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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1274
    ऋषिः - राहूगण आङ्गिरसः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    2

    ए꣣ष꣢ उ꣣ स्य꣢꣫ वृषा꣣ र꣢꣫थोऽव्या꣣ वारे꣡भि꣢रव्यत । ग꣢च्छ꣣न्वा꣡ज꣢ꣳ सह꣣स्रि꣡ण꣢म् ॥१२७४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए꣣षः꣢ । उ꣣ । स्यः꣢ । वृ꣡षा꣢꣯ । र꣡थः꣢꣯ । अ꣡व्याः꣢꣯ । वा꣡रे꣢꣯भिः । अ꣣व्यत । ग꣡च्छ꣢꣯न् । वा꣡ज꣢꣯म् । स꣣हस्रि꣡ण꣢म् ॥१२७४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एष उ स्य वृषा रथोऽव्या वारेभिरव्यत । गच्छन्वाजꣳ सहस्रिणम् ॥१२७४॥


    स्वर रहित पद पाठ

    एषः । उ । स्यः । वृषा । रथः । अव्याः । वारेभिः । अव्यत । गच्छन् । वाजम् । सहस्रिणम् ॥१२७४॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1274
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 1
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    प्रथम मन्त्र में जीवात्मा का विषय वर्णित किया गया है।

    पदार्थ

    (सहस्रिणम्) सहस्र ऐश्वर्यों से युक्त (वाजम्) बल को (गच्छन्) प्राप्त करता हुआ (एषः उ) यह (स्यः) वह (वृषा) सुखवर्षी (रथः) गतिशील सोम जीवात्मा (अव्याः वारेभिः) रक्षा करनेवाली जगन्माता के दोष-निवारक उपायों से (अव्यत) रक्षा किया जाता है ॥१॥

    भावार्थ

    जगन्माता की उपासना से मनुष्य के दोष दूर होते हैं और उसमें सद्गुण समा जाते हैं ॥१॥

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    पदार्थ

    (एषः-स्यः-उ) यह वही (वृषा रथः) कामनावर्षक रमणीय रसरूप स्तोम—परमात्मा (अव्याः-वारेभिः-अज्यते) पृथिवी७—पार्थिव देह के साधन द्वारों८ श्रोत्र, मन, बुद्धि, चित्त, अहङ्कारों से श्रवण, मनन आदि करने से व्यक्त—साक्षात् किया जाता है (सहस्रिणं वाजं गच्छन्) सहस्रों के ऊपर—सर्वोच्च अमृत अन्नभोग को९ प्राप्त कराने के हेतु१०॥१॥

    विशेष

    ऋषिः—रहूगणः (विषयों से रहित परमात्मप्राप्ति के लिये गणा वाणी—स्तुतिवाणी६ जिसकी है ऐसा उपासक)॥<br>देवता—पवमानः सोमः (आनन्दधारा में आता हुआ परमात्मा)॥ छन्दः—गायत्री॥

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    विषय

    ‘हिताशी हो' राहूगण, आङ्गिरस

    पदार्थ

    इस संसार में जो व्यक्ति प्रभु की ओर चलता है (उ) = निश्चय से (स्यः) = वह व्यक्ति (वृषा) = शक्तिशाली बनता है, २. (रथः) = रमणीय स्वरूपवाला होता है, [ऋ० १.५८.३ द०], ३. (अव्याः) = पृथिवी के [अवि—पृथिवी – शत० ६.१.२.३३] (वारेभिः) = वरणीय पदार्थों से (अव्यत) = सुरक्षित किया जाता है। यह पृथिवी उत्पन्न वरणीय पदार्थों का ही सेवन करता है, परिणामतः इसका स्वास्थ्य ठीक बना रहता है, इसका शरीर शक्तिशाली होता है और स्वरूप रमणीय । यह शक्तिशाली, रमणीय स्वरूपवाला व्यक्ति ‘आङ्गिरस'=अङ्ग-अङ्ग में रसवाला, एक-एक अङ्ग में शक्तिवाला होता है, क्योंकि यह वरणीय पदार्थों का ही सेवन करता है, अन्य पदार्थों को त्याग देता है, अत: 'राहूगण' = त्यागियों में गिना जानेवाला कहलाता है। यह स्वादवश त्याज्य पदार्थों का सेवन नहीं करता, इसीलिए यह (सहस्त्रिणम्) = सहस्र पुरुषों के (वाजम्) = बल को (गच्छन्) = प्राप्त होता है [शतृ-लट्; गच्छति] । इसके शरीर की शक्ति सदा ठीक बनी रहती है ।

    भावार्थ

    अनन्त, अक्षीण बल को प्राप्त करने के लिए हम हितकर पदार्थों का ही सेवन करें। 

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    तत्रादौ जीवात्मविषय उच्यते।

    पदार्थः

    (सहस्रिणम्) सहस्रैश्वर्योपेतम् (वाजम्) बलम् (गच्छन्) प्राप्नुवन् (एषः उ) अयं खलु (स्यः) सः (वृषा) सुखवर्षकः, (रथः) रंहणशीलः सोमः जीवात्मा। [रथो रंहतेर्गतिकर्मणः निरु० ९।११।] (अव्याः वारेभिः) रक्षिकाया जगन्मातुः दोषनिवारकैरुपायैः (अव्यत) रक्ष्यते। [अवतेः रक्षणार्थात् कर्मणि लङि रूपम्। आडागमाभावश्छान्दसः] ॥१॥

    भावार्थः

    जगदम्बाया उपासनेन मानवस्य दोषा अपगच्छन्ति सद्गुणाश्च तस्मिन् समायान्ति ॥१॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ९।३८।१, ‘रथोऽव्यो॒ वारे॑भिरर्षति’ इति पाठः।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    An aspirant after emancipation raining happiness, ever active, acquiring knowledge, the giver of a thousand joys, treads on the path of salvation, through excellent accomplishments of mental power.

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    Meaning

    This Soma spirit of joy in existence, mighty generous, all protective omnipresent mover, extremely charming, creating and giving thousand folds of wealth, honour and excellence, vibrates by its dynamic presence at the highest and brightest in the heart of choice souls and in choice beauties of existence. (Rg. 9-38-1)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (एषः स्यः उ) એ તે જ (वृषा रथः) કામનાવર્ષક રમણીય રસરૂપ સ્તોમ-પરમાત્મા (अव्याः वारेभिः अज्यते) પૃથિવી-પાર્થિવદેહનાં સાધનો દ્વારો-શ્રોત્ર, મન, બુદ્ધિ, ચિત્ત, અહંકારથી શ્રવણ, મનન આદિ કરવાથી વ્યક્ત-સાક્ષાત્ કરવામાં આવે છે. (सहस्रिणं वाजं गच्छन्) હજારોથી ઉપર-સર્વોચ્ચ અમૃત અન્નભોગને પ્રાપ્ત કરાવવા માટે. [સાક્ષાત્ કરવામાં આવે છે.] (૧)
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जगन्मातेच्या उपासनेने माणसाचे दोष दूर होतात व त्याच्यामध्ये सद्गुण समाविष्ट होतात. ॥१॥

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