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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1103
    ऋषिः - मनुः सांवरणः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः काण्ड नाम -
    2

    सु꣣ष्वाणा꣢सो꣣ व्य꣡द्रि꣢भि꣣श्चि꣡ता꣢ना꣣ गो꣡रधि꣢꣯ त्व꣣चि꣢ । इ꣡ष꣢म꣣स्म꣡भ्य꣢म꣣भि꣢तः꣣ स꣡म꣢स्वरन्वसु꣣वि꣡दः꣢ ॥११०३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सु꣣ण्वाणा꣡सः꣢ । वि । अ꣡द्रि꣢꣯भिः । अ । द्रि꣣भिः । चि꣡ता꣢꣯नाः । गोः । अ꣡धि꣢꣯ । त्व꣣चि꣢ । इ꣡ष꣢꣯म् । अ꣣स्म꣡भ्य꣢म् । अ꣣भि꣡तः꣢ । सम् । अ꣣स्वरन् । वसुवि꣡दः꣢ । व꣣सु । वि꣡दः꣢꣯ ॥११०३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सुष्वाणासो व्यद्रिभिश्चिताना गोरधि त्वचि । इषमस्मभ्यमभितः समस्वरन्वसुविदः ॥११०३॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सुण्वाणासः । वि । अद्रिभिः । अ । द्रिभिः । चितानाः । गोः । अधि । त्वचि । इषम् । अस्मभ्यम् । अभितः । सम् । अस्वरन् । वसुविदः । वसु । विदः ॥११०३॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1103
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 20; मन्त्र » 3
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 6; सूक्त » 4; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    आगे फिर उन्हीं का वर्णन है।

    पदार्थ

    (अद्रिभिः) मेघों के समान सरस मनों से (सुष्वाणासः) उपदेश देनेवाले, (गोः) राष्ट्रभूमि के (त्वचि अधि) पृष्ठ पर (चितानाः)शिक्षण कला वा राजनीति को जाननेवाले, (वसुविदः) विद्याधन वा सुवर्ण आदि धन को प्राप्त करानेवाले गुरु वा राजपुरुष(इषम्) अभीष्ट ज्ञान वा धन (अस्मभ्यम्) हमारे लिए (अभितः)सब ओर से (समस्वरन्) घोषित करें अर्थात् प्रदान करें ॥३॥

    भावार्थ

    गुरुओं वा राजपुरुषों को विद्वान् कीर्त्तिमान्, विद्योपदेशक तथा अभीष्ट धन आदि प्राप्त करानेवाला होना चाहिए ॥३॥

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    पदार्थ

    (गोः-अधित्वचि) स्तुतिवाणी के*95 प्रस्ताव में*96—प्रबल स्तुतिप्रसङ्ग में (अद्रिभिः) श्लोक*97—प्रशंसा—स्तुति करनेवालों के द्वारा*98 (सुष्वाणासः) सम्यक् उपासित किया हुआ (विचितानः) विशेष चेताने वाला (वसुविदः) ऐश्वर्यप्राप्त—सकलैश्वर्यवान् परमात्मा (अस्मभ्यम्) हम उपासकों के लिए (अभितः) सब ओर से*99 (इषं समस्वरन्) कामना को सम्प्रेरित कर—प्रदान कर*100॥३॥

    टिप्पणी

    [*95. “गौः वाङ् नाम” [निघं॰ १.११]।] [*96. “त्वक् प्रस्तावः” [ज॰ उ॰ १.१२.२.६]।] [*97. “स्वरश्च मे श्लोकश्च मे यज्ञेन कल्पताम्” [तै॰ सं॰ ४.७.१.८]।] [*98. “अद्रिरसि श्लोककृत्” [काठ॰ १.५]।] [*99. “अभितः सर्वतोभावे” [अव्ययार्थ निबन्धने]।] [*100. “स्वरति गतिकर्मा” [निघं॰ २.१४]।]

    विशेष

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    विषय

    आचार्य

    पदार्थ

    १. (सुष्वाणासः) = सदा उत्तम [सु] शब्दों का उच्चारण करनेवाले [स्वान], २. (अद्रिभिः) = आदरणीय गुरुओं में (विचितानाः) = विशिष्ट ज्ञान को प्राप्त कराये जाते हुए, ३. (गोः) = सदा वेदवाणी के (अधित्वचि) = सम्पर्क में रहनेवाले [In touch with] ४. (वसुविदः) = [सर्वत्र वसतीति] सर्वव्यापक प्रभु का साक्षात्कार करनेवाले ज्ञानी लोग (अस्मभ्यम्) = हमारे लिए (इषम्) = वेदवाणी की प्रेरणा को (अभितः) = आचार्यकुल में भी आचार्य कुल से बाहर भी दोनों ओर, सब स्थानों में (समस्वरन्) = उच्चरित करें । आचार्य कैसे हों? इस प्रश्न का उत्तर इन शब्दों में दिया गया है कि वे १. सदा शुभ शब्दों का उच्चारण करनेवाले हों । उनके मुख से विद्यार्थियों के लिए कभी कोई अशुभ शब्द न निकले २. उन्होंने स्वयं आदरणीय गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की हुई हो, ३. वे अपना जीवन वेदवाणी के सम्पर्क में बिता रहे हों । ४. उन्होंने ब्रह्मज्ञान प्राप्त किया हो ।

    ऐसे आचार्य आचार्यकुलों में तो उपदेश देते ही हैं, गृहस्थ बन जाने पर भी इन आचार्यों का ज्ञानोपदेश प्राप्त होता रहे । इनके द्वारा वेदवाणी की प्रेरणा प्राप्त होती रहे ।

    भावार्थ

    उत्तम आचार्यों से हम सदा वेदवाणी की प्रेरणा प्राप्त करें ।

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ पुनरपि त एव वर्ण्यन्ते।

    पदार्थः

    (अद्रिभिः) मेघैरिव सरसैर्मनोभिः (सुष्वाणासः)उपदिशन्तः। [स्वन शब्दे, लिटः कानच्, द्वित्वम्। आज्जसेरसुक्।] (गोः) राष्ट्रभूम्याः (त्वचि अधि) पृष्ठे (चितानाः) शिक्षणकलां राजनीतिं च जानानाः, (वसुविदः) विद्याधनस्य सुवर्णादिधनस्य वा लम्भकाः, सोमासः गुरवो राजपुरुषाश्च (इषम्) अभीष्टं ज्ञानं धनं वा (अस्मभ्यम् अभितः) सर्वतः (समस्वरन्२) घोषयन्तु, प्रयच्छन्तु इति यावत् ॥३॥

    भावार्थः

    गुरुभी राजपुरुषैश्च विद्वद्भिः कीर्तिमद्भिर्विद्योपदेशकैरभीष्ट- धनादिप्रापकैश्च भाव्यम् ॥३॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ–० ९।१०१।११। २. समस्वरन् सम्यक् शब्दयन्ति, प्रयच्छन्तीति यावत्—इति सा०।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Receiving instruction under the guardianship of a noble teacher, and acquiring multifarious knowledge from the learned, may the masters of the knowledge of self, teach us moral law from every side.

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    Meaning

    Reflective, inspiring and generative by controlled operations of higher mind in the purified heart core, let the Soma streams, vibrant and vocal, bring us spiritual energy, intelligential illumination and divine awareness all round in the world. (Rg. 9-101-11)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (गोः अधित्वचि) સ્તુતિ વાણીના પ્રસ્તાવમાં-પ્રબળ સ્તુતિ પ્રસંગમાં (अद्रिभिः) શ્લોક-પ્રશંસાસ્તુતિ કરનારા દ્વારા (सुश्वाणासः) સમ્યક્ ઉપાસિત કરેલ (विचितानः) વિશેષ જાગૃત કરનાર (वसुविदः) ઐશ્વર્ય પ્રાપ્ત-સમસ્ત ઐશ્વર્યવાન પરમાત્મા ! (अस्मभ्यम्) અમને-ઉપાસકોને માટે (अभितः) સર્વત્રથી (इषं समस्वरन्) કામનાને સંપ્રેરિત કર-પ્રદાન કર. (૩)
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    गुरूंनी किंवा राजपुरुषांनी विद्वान, कीर्तिमान, विद्योपदेशक व इच्छित धन प्राप्त करणारे व्हावे. ॥३॥

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