ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 8/ मन्त्र 1
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
ए॒ते सोमा॑ अ॒भि प्रि॒यमिन्द्र॑स्य॒ काम॑मक्षरन् । वर्ध॑न्तो अस्य वी॒र्य॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठए॒ते । सोमाः॑ । अ॒भि । प्रि॒यम् । इन्द्र॑स्य । काम॑म् । अ॒क्ष॒र॒न् । वर्ध॑न्तः । अ॒स्य॒ । वी॒र्य॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
एते सोमा अभि प्रियमिन्द्रस्य काममक्षरन् । वर्धन्तो अस्य वीर्यम् ॥
स्वर रहित पद पाठएते । सोमाः । अभि । प्रियम् । इन्द्रस्य । कामम् । अक्षरन् । वर्धन्तः । अस्य । वीर्यम् ॥ ९.८.१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 8; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 30; मन्त्र » 1
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अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 30; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
सम्प्रति सोमात्परमात्मनो निखिलकार्यसिद्धिः कथ्यते।
पदार्थः
(अस्य, इन्द्रस्य) अस्य जीवात्मनः (अभि, प्रियम्, कामम्) अभित इष्टां कामनाम् (अक्षरन्) ददत् (वीर्यम्) तद्बलं च (एते, सोमाः) असौ परमात्मा (वर्धन्तः) समिद्धं कुर्वन्नास्ते ॥१॥
हिन्दी (3)
विषय
अब उक्त सोमस्वभाव परमात्मा से कामनाओं की सिद्धि कथन करते हैं।
पदार्थ
(अस्य) इस (इन्द्रस्य) जीवात्मा की (अभि, प्रियम्, कामम्) अभीष्ट-कामनाओं को (अक्षरन्) देता हुआ (वीर्यम्) उसके बल को (एते, सोमाः) उक्त परमात्मा (वर्धन्तः) बढ़ाता है ॥१॥
भावार्थ
“बलमसि बलं मे देहि वीर्यमसि वीर्यं मे देहि ” अथ० २।३।१७ जिस प्रकार इस मन्त्र में परमात्मा से बल वीर्यादिकों की प्रार्थना है, इसी प्रकार इस मन्त्र में भी परमात्मा से बल वीर्यादिकों की प्रार्थना है ॥१॥
विषय
प्रिय कामना की पूर्ति
पदार्थ
[१] (एते) = ये (सोमा:) = सोमकण इन्द्रस्य जितेन्द्रिय पुरुष के (प्रियं कामं अभि) = प्रिय इच्छा का लक्ष्य करके (अक्षरन्) = शरीर में गतिवाले होते हैं। शरीर में सुरक्षित होने पर ये इसकी सब प्रिय कामनाओं को पूर्ण करते हैं। सर्वोत्तम प्रिय कामना इस जितेन्द्रिय पुरुष की यही होती है कि मैं उस प्रभु को प्राप्त कर सकूँ। सोमरक्षण के द्वारा ही यह कामना पूर्ण होती है । यह सोम ही [वीर्य ही] उस सोम [प्रभु] को प्राप्त कराता है। [२] ये सोमकण (अस्य वीर्यम्) = इसके पराक्रम को (वर्धन्तः) = बढ़ानेवाले होते हैं। रक्षित सोम से शरीर का एक-एक अंग शक्तिशाली बनता है यह रक्षित सोम ही शरीर पर आक्रमण करनेवाले रोगकृमियों का विनाश करता है ।
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षण से सब प्रिय कामनायें पूर्ण होती हैं। शक्ति का वर्धन होता है ।
विषय
पवमान सोम। अनेक पदों पर अभिषिक्त शासक जनों के कर्त्तव्य।
भावार्थ
(एते) ये (सोमाः) अभिषिक्त वा वीर्यवान् जन वा ऐश्वर्य (अस्य वीर्यम् वर्धन्तः) ओषधि रसों के तुल्य इसके बल को बढ़ाते हुए, (इन्द्रस्य) ऐश्वर्यवान् शत्रुहन्ता राजा के (प्रियं कामम् अभि अक्षरन्) प्रिय अभिलाषा को लक्ष्य करके नदी के वेगों के समान आगे बढ़ें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:- १, २, ५, ८ निचृद् गायत्री। ३, ४, ७ गायत्री। ६ पादनिचृद् गायत्री। ९ विराड् गायत्री॥ नवर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
These soma streams of life flow free and fulfil the cherished desires of humanity and exalt the creative splendour of the soul.
मराठी (1)
भावार्थ
‘‘बलमसि बलं मे देहि वीर्यमसि र्वर्यं मे देहि’’ अथर्व. २।३।१७ ज्या प्रकारे या मंत्रात परमेश्वराला इष्ट कामनांची प्रार्थना केलेली आहे त्याच प्रकारे या मंत्रात परमेश्वराला बल व वीर्याबद्दल प्रार्थना आढळते. ॥१॥
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