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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1137
ऋषिः - भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्भार्गवो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
2
आ꣢ ते꣣ द꣡क्षं꣢ मयो꣣भु꣢वं꣣ व꣡ह्नि꣢म꣣द्या꣡ वृ꣢णीमहे । पा꣢न्त꣣मा꣡ पु꣢रु꣣स्पृ꣡ह꣢म् ॥११३७॥
स्वर सहित पद पाठआ꣢ । ते꣣ । द꣡क्ष꣢꣯म् । म꣣योभु꣡व꣢म् । म꣣यः । भु꣡व꣢꣯म् । व꣡ह्नि꣢꣯म् । अ꣣द्य꣢ । अ꣣ । द्य꣢ । वृ꣣णीमहे । पा꣡न्त꣢꣯म् । आ । पु꣣रुस्पृ꣡ह꣢म् ॥११३७॥
स्वर रहित मन्त्र
आ ते दक्षं मयोभुवं वह्निमद्या वृणीमहे । पान्तमा पुरुस्पृहम् ॥११३७॥
स्वर रहित पद पाठ
आ । ते । दक्षम् । मयोभुवम् । मयः । भुवम् । वह्निम् । अद्य । अ । द्य । वृणीमहे । पान्तम् । आ । पुरुस्पृहम् ॥११३७॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1137
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 10
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 10
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 10
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 10
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
दसवीं ऋचा पूर्वार्चिक में ४९८ क्रमाङ्क पर परमात्मा के विषय में व्याख्यात हो चुकी है। यहाँ जगदीश्वर और आचार्य को सम्बोधन किया जा रहा है।
पदार्थ
हे पवमान सोम अर्थात् पवित्रतादायक, विद्या-सद्गुणों आदि के प्रेरक जगदीश्वर वा आचार्य ! हम (ते) आपके (मयोभुवम्) सुखजनक, (वह्निम्) जीवनरथ को आगे ले जानेवाले, (पान्तम्) रक्षक, (पुरुस्पृहम्) बहुत चाहने योग्य (दक्षम्) विद्याबल, धर्मबल और सच्चरित्रता के बल को (अद्य) आज (आ वृणीमहे) पाना चाहते हैं ॥१०॥
भावार्थ
परमात्मा और आचार्य से ग्रहण किये गए विद्या, धर्म, तप, तेज, ब्रह्मवर्चस, सच्चरित्रता आदि के बल शिष्यों का कल्याण करनेवाले होते हैं ॥१०॥
पदार्थ
(ते) हे सोम—शान्तस्वरूप परमात्मन्! तेरे (मयोभुवम्) सुख को भावित करने वाले (वह्निम्) निर्वाहक (पान्तम्) पालन रक्षण करने वाले (पुरुस्पृहम्) बहुत स्पृहा योग्य चाहने योग्य (दक्षम्) बलस्वरूप को (अद्य) आज—अभी तुरन्त (आवृणीमहे) अपने अन्दर समन्तरूप से वरते हैं—धारण करते हैं॥१०॥
विशेष
<br>
पदार्थ
४९८ संख्या पर मन्त्रार्थ द्रष्टव्य है ।
संस्कृत (1)
विषयः
दशमी ऋक् पूर्वार्चिके ४९८ क्रमाङ्के परमात्मविषये व्याख्याता। अत्र जगदीश्वर आचार्यश्च सम्बोध्यत।
पदार्थः
हे पवमान सोम पवित्रतादायक विद्यासद्गुणादिप्रेरक जगदीश्वर आचार्य वा ! वयम् (ते) तव (मयोभुवम्) सुखजनकम्, (वह्निम्) जीवनरथस्य वाहकम्, (पान्तम्) रक्षकम्, (पुरुस्पृहम्) बहुस्पृहणीयम् (दक्षम्) विद्याबलं धर्मबलं चारित्र्यबलं च (अद्य) अस्मिन् दिने (आ वृणीमहे) संभजामहे ॥१०॥
भावार्थः
परमात्मन आचार्याच्च गृहीतानि विद्याधर्मतपस्तेजो ब्रह्मवर्चससच्चारित्र्यादिबलानि शिष्याणां कल्याणकराणि जायन्ते ॥१०॥
टिप्पणीः
१. ऋ० ९।६५।२८, साम० ४९८।
इंग्लिश (2)
Meaning
O soul, we always realise thy force, the giver of peace, riches, protection, and desired by all.
Translator Comment
$ See verse 498, अद्य means today literally, i.e., every day.
Meaning
Today here and now, we choose for ourselves and pray for your power, peace and bliss, light and fire which is universally loved, all protective, promotive and all sanctifying. (Rg. 9-65-28)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (ते) હે સોમ-શાન્ત સ્વરૂપ પરમાત્મન!તારા (मयोभुवम्) સુખને ભાવિત કરનારા (वह्निम्) નિર્વાહક (पान्तम्) પાલન, રક્ષણ કરનારા (पुरुस्पृहम्) બહુજ સ્પૃહ કરવા યોગ્ય, ચાહવા યોગ્ય (दक्षम्) બળ સ્વરૂપને (अद्य) આજ-અત્યારે, તુરતજ (आवृणीमहे) અમારી અંદર સમગ્રરૂપથી વરીએ છીએ-ધારણ કરીએ છીએ. (૧૦)
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा व आचार्याकडून ग्रहण केलेले विद्या, धर्म, तप, तेज, ब्रह्मवर्चस, सच्चरित्रता इत्यादीचे बल शिष्यांचे कल्याण करणारे असतात. ॥१०॥
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