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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1289
    ऋषिः - नृमेध आङ्गिरसः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    2

    ए꣣ष꣢ ग꣣व्यु꣡र꣢चिक्रद꣣त्प꣡व꣢मानो हिरण्य꣣युः꣢ । इ꣡न्दुः꣢ सत्रा꣣जि꣡दस्तृ꣢꣯तः ॥१२८९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए꣣षः꣢ । ग꣣व्युः꣢ । अ꣣चिक्रदत् । प꣡व꣢꣯मानः । हि꣣रण्य꣢युः । इ꣡न्दुः꣢꣯ । स꣣त्राजि꣢त् । स꣣त्रा । जि꣢त् । अ꣡स्तृ꣢꣯तः । अ । स्तृ꣣तः ॥१२८९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एष गव्युरचिक्रदत्पवमानो हिरण्ययुः । इन्दुः सत्राजिदस्तृतः ॥१२८९॥


    स्वर रहित पद पाठ

    एषः । गव्युः । अचिक्रदत् । पवमानः । हिरण्ययुः । इन्दुः । सत्राजित् । सत्रा । जित् । अस्तृतः । अ । स्तृतः ॥१२८९॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1289
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 6; मन्त्र » 4
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 5; सूक्त » 1; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    आगे फिर पुनः परमात्मा का विषय वर्णित है।

    पदार्थ

    (एषः) यह (गव्युः) उपासकों को वेद-वाणियाँ प्राप्त कराना चाहता हुआ, (हिरण्ययुः) यश और ज्योति प्राप्त कराना चाहता हुआ, (सत्राजित्) एक साथ सब काम, क्रोध आदि शत्रुओं को जीत लेनेवाला (पवमानः) पवित्रताकारक, (इन्दुः) आनन्दरस से भिगोनेवाला तेजस्वी परमेश्वर (अचिक्रदत्) हमें अपने समीप बुला रहा है ॥४॥

    भावार्थ

    परमेश्वर सदा ही उपासकों के साथ मित्रता स्थापित करने के लिए उद्यत रहता है ॥४॥

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    पदार्थ

    (एषः पवमानः) यह आनन्दधारा में प्राप्त होने वाला (इन्दुः) रसीला परमात्मा (अस्तृतः) अहिंसित (सत्राजित्) सबको समन्तरूप से जीतने—स्वाधिकार में रखनेवाला२ (गव्युः) हमारे लिये वाणी का इच्छुक (हिरण्ययुः) अमृत का इच्छुक३ (अचिक्रदत्) साधु वचन बोलता हुआ प्राप्त होता है॥४॥

    विशेष

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    विषय

    नृमेध के जीवन की सात बातें

    पदार्थ

    (एषः) = यह नृमेध १. (गव्युः) = [गौ:-वेदवाणी] वेदवाणी को अपने साथ जोड़ने की कामनावाला होता है— अथवा [गाव: इन्द्रियाणि] इन्द्रियशक्तियों को अपने साथ सम्बद्ध करता है । २. (अचिक्रदत्) = निरन्तर प्रभु का आह्वान करता है - प्रभु के नामों का जप करता हुआ अपने जीवन के लक्ष्य को ऊँचा बनानेवाला होता है । ३. (पवमानः) = प्रभु-स्मरण द्वारा वासनाओं की मैल को धो डालता है । ४. (हिरण्ययुः) = पवित्र बनकर यह [हिरण्यं - ज्योतिः] ज्योति को अपने साथ जोड़ता है, ५. साथ ही (इन्दुः) = [इन्द् to be powerful ] शक्तिशाली होता है। पवमान बनकर अपने जीवन को वासनाओं से आक्रान्त न होने देने के दो ही परिणाम हैं— [क] उसका ज्ञान बढ़ता है और [ख] उसकी शक्ति में वृद्धि होती है । ६. यह (सत्राजित्) = [सत्र- आजित्, सत्रं Virtue, wealth] सब गुणों और धनों का विजेता होता है । ७. (अस्तृतः) = अहिंसित रहता है । कामादि शत्रु इनकी हिंसा नहीं कर पाते ।

    भावार्थ

    हम ज्ञान को चाहें, इन्द्रिय शक्तियों को बढ़ाएँ और इस प्रकार अहिंसित हों ।

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ पुनरपि परमात्मविषयमाह।

    पदार्थः

    (एषः) अयम् (गव्युः) उपासकान् उपदेशवाचः प्रापयितुकामः। [गौः इति वाङ्नाम। निघं० १।११।] (हिरण्ययुः) यशो ज्योतिश्च प्रापयितुकामः। [यशो वै हिरण्यम्। ऐ० ब्रा० ७।१८। ज्योतिर्हि हिरण्यम् श० ४।३।४।२१।] (सत्राजित्) युगपत् सर्वेषां कामक्रोधादीनां शत्रूणां विजेता, (अस्तृतः) केनापि अहिंसितः (पवमानः) पावकः (इन्दुः) आनन्दरसेन क्लेदकः तेजस्वी परमेश्वरः (अचिक्रदत्) अस्मान् स्वसमीपम् आह्वयति। [क्रदि आह्वाने रोदने च, णिजन्ते लुङ्] ॥४॥

    भावार्थः

    परमेश्वरः सदैवोपासकैः सह सख्यं स्थापयितुमुद्यतस्तिष्ठति ॥४॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    This Glorious God, the Purifier of all, pervading all luminous heavenly bodies, still Conquering, never Overcome, the Well-Wisher of all, preaches to humanity through the Vedas.

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    Meaning

    It loves the earth and earthly joys and loves to give, speaking loud and bold its own eternal Word, it is pure and purifier, it loves the golden beauty and prosperity of life and loves to bless, it is soothing and self-refulgent beautiful, conqueror of all battles of cosmic dynamics, and eternally invincible. (Rg. 9-27-4)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (एषः पवमानः) એ આનંદધારામાં પ્રાપ્ત થનાર (इन्दुः) ૨સીલા પરમાત્મા (अस्तृतः) અહિંસિત (सत्राजित्) સર્વને સમગ્ર રીતે જીતનાર-સ્વાધિકારમાં રાખનાર (गव्युः) અમારે માટે વાણીનો ઇચ્છુક (हिरण्ययुः) અમૃતનો ઇચ્છુક (अचिक्रदत्) સુંદર વચન બોલતાં પ્રાપ્ત થાય છે. (૪)

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमेश्वर सदैव उपासकांबरोबर मैत्री करण्यासाठी उद्यत असतो. ॥४॥

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