भी (मदाय) प्रजा के हर्ष के लिये (असावि) शासक पद पर अभिषिक्त किया जाता है। वह (अप्सु) प्रजाओं के बीच में (अप्सु श्येनः न) अन्तरिक्ष में बाज़ के समान, (श्येनः) प्रशंसा योग्य आचरण वाला होकर (योनिम् आसदत्) अधिकार पद पर विराजे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
जमदग्निर्ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ६, ७, ९, १०, २३, २५, २८, २९ निचृद् गायत्री। २, ५, ११—१९, २१—२४, २७, ३० गायत्री। ३ ककुम्मती गायत्री। पिपीलिकामध्या गायत्री । ८, २०, २६ विराड् गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
The peace and pleasure of life’s ecstasy in thought and action, and the expertise well founded on adamantine determination is created by Savita, the creator, like the flying ambition of the soul and it is settled in its seat at the heart’s core in the personality.
मराठी (1)
भावार्थ
मेघातील विद्युतप्रमाणे गुणसंपन्न सेनापती ईश्वराच्या आज्ञेने उत्पन्न होतो. ईश्वर उपदेश करतो की हे माणसांनो! तुम्ही वरील गुणांच्या पुरुषाला सेनापती माना व अशा सेनापतीकडून राजधर्माची व्यवस्था करून प्रजेमध्ये रक्षणाची विश्वसनीयता वाढवा. ॥३॥
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