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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1102
    ऋषिः - मनुः सांवरणः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः काण्ड नाम -
    2

    ते꣢ पू꣣ता꣡सो꣢ विप꣣श्चि꣢तः꣣ सो꣡मा꣢सो꣣ द꣡ध्या꣢शिरः । सू꣡रा꣢सो꣣ न꣡ द꣢र्श꣣ता꣡सो꣢ जिग꣣त्न꣡वो꣢ ध्रु꣣वा꣢ घृ꣣ते꣢ ॥११०२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ते꣢ । पू꣣ता꣡सः꣢ । वि꣣पश्चि꣡तः꣢ । वि꣣पः । चि꣡तः꣢꣯ । सो꣡मा꣢꣯सः । द꣡ध्या꣢꣯शिरः । द꣡धि꣢꣯ । आ꣣शिरः । सू꣡रा꣢꣯सः । न । द꣣र्शता꣡सः꣢ । जि꣣ग꣡त्न꣢वः । ध्रु꣣वा꣢ । घृ꣣ते꣢ ॥११०२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ते पूतासो विपश्चितः सोमासो दध्याशिरः । सूरासो न दर्शतासो जिगत्नवो ध्रुवा घृते ॥११०२॥


    स्वर रहित पद पाठ

    ते । पूतासः । विपश्चितः । विपः । चितः । सोमासः । दध्याशिरः । दधि । आशिरः । सूरासः । न । दर्शतासः । जिगत्नवः । ध्रुवा । घृते ॥११०२॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1102
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 20; मन्त्र » 2
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 6; सूक्त » 4; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    अगले मन्त्र में फिर गुरुजन और राजपुरुषों का वर्णन है।

    पदार्थ

    (पूतासः) पवित्र, (विपश्चितः) विद्वान्, (दध्याशिरः) ज्ञान के धारणकर्त्ता और परिपक्व, (सूरासः न) सूर्यों के समान (दर्शतासः) दर्शनीय तथा दृष्टि देनेवाले, (जिगत्नवः) गतिमान् एवं कर्मण्य और (घृते) विवेक के प्रकाश में (ध्रुवाः) स्थिर रहनेवाले जो हों, (ते) वे ही (सोमासः) विद्या, धर्म, आदि की प्रेरणा करनेवाले गुरु और राजपुरुष होवें ॥२॥

    भावार्थ

    जो पवित्र आचरणवाले, विविध विद्याओं को पढ़े हुए, दूसरों की सहायता करनेवाले, परिपक्वमति, सूर्य के समान प्रकाशक, कर्मशूर स्थिर प्रकाशवाले, विघ्नों से बार-बार प्रहार किये जाते हुए भी ग्रहण किये कार्य को न छोड़नेवाले गुरु और राजपुरुष होते हैं, वे ही सफल होते हैं ॥२॥

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    पदार्थ

    (ते सोमासः) वह सोम—शान्तस्वरूप परमात्मा*91 (विपश्चितः) मेधावी जनों को चेतानेवाला महामेधावी (दध्याशिरः) ध्यान से*92 मिश्रण करने वाले उपासक के ध्यान से मेल करने वाला (सूरासः-न दर्शतासः) सूर्य*93 के समान दर्शनीय (जिगत्नवः) सर्वत्र गतिमान् (घृते ध्रुवा) स्वतेज में*94 स्थिर—कभी तेजोहीन न होनेवाला है उसकी उपासना करनी चाहिये॥२॥

    टिप्पणी

    [*91. बहुवचनमादरार्थम्।] [*92. “दध्यङ् प्रत्यक्तो ध्यानमिति वा प्रत्यक्तमस्मिन् ध्यानमिति वा” [निरु॰ १२.३]।] [*93. “सजूः सूरः.....सूर्यमेव प्रीणाति” [मै॰ ३.४.४]।] [*94. “तेजो वै घृतम्” [मै॰ १.६.७]।]

    विशेष

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    विषय

    मननशील व संवरणशील

    पदार्थ

    प्रस्तुत मन्त्रों का ऋषि ‘मनुः'=अत्यन्त मननशील है और वह सांवरण:=सम्यक् उत्तम वरणवाला है। संसार में जीवन की सफलता का रहस्य इसी में है कि विचारशील [मनु] बनकर उत्तम चुनाव ही करें [सांवरण] । (ते) = ऐसे व्यक्ति १. (पूतासः) = पवित्र जीवनवाले होते हैं, २. (विपश्चित:) = विप:-वाणी का (चितः) = चिन्तन करनेवाले उत्तम ज्ञानी होते हैं, ३. (सोमासः) = अत्यन्त विनीत होते हैं, ४. (दध्याशिरः) = [धत्ते इति दधि] सारे संसार का धारण करनेवाले प्रभु का आश्रय करते हैं, ५. (सूरास न) = देदीप्यमान सूर्य के समान होते हैं । ज्ञान के द्वारा सूर्य की भाँति चमकते हैं, ६. (दर्शतासः) = वे दर्शनीय आकृतिवाले होते हैं और ८. (घृते) = देदीप्यमान प्रभु में (जिगत्नवः) = गतिवाले होते हैं, अर्थात् प्रभु के प्रति जानेवाले होते हैं, अन्त में प्रभु को प्राप्त होते हैं । 

    भावार्थ

    मननशील व संवरणशील व्यक्ति प्रभु को प्राप्त करता है ।

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ पुनरपि गुरवो राजपुरुषाश्च वर्ण्यन्ते।

    पदार्थः

    (पूतासः) पवित्राः, (विपश्चितः) विद्वांसः, (दध्याशिरः) ज्ञानधारकाः परिपक्वाश्च। [दधति अन्यान् इति दधयः। ‘आदृगमहनजनः किकिनौ लिट् च। अ० ३।२।१७१’ इत्यनेन डुधाञ् धातोः किन् प्रत्ययः। आश्रीणन्ति स्वात्मानं ये ते आशिरः। आङ्पूर्वः श्रीञ् पाके, क्विपि धातोः शिर आदेशश्छान्दसः।] (सूरासः न) सूर्याः इव (दर्शतासः२) दर्शनीयाः दृष्टिप्रदाश्च, (जिगत्नवः) गतिमन्तः, कर्मण्याः, (घृते) विवेकप्रकाशे (ध्रुवाः) स्थिराः ये स्युः (ते) त एव (सोमासः) विद्याधर्मादिप्रेरकाः गुरवः राजपुरुषाश्च भवेयुः ॥२॥

    भावार्थः

    ये पवित्राचरणा अधीतविविधविद्याः परेषां सहायकाः परिपक्वमतयः सूर्यवत् प्रकाशकाः कर्मशूराः स्थिरप्रकाशा विघ्नैः पुनः पुनः प्रतिहन्यमाना अपि गृहीतं कार्यमपरित्यजन्तो गुरवो राजपुरुषाश्च भवन्ति त एव सफला जायन्ते ॥२॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ९।१०१।१२, ‘पूतासो’, ‘सूरासो’ इत्यत्र ‘पू॒ता’, ‘सूर्या॑सो॒’। २. दर्शतासः सर्वैर्दर्शनीयाः—इति सा०। सर्वस्य द्रष्टारः—इति वि०।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    May Aditya Brahmcharis, pure in heart, advanced in intellect, affable in nature, mature in contemplation, marchers on the path of progress towards God, visit us.

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    Meaning

    These Soma streams, nourishing, energising, illuminating, are bright and beatific as the dawn and, vibrant but unfluctuating, they abide constant in the heart. (Rg. 9-101-12)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (ते सोमासः) તે સોમ-શાન્ત સ્વરૂપ પરમાત્મા (विपश्चितः) મેધાવીજનોને જાગૃત કરનાર મહા મેધાવી, (दध्याशिरः) ધ્યાનથી મિશ્રણ કરનારા ઉપાસકોને ધ્યાનથી મેળ કરાવનાર, (सूरासः न दर्शतासः) સૂર્યની સમાન દર્શનીય, (जिगत्नवः) સર્વત્ર ગતિમાન, (घृते ध्रुवा) પોતાના તેજમાં સ્થિર-કદીપણ તેજ હીન થતો નથી. તેની ઉપાસના કરવી જોઈએ. (૨)
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे पवित्र आचरण करणारे, विविध विद्या प्राप्त करणारे, इतरांना साह्य करणारे, परिपक्तमती, सूर्याप्रमाणे प्रकाशक, कर्मशूर, स्थिर, प्रकाशवान, विघ्नांनी वारंवार प्रहार केला तरी ग्रहण केलेले कार्य न सोडणारे असे जे गुरू व राजपुरुष असतात, तेच सफल होतात. ॥२॥

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