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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 85 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 85/ मन्त्र 3
    ऋषिः - वेनो भार्गवः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - जगती स्वरः - निषादः

    अद॑ब्ध इन्दो पवसे म॒दिन्त॑म आ॒त्मेन्द्र॑स्य भवसि धा॒सिरु॑त्त॒मः । अ॒भि स्व॑रन्ति ब॒हवो॑ मनी॒षिणो॒ राजा॑नम॒स्य भुव॑नस्य निंसते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अद॑ब्धः । इ॒न्दो॒ इति॑ । प॒व॒से॒ । म॒दिन्ऽत॑मः । आ॒त्मा । इन्द्र॑स्य । भ॒व॒सि॒ । धा॒सिः । उ॒त्ऽत॒मः । अ॒भि । स्व॒र॒न्ति॒ । ब॒हवः॑ । म॒नी॒षिणः॑ । राजा॑नम् । अ॒स्य । भुव॑नस्य । निं॒स॒ते॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अदब्ध इन्दो पवसे मदिन्तम आत्मेन्द्रस्य भवसि धासिरुत्तमः । अभि स्वरन्ति बहवो मनीषिणो राजानमस्य भुवनस्य निंसते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अदब्धः । इन्दो इति । पवसे । मदिन्ऽतमः । आत्मा । इन्द्रस्य । भवसि । धासिः । उत्ऽतमः । अभि । स्वरन्ति । बहवः । मनीषिणः । राजानम् । अस्य । भुवनस्य । निंसते ॥ ९.८५.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 85; मन्त्र » 3
    अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 10; मन्त्र » 3
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (इन्दो) हे प्रकाशस्वरूप जगदीश्वर ! त्वं (अदब्धः) अदम्भनीयोऽसि। तथा (मदिन्तमः) आमोदरूपोऽसि। अथ च त्वं (पवसे) सर्वान् पवित्रयसि। तथा (इन्द्रस्य) प्रकाशपूर्णविद्युदादिपदार्थेषु (आत्मा, भवसि) व्यापकरूपेण विराजसे। तथा (धासिः, उत्तमः) उत्तमोत्तमगुणान् धारयसि। (बहवः, मनीषिणः) प्रभूताज्ञानिविज्ञानिनः पुरुषाः (अभि, स्वरन्ति) भवत्स्तवनं कुर्वन्ति। अथ च (अस्य, भुवनस्य) अस्य संसारस्य (राजानं) प्रकाशकं भवन्तं (निंसते) सन्मन्यन्ते ॥३॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (इन्दो) हे प्रकाशस्वरूप परमात्मन् ! आप (अदब्धः) किसी से दबाये नहीं जा सकते और (मदिन्तमः) आनन्दस्वरूप हैं। (पवसे) पवित्र करते हैं। (इन्द्रस्य) प्रकाशयुक्त विद्युदादि पदार्थों में (आत्मा भवसि) व्यापकरूप से विराजमान हो रहे हैं और (धासिरुत्तमः) उत्तमोत्तम गुणों को धारण करा रहे हैं। (बहवो मनीषिणः) बहुत से ज्ञानी विज्ञानी लोग (अभि स्वरन्ति) आपकी स्तुति करते हैं और (अस्य भुवनस्य) इस संसार के (राजानं) प्रकाशक आपको (निंसते) मानते हैं ॥३॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में परमात्मा को आत्मा शब्द से वर्णन किया है। अर्थात् “अतति सर्वत्र व्याप्नोतीति आत्मा” जो सर्वत्र व्यापक हो, उसका नाम आत्मा है। यहाँ सर्वोत्पादक सोम परमात्मा को व्यापकरूप से वर्णन किया है। जो लोग सोम शब्द को जड़लतावाचक ही मानते हैं, उनको इस मन्त्र से शिक्षा लेनी चाहिये कि सोम यहाँ सर्वव्यापक परमात्मा का नाम है ॥३॥

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    विषय

    दयालु प्रभु वा परमेश्वर वा शासक का वर्णन।

    भावार्थ

    हे (इन्दो) दयालो ! ऐश्वर्यवन् ! तेजस्विन् ! तू (अदब्धः) अविनाशी (मदिन्तमः) अति आनन्ददायक होकर (पवसे) सर्वत्र व्याप्त है। तू (इन्द्रस्य आत्मा) ऐश्वर्य-प्रकाश से युक्त सूर्यादि लोक वा जीव गण का (उत्तमः धासिः) सर्वोत्तम धारक पोषक, अन्नवत् एवं (आत्मा भवसि) आत्मा, देह के तुल्य प्रिय, अन्तरंग है। (अस्य भुवनस्य राजानम्) इस भुवन को प्रकाशित करने वाले, इसके परम स्वामी तुझ को (बहवः) बहुत से (मनीषिणः) विद्वान् बुद्धिमान् जन (अभि स्वरन्ति) सर्वत्र गान करते हैं और उपदेश करते हैं। और (निंसते) प्रेमी के समान उसको प्राप्त होते और प्रेम करते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वेनो भार्गव ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ५, ९, १० विराड् जगती। २, ७ निचृज्जगती। ३ जगती॥ ४, ६ पादनिचृज्जगती। ८ आर्ची स्वराड् जगती। ११ भुरिक् त्रिष्टुप्। १२ त्रिष्टुप्॥ द्वादशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    आत्मा इन्द्रस्य भवसि

    पदार्थ

    [१] हे (इन्दो) = हमें शक्तिशाली बनानेवाले सोम ! तू (अदब्धः) = अहिंसित होता हुआ (पवसे) = हमें प्राप्त होता है। शरीर में सोम के सुरक्षित होने पर रोगों व वासनाओं का आक्रमण नहीं हो पाता । यह सोम (मदिन्तम:) = हमें अत्यन्त आनन्दित करनेवाला है । हे सोम ! तू (इन्द्रस्यः) = इस जितेन्द्रिय पुरुष का (आत्मा भवसि) = आत्मा होता है, अर्थात् तेरे बिना तो सब मृत-सा ही है । सोम ही आत्मा है, वह गयी तो बाकी तो एक शव है। तू ही (उत्तमः धासिः) = सर्वोत्तम धारक है । [२] (अस्य भुवनस्य) = इस शरीर रूप लोक के (राजानम्) = दीप्त करनेवाले तुझको ही (बहवः मनीषिणः) = ये बहुत ज्ञानी पुरुष (अभिस्वरन्ति) = स्तुति करते हैं और (निंसते) = प्रीतिपूर्वक तेरे ओर ही आते हैं। इस सोम के बिना इस शरीर राज्य में अन्धकार-ही-अन्धकार है।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोम आनन्द का जनक है, वस्तुतः शरीर का आत्मा ही है, धारक है। इसका साधन करते हुए इसके प्रति हम प्रीतिवाले हों ।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Indu, Spirit of universal love, peace and power, inviolable, awful and imperishable, pure and purifying, most joyous you flow in the dynamics of existence, being the soul of energy and highest wielder of power and sustenance for life. All wise men of serious thought celebrate you in song as the refulgent ruler of this world and pay homage in reverence.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात परमात्म्याला आत्मा शब्दाने वर्णिलेले आहे. अर्थात ‘‘अतति सर्वत्र व्याप्नोतीति आत्मा’’ जो सर्वत्र व्यापक आहे त्याचे नाव आत्मा आहे. येथे सर्वोत्पादक सोम परमात्म्याचे व्यापक रूपाने वर्णन केलेले आहे. जे लोक सोम शब्दाला जडलतावाचकच मानतात. त्यांनी या मंत्राद्वारे शिकले पाहिजे की सोम येथे सर्व व्यापक परमेश्वराचे नाव आहे. ॥३॥

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