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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1272
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
2
ए꣣ष꣡ वसू꣢꣯नि पिब्द꣣नः꣡ परु꣢꣯षा꣣ ययि꣣वा꣡ꣳ अति꣢꣯ । अ꣢व꣣ शा꣡दे꣢षु गच्छति ॥१२७२॥
स्वर सहित पद पाठए꣣षः꣢ । व꣡सू꣢꣯नि । पि꣣ब्दनः꣢ । प꣡रु꣢꣯षा । य꣣यि꣢वान् । अ꣡ति꣢꣯ । अ꣡व꣢꣯ । शा꣡दे꣢꣯षु । ग꣣च्छति ॥१२७२॥
स्वर रहित मन्त्र
एष वसूनि पिब्दनः परुषा ययिवाꣳ अति । अव शादेषु गच्छति ॥१२७२॥
स्वर रहित पद पाठ
एषः । वसूनि । पिब्दनः । परुषा । ययिवान् । अति । अव । शादेषु । गच्छति ॥१२७२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1272
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 7
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 7
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 7
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 7
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
अगले मन्त्र में यह वर्णन है कि कैसा जीवात्मा कहाँ परमात्मा का अनुभव करता है।
पदार्थ
(पिब्दनः) जो स्वयं उपासना रस का स्वाद लेता हुआ उसे दूसरों को भी देता है, ऐसा (एषः) यह जीवात्मा (परुषा) कठोर परिणामवाले (वसूनि) भौतिक धनों को (अति ययिवान्) छोड़कर (शादेषु) शाद्वलस्थलों में (अवगच्छति) परमात्मा का अनुभव करता है ॥७॥
भावार्थ
घास आदि से हरे-भरे रमणीक प्रदेशों में परमात्मा की विभूति का दर्शन सुगम होता है। कहा भी है—पर्वतों के एकान्त में, नदियों के सङ्गम पर ध्यान द्वारा सर्वज्ञ परमेश्वर प्रकट होता है (साम० १४३) ॥७॥
पदार्थ
(एषः) यह सोम—परमात्मा (परुषा वसूनि) कठोर आच्छादक अध्यात्म सद्भावों के आवरक काम आदि दुर्वृत्तों को (पिब्दनः) नाशक५ (अतिययिवान्) दूर कर जाता है—भगा देता है (शादेषु-अवगच्छति) वह उपासक के अन्दर रहने वाले—शादों—शातनीयों—नाशनीयों—छिपे हुओं को जानता है॥७॥
विशेष
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विषय
अच्छाई का कारण
पदार्थ
(एष:) = यह १. (वसूनि) = [वसु-goods] अच्छाइयों का – उत्तमताओं का (पिब्दन:) = पान करनेवाला है, उत्तमताओं का चयन करनेवाला है । २. (परुषा) = कठोरताओं [cruelty] का (अतिययिवान्) = उल्लंघन करनेवाला बनता है। अपने जीवन में कठोरता को स्थान नहीं देता, क्योंकि दया 'मानवता' की सूचक है और कठोरता 'पशुता' की । Human अवश्य Humane होता है। मनुष्यता दया में निहित है। ३. यह असित अच्छाइयों का ग्रहण करता हुआ क्रूरता को अपने से परे फेंकता हुआ (शादेषु) = [शीयन्ते नश्यन्ति अनेन इति] नष्ट करनेवाली वासनाओं पर (अवगच्छति) = आक्रमण करता है । वासनाओं को नष्ट करके अपने को नाश से बचाता है ।
भावार्थ
१. हमें अच्छाई को अपने अन्दर ग्रहण करना चाहिए, २. कठोरता को दूर करना चाहिए, ३. वासनाओं का अन्त करने के लिए सतत प्रयत्न करना चाहिए ।
संस्कृत (1)
विषयः
अथ कीदृशो जीवात्मा कुत्र परमात्मानमनुभवतीत्याह।
पदार्थः
(पिब्दनः२) पिबन् स्वयमुपासनारसमास्वादयन् तम् अन्येभ्यो ददाति यः सः३ (एषः) अयं जीवात्मा (परुषा) परुषाणि परिणतौ कठोराणि (वसूनि) भौतिकधनानि (अति ययिवान्) अतिक्रान्तवान् सन् (शादेषु) शाद्वलेषु शष्पप्रदेशेषु४(अवगच्छति) परमात्मानं जानाति अनुभवति ॥७॥
भावार्थः
शष्पादिना हरितेषु रमणीकेषु स्थलेषु परमात्मनो विभूतिदर्शनं सुकरं भवति। तथा च श्रुतिः—उ꣣पह्वरे꣡ गि꣢री꣣णां꣡ स꣢ङ्ग꣣मे꣡ च꣢ न꣣दी꣡ना꣢म् धि꣣या विप्रा अजायत (साम० १४३) इति ॥७॥
टिप्पणीः
१. ऋ० ९।१५।६ ‘पिब्द॒ना’ इति भेदः। २. पिब्दनः पीडयन्—इति सा०। पिबमानः सोमलक्षणानि—इति वि०। ३. ‘पिब्दनः’ इति पदं पदकारेण नावगृहीतम्, अस्पष्टार्थत्वात्। ४. शादो जम्बालशष्पयोः इत्यमरः (३।३।९०)।
इंग्लिश (2)
Meaning
A learned person, urging the breaths, and crossing each stage of advancement, enters severe austerities.
Meaning
It moves and overcomes hard and rough places of hidden hoarded wealth of negative powers and goes over to protect the powers that observe divine discipline in the battles of life. (Rg. 9-15-6)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (एषः) એ સોમ-પરમાત્મા (परुषा वसूनि) કઠોર આચ્છાદક અધ્યાત્મ સદ્ભાવોનાં આવરક કામ આદિ દુર્વ્રતોને (पिब्दनः) નાશક (अतिययिवान्) દૂર કરી જાય છે-ભગાવી દે છે. (शादेषु अवगच्छति) તે ઉપાસકોની અંદર રહેનારા-શાદો-શાતનીયો-નાશનીયો-છૂપાયેલાને જાણે છે. (૭)
मराठी (1)
भावार्थ
हरित तृणांनी आच्छादित रमणीय प्रदेशात परमेश्वराच्या विभूतीचे दर्शन सुगमतेने होते. असे म्हटलेले आहे - पर्वताच्या एकांतात, नद्यांच्या संगमावर ध्यानाद्वारे सर्वज्ञ परमेश्वर प्रकट होतो (सामवेद १४३) ॥७॥
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