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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1136
    ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    2

    अ꣣स्म꣡भ्य꣢ꣳ रोदसी र꣣यिं꣢꣫ मध्वो꣣ वा꣡ज꣢स्य सा꣣त꣡ये꣢ । श्र꣢वो꣣ व꣡सू꣢नि꣣ स꣡ञ्जि꣢तम् ॥११३६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ꣣स्म꣡भ्य꣢म् । रो꣣दसीइ꣡ति꣢ । र꣣यि꣢म् । म꣡ध्वः꣢꣯ । वा꣡ज꣢꣯स्य । सा꣣त꣡ये꣢ । श्र꣡वः꣢꣯ । व꣡सू꣢꣯नि । सम् । जि꣣तम् ॥११३६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अस्मभ्यꣳ रोदसी रयिं मध्वो वाजस्य सातये । श्रवो वसूनि सञ्जितम् ॥११३६॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अस्मभ्यम् । रोदसीइति । रयिम् । मध्वः । वाजस्य । सातये । श्रवः । वसूनि । सम् । जितम् ॥११३६॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1136
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 9
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 9
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    आगे पुनः ज्ञान और ब्रह्मानन्द का ही विषय है।

    पदार्थ

    हे (रोदसी) आत्मा और मन ! तुम दोनों (मध्वः) मधुर सोम की अर्थात् ज्ञानरस और आनन्दरस की (सातये) प्राप्ति के लिए (अस्मभ्यम्) हमारे लिए (रयिम्) भौतिक चाँदी, सोना आदि धन, (श्रवः) यश वा शास्त्रश्रवण और (वसूनि) आध्यात्मिक धारणा, ध्यान, समाधि, योगसिद्धि, विवेकख्याति आदि धन (सञ्जितम्) जीतो ॥९॥

    भावार्थ

    ज्ञान वा ब्रह्मानन्द में मन लगाने के लिए पहले धन, धर्म आदि का उपार्जन अपेक्षित होता है ॥९॥

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    पदार्थ

    (रोदसी) हे विश्व के रोध—तट समान द्युलोक और पृथिवी लोक*49 तुम अपने व्यापक रचयिता (मध्वः-वाजस्य सातये) मधुर सोम*50 शान्तस्वरूप परमात्मा की प्राप्ति के लिए (अस्मभ्यम्) हम उपासकों के लिए (रयिं श्रवः-वसूनि) पोष—पोषण करने योग्य आहार*51 श्रवणीय ज्ञान और बसाने वाले साधनों को (सञ्जितम्) अपने अन्दर सम्पन्न करो॥९॥

    टिप्पणी

    [*49. “रोदसी रोधसी द्यावापृथिव्यौ” [निरु॰ ६.१]।] [*50. “सोमो वै वाजः” [मै॰ ४.५.४]।] [*51. “रयिं देहि पोषं देहि” [काठ॰ १.७]। “पुष्टं वै रयिः” [श॰ २.३.४.१३]।]

    विशेष

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    विषय

    रयि, श्रव, वसु

    पदार्थ

    (अस्मभ्यम्) = हमारे लिए (रोदसी) = द्युलोक और पृथिवीलोक, अर्थात् सारा ब्रह्माण्ड (मध्वः) = आनन्द की तथा (वाजस्य) = शक्ति की (सातये) = प्राप्ति के लिए (रयिम्) = धन को (श्रवः) = ज्ञान को तथा (वसूनि) = निवास के लिए जीवनोपयोगी वस्तुओं को (सञ्जितम्) = विजय करे ।

    सारा संसार हमारे लिए इस प्रकार अनुकूलतावाला हो कि हम 'आनन्द और शक्ति' का लाभ कर सकें। इसी उद्देश्य से हम उचित धन, ज्ञान व अन्य जीवनोपयोगी वस्तुओं को जुटाएँ । इनके बिना आनन्द व शक्ति की प्राप्ति सम्भव नहीं है ।

    भावार्थ

    रयि, श्रव व वसु के द्वारा हम मधु व वाज का लाभ करें।

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ पुनरपि ज्ञानस्य ब्रह्मानन्दस्य च विषयमाह।

    पदार्थः

    हे (रोदसी) आत्ममनसी ! युवाम् (मध्वः) मधुरस्य सोमस्य ज्ञानरसस्य आनन्दरसस्य चेत्यर्थः (सातये) प्राप्तये (अस्मभ्यम्) नः (रयिम्) भौतिकं रजतहिरण्यादिकं धनम्, (श्रवः२) यशः शास्त्रश्रवणं च, (वसूनि) आध्यात्मिकानि धारणाध्यानसमाधियोगसिद्धिविवेकख्यातिप्रभृतानि धनानि च (संजितम्) संजयतम् ॥९॥

    भावार्थः

    ज्ञाने ब्रह्मानन्दे वा मनो निवेशयितुं पूर्वं धनधर्मादीनामुपार्जनमपेक्ष्यते ॥९॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ९।७।९। २. श्रवः अन्नं यशो बलं वा—इति वि०।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O Ye Heaven and Earth, to make us win knowledge and happiness, grant us control over riches, renown and cattle !

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    Meaning

    May heaven and earth lead us to acquisition of wealth, sweet homes, honour, excellence and fame for winning the higher victories of life. (Rg. 9-7-9)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    ભાવાર્થ : (रोदसी) હે વિશ્વના રોધ-તટ સમાન દ્યુલોક અને પૃથિવીલોક તમે તમારા વ્યાપક રચયિતા (मध्वः वाजस्य सातये) મધુર સોમ-શાન્ત સ્વરૂપ પરમાત્માની પ્રાપ્તિને માટે (अस्मभ्यम्) અમારે-ઉપાસકોને માટે (रयिं श्रवः वसूनि) પોષ-પોષણ કરવા યોગ્ય આહાર, શ્રવણીય જ્ઞાન અને વસાવનાર-જીવનોપયોગી સાધનોને (सञ्जितम्) અમારી અંદર સંપન્ન કરો-આપો. (૯)
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    ज्ञान किंवा ब्रह्मानंदामध्ये मन गुंतविण्यासाठी प्रथम धन, धर्म इत्यादींचे उपार्जन अपेक्षित आहे. ॥९॥

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