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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1276
    ऋषिः - राहूगण आङ्गिरसः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    2

    ए꣣ष꣡ स्य मानु꣢꣯षी꣣ष्वा꣢ श्ये꣣नो꣢꣫ न वि꣣क्षु꣡ सी꣢दति । ग꣡च्छ꣢ञ्जा꣣रो꣢꣫ न यो꣣षि꣡त꣢म् ॥१२७६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए꣣षः꣢ । स्यः । मा꣡नु꣢꣯षीषु । आ । श्ये꣣नः꣢ । न । वि꣣क्षु꣢ । सी꣣दति । ग꣡च्छ꣢꣯न् । जा꣣रः꣢ । न । यो꣣षि꣡त꣢म् ॥१२७६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एष स्य मानुषीष्वा श्येनो न विक्षु सीदति । गच्छञ्जारो न योषितम् ॥१२७६॥


    स्वर रहित पद पाठ

    एषः । स्यः । मानुषीषु । आ । श्येनः । न । विक्षु । सीदति । गच्छन् । जारः । न । योषितम् ॥१२७६॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1276
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 3
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    अगले मन्त्र में परमात्मा की कृपा का वर्णन है।

    पदार्थ

    (योषितम्) पत्नी के पास (गच्छन्) प्रेम से जाते हुए (जारः न) पति के समान (गच्छन्) धार्मिक प्रजा के पास प्रेम से जाता हुआ (एषः स्यः) यह वह सोम अर्थात् रसागार परमेश्वर (श्येनः न) सूर्य के समान (मानुषीषु विक्षु) मानवी प्रजाओं में (आसीदति) स्थित है ॥३॥ यहाँ उपमालङ्कार है ॥३॥

    भावार्थ

    पति जैसे पत्नी से स्नेह करता है, वैसे ही परमेश्वर धार्मिक प्रजा से स्नेह करता है। जैसे आकाश में स्थित सूर्य सब प्रजाओं को भौतिक प्रकाश देकर अनुगृहीत करता है, वैसे ही परमेश्वर दिव्य प्रकाश देकर ॥३॥

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    पदार्थ

    (एषः-स्यः) यह वह सोम—परमात्मा (श्येनः-न) प्रशंसनीय गति वाले भास—वाज पक्षी के समान (मानुषीषु विक्षु-आसीदति) मननशील प्रजाओं में समन्तरूप से आ जाता है (जारः-न-योषितम् गच्छन्) अर्चनीय स्वामी२ जैसे सेवक को३ सेवार्थ प्राप्त होता है॥३॥

    विशेष

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    विषय

    यह मानव से प्रेम करता है

    पदार्थ

    (एषः स्यः) = दृढ़-सङ्कल्प द्वारा प्रभु को प्राप्त करनेवाला यह भक्त (मानुषीषु विक्षु) = मानव प्रजाओं में (श्येन: न:) = बड़ी शंसनीय गतिवाला होकर (आसीदति) = विराजमान होता है । यह अपने ही आनन्द के लिए किसी पर्वत-कन्दरा में एकान्त स्थान नहीं ढूँढता । यह मनुष्यों में ही विचरता है। वहाँ रहते हुए यह सदा क्रियाशील बनता है, लोकहित में लगा रहता है और इसकी ये सब क्रियाएँ अत्यन्त प्रशस्त होती हैं ।

    यह मानव प्रजा को इस प्रकार (गच्छन्) = जानेवाला – प्राप्त होनेवाला होता है (न) = जैसे (जार:) = एक प्रेमी [Lover] (योषितम्) = अपनी प्रेमिका स्त्री को प्राप्त होता है । अथवा (जारः) = जरिता=स्तोता (न) = जैसे (योषितम्) = [यु मिश्रण-अमिश्रण] शुभ से जोड़ने व अशुभ से पृथक् करनेवाले प्रभु से प्रेम करता है। जैसे स्तोता का प्रभु से प्रेम है वैसे ही इस 'राहूगण आङ्गिरस' = स्वार्थ से ऊपर उठे, शक्तिशाली पुरुष का मानव प्रजा से प्रेम होता है । यह उनका हित करने में एक आनन्द का अनुभव करता है ।

    भावार्थ

    एक प्रभुभक्त मानवहित में रत रहता है । ('सर्वभूतहिते रतः') ही तो प्रभु का सच्चा भक्त है।

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ परमात्मनोऽनुग्रहं प्रदर्शयति।

    पदार्थः

    (योषितम्) जायां (गच्छन्) प्रेम्णा व्रजन् (जारः न) पतिः इव (गच्छन्) धार्मिकीं प्रजां प्रेम्णा व्रजन् (एषः स्यः) अयं सः सोमः रसागारः परमेश्वरः (श्येनः न) आदित्यः इव। [श्येन आदित्यो भवति, श्यायतेर्गतिकर्मणः। निरु० १४।१३।] (मानुषीषु विक्षु) मानवीषु प्रजासु (आ सीदति) आतिष्ठति ॥३॥ अत्रोपमालङ्कारः ॥३॥

    भावार्थः

    पतिर्यथा जायायां स्निह्यति तथा परमेश्वरो धार्मिक्यां प्रजायां स्निह्यति। यथा च दिवि तिष्ठन् सूर्यः सर्वाः प्रजा भौतिकप्रकाशप्रदानेनानुगृह्णाति तथैव परमेश्वरो दिव्यप्रकाशप्रदानेन ॥३॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ९।३८।४।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    A Yogi like a falcon quickly settles down amid the families of men, just as a husband goes eagerly to his beloved wife.

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    Meaning

    This Soma pervades and shines in the generality of humanity like the eagle among birds, victorious conqueror of the skies, shining and radiating like the moon, lover and admirer of its darling, the lovely night. (Rg. 9-38-4)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (एषः स्यः) એ તે સોમ-પરમાત્મા (श्येनः न) પ્રશંસનીય ગતિમાન બાજ પક્ષી સમાન (मानुषीषु विक्षु आसीदति) મનનશીલ પ્રજાઓમાં સમગ્રરૂપથી આવી જાય છે (जारः न योषितम् गच्छन्) અર્ચનીય સ્વામી જેમ સેવકને સેવા માટે પ્રાપ્ત થાય છે. (૩)
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    पती जसा पत्नीला स्नेह करतो, तसेच परमेश्वर धार्मिक प्रजेला स्नेह करतो. जसा आकाशात स्थित सूर्य सर्व लोकांना भौतिक प्रकाश देऊन अनुगृहित करतो, तसेच परमेश्वर दिव्य प्रकाश देतो. ॥३॥

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