ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 9/ मन्त्र 8
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
नू नव्य॑से॒ नवी॑यसे सू॒क्ताय॑ साधया प॒थः । प्र॒त्न॒वद्रो॑चया॒ रुच॑: ॥
स्वर सहित पद पाठनु । नव्य॑से । नवी॑यसे । सु॒ऽउ॒क्ताय॑ । सा॒ध॒य॒ । प॒थः । प्र॒त्न॒ऽवत् । रो॒च॒य॒ । रुचः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
नू नव्यसे नवीयसे सूक्ताय साधया पथः । प्रत्नवद्रोचया रुच: ॥
स्वर रहित पद पाठनु । नव्यसे । नवीयसे । सुऽउक्ताय । साधय । पथः । प्रत्नऽवत् । रोचय । रुचः ॥ ९.९.८
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 9; मन्त्र » 8
अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 33; मन्त्र » 3
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अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 33; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
हे परमात्मन् ! (नव्यसे) नवजीवनं सम्पादयितुं (नु) निश्चयं (नवीयसे, सूक्ताय) नववाणीभ्यः (साधया, पथः) विधिमार्गं विधेहि, पूर्ववच्च (रुचः) स्वदीप्तीः (रोचया) प्रकाशय ॥८॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
हे परमात्मन् ! (नव्यसे) नूतन जीवन बनाने के लिये (नु) निश्चय करके (नवीयसे, सूक्ताय) नयी वाणियों के लिये (साधया, पथः) हमारे लिये रास्ता खोलो और पहले के समान (रुचः) अपनी दीप्तियें (रोचया) प्रकाशित करो ॥८॥
भावार्थ
जो पुरुष अपने जीवन को नित्य नूतन बनाना चाहे, उसका कर्तव्य है कि वह परमात्मा की ज्योति से देदीप्यमान होकर अपने आपको प्रकाशित करे और नित्य नूतन वेदवाणियों से अपने रास्तों को साफ करे अर्थात् वेदोक्त धर्मों पर स्वयं चले और लोगों को चलाये ॥८॥
विषय
प्रभु के समान दीप्त
पदार्थ
[१] हे सोम ! (नु) = अब (नव्यसे) = स्तुति के योग्य, (नवीयसे) = [नवते to go] उत्कृष्ट गतिमय (सूक्ताय) = सूक्त के लिये (पथः) = मार्गों को (साधया) = सिद्ध कर । सोमरक्षण से हमारी रुचि ऐसी बने कि हम प्रभु का स्तवन करें, जो स्तवन प्रशंसनीय व क्रियामय जीवन से युक्त हो । [२] हे सोम ! तू (रुच:) = हमारी कान्तियों को (प्रत्न-वत्) = उस सनातन प्रभु की तरह (रोचया) = दीप्त कर । सोमरक्षण से हमारी दीप्ति प्रभु जैसी हो ।
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षण से हम [क] प्रभु के क्रियामय स्तवन को करनेवाले बनें तथा [ख] प्रभु के समान दीप्तिवाले हों।
विषय
राजा का प्रजाशिक्षण का कर्त्तव्य।
भावार्थ
(नव्यसे) अति स्तुत्य और (नवीयसे) सदा नवीन, नित्य (सूक्ताय) उत्तम वचन के (पथः) ज्ञान के मार्गों को (साधय) हमारे लिये बतला, उनका हमें उपाय दर्शा। और (प्रत्नवत्) पूर्व के समान (रुचः) अपनी कान्तियों और इच्छाओं को (रोचय) प्रकाशित कर और अन्यों को अच्छी लगने वाली अपनी रुचियें प्रकट कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः ॥ पवमानः सोमो देवता। छन्दः- १,३,५, ८ गायत्री। २, ६, ७,९ निचृद् गायत्री॥ नवर्च सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
For sure and in truth, for our latest song of praise and for our new life of divinity, open up the paths of progress so that we reach you with our adorations. O lord of light, shine and illuminate as ever.
मराठी (1)
भावार्थ
जो पुरुष आपले जीवन नित्य नूतन बनवू इच्छितो त्याचे हे कर्तव्य आहे की त्याने परमात्म्याच्या ज्योतीने देदीप्यमान होऊन स्वत:च स्वत:ला प्रकाशित करावे व नित्य नूतन वेदवाणीने आपला मार्ग पवित्र करावा. अर्थात वेदोक्त धर्मावर स्वत: चालावे व लोकांनाही चालवावे. ॥८॥
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