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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1275
ऋषिः - राहूगण आङ्गिरसः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
2
ए꣣तं꣢ त्रि꣣त꣢स्य꣣ यो꣡ष꣢णो꣣ ह꣡रि꣢ꣳ हिन्व꣣न्त्य꣡द्रि꣢भिः । इ꣢न्दु꣣मि꣡न्द्रा꣢य पी꣣त꣡ये꣢ ॥१२७५॥
स्वर सहित पद पाठए꣣त꣢म् । त्रि꣣त꣡स्य꣢ । यो꣡ष꣢꣯णः । ह꣡रि꣢꣯म् । हि꣣न्वन्ति । अ꣡द्रि꣢꣯भिः । अ । द्रि꣣भिः । इ꣡न्दु꣢꣯म् । इ꣡न्द्रा꣢꣯य । पी꣣त꣡ये꣢ ॥१२७५॥
स्वर रहित मन्त्र
एतं त्रितस्य योषणो हरिꣳ हिन्वन्त्यद्रिभिः । इन्दुमिन्द्राय पीतये ॥१२७५॥
स्वर रहित पद पाठ
एतम् । त्रितस्य । योषणः । हरिम् । हिन्वन्ति । अद्रिभिः । अ । द्रिभिः । इन्दुम् । इन्द्राय । पीतये ॥१२७५॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1275
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
अगले मन्त्र में परमात्मा के दर्शन का विषय है।
पदार्थ
(त्रितस्य) धारणावती बुद्धि में बहुत अधिक बढ़े हुए उपासक की (योषणः) ध्यानवृत्तियाँ (एतम्) इस (हरिम्) दोषहर्ता (इन्दुम्) रसनिधि परमेश्वर को (इन्द्राय पीतये) जीवात्मा द्वारा पिये जाने के लिए (अद्रिभिः) प्रणव-जप आदि रूप सिल-बट्टों से (हिन्वन्ति) प्रेरित करती हैं ॥२॥
भावार्थ
योगाभ्यास द्वारा मनुष्य परमात्मा का साक्षात्कार करने में समर्थ हो सकता है ॥२॥
पदार्थ
(एतं हरिम्-इन्दुम्) इस दुःखापहर्ता सुखाहर्ता आनन्दरसपूर्ण परमात्मा को (त्रितस्य) स्थूल, सूक्ष्म, कारण शरीरगत—इन्द्र—आत्मा की (योषणः-अद्रिभिः) प्रीति साधने वाले मन, बुद्धि, चित्त, अहङ्कार, वाक्, इन्द्रियाँ श्लोक प्रशंसा स्तुति करने वाले१ (हिन्वन्ति) आत्मा की ओर प्रेरित करते हैं (इन्द्राय पीतये) आत्मा के पान करने के लिये॥२॥
विशेष
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विषय
दृढ़-सङ्कल्प
पदार्थ
(एतं हरिम्) = इस सब आधि-व्याधि व उपाधियों के हरनेवाले प्रभु को (त्रितस्य) = इस तीर्णतमअत्यन्त प्रबल‘काम, क्रोध, लोभ' रूप त्रिक [Traid] के (योषण:) = नष्ट करनेवाले [यूष हिंसायाम्], (अद्रिभिः) = न नष्ट करने योग्य [अविदारणीय], दृढ़-सङ्कल्पों से (हिन्वन्ति) = प्राप्त होते हैं। प्रभुप्राप्ति के लिए दो बातें आवश्यक हैं – १. काम, क्रोध, लोभ का नाश करना । २. प्रभु-प्राप्ति का दृढ़-सङ्कल्प। दृढ़-सङ्कल्प के बिना कामादि का नष्ट करना भी कठिन है।
ये (इन्दुम्) = परमैश्वर्यशाली, सर्वशक्तिमान् प्रभु को प्राप्त करने का इसलिए दृढ़-सङ्कल्प करते हैं कि प्रभु-प्राप्ति से ही १. (इन्द्राय) = परमैश्वर्य व शक्ति को प्राप्त करके हमें इन्द्र बनना है [इन्द्राय=इन्द्रत्व की प्राप्ति के लिए] तथा २. (पीतये) = रक्षा के लिए । प्रभु से सुरक्षित होकर ही हम अपने को वासनाओं से सुरक्षित कर पाते हैं।
इस प्रकार प्रभु-प्राप्ति के लिए दो साधन हैं – १. काम, क्रोध, लोभ के त्रित से ऊपर उठना तथा २. दृढ़-सङ्कल्प । ही इसके फल हैं— १. परमैश्वर्य की प्राप्ति और २. वासनाओं के आक्रमण से रक्षा ।
भावार्थ
हम प्रभु-प्राप्ति के लिए कटिबद्ध होकर जीवन-यात्रा में आगे बढ़ें।
संस्कृत (1)
विषयः
अथ परमात्मदर्शनविषयमाह।
पदार्थः
(त्रितस्य) मेधया तीर्णतमस्य उपासकस्य। [त्रितस्तीर्णतमो मेधया। निरु० ४।६।] (योषणः) ध्यानवृत्तयः। [याः युवन्ति मेलयन्ति परमात्मानं जीवात्मना सह ताः योषणः। यु मिश्रणामिश्रणयोः, अदादिः।] (एतम्) इमम् (हरिम्) दोषहर्तारम् (इन्दुम्) रसनिधिं परमेश्वरम् (इन्द्राय पीतये) जीवात्मनः पानाय (अद्रिभिः) प्रणवजपादिरूपैः पाषाणैः (हिन्वन्ति) प्रेरयन्ति ॥२॥
भावार्थः
योगाभ्यासेन मनुष्यः परमात्मानं साक्षात्कर्त्तुं क्षमते ॥२॥
टिप्पणीः
१. ऋ० ९।३२।२, साम० ७७१। उभयत्र ‘आदीं॑ त्रि॒तस्य॒’ इति भेदः, ऋषिश्च श्यावाश्व आत्रेयः। ऋ० ९।३८।२।
इंग्लिश (2)
Meaning
The organs of an ascetic, longing to be freed from threefold pains, enhance through different expedients, the strength of his soul, the alleviator of sufferings. They desire the soul to enjoy the bliss of God.
Translator Comment
Threefold: Spiritual, Physical, Elemental. They refers to the organs.
Meaning
This Spirit of joy, eliminator of suffering, happy voices of the sage past three bondages of body, mind and soul adore, with the intensity of adamantine meditation for the spiritual joy of general humanity. (Rg. 9-38-2)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (एतं हरिम् इन्दुम्) એ દુઃખહર્તા, સુખદાતા, આનંદરસપૂર્ણ પરમાત્માને (त्रितस्य) સ્થૂલ, સૂક્ષ્મ અને કારણ શરીરગત-ઇન્દ્ર-આત્માની (योषणः अद्रिभिः) પ્રીતિ સાધનારા મન, બુદ્ધિ, ચિત્ત, અહંકાર, વાણી, ઇન્દ્રિયો, શ્લોક પ્રશંસા સ્તુતિ કરનારા (इन्द्राय पीतये) આત્માને પાન કરવા માટે (हिन्वन्ति) આત્મા તરફ પ્રેરિત કરે છે. (૨)
मराठी (1)
भावार्थ
योगाभ्यासाद्वारे माणूस परमात्म्याचा साक्षात्कार करण्यास समर्थ होऊ शकतो. ॥२॥
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