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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1297
ऋषिः - राहूगण आङ्गिरसः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
2
स꣢ दे꣣वः꣢ क꣣वि꣡ने꣢षि꣣तो꣢३꣱ऽभि꣡ द्रोणा꣢꣯नि धावति । इ꣢न्दु꣣रि꣡न्द्रा꣢य म꣣ꣳह꣡य꣢न् ॥१२९७॥
स्वर सहित पद पाठसः꣢ । दे꣣वः꣢ । क꣣वि꣡ना꣢ । इ꣣षितः꣢ । अ꣣भि꣢ । द्रो꣡णा꣢꣯नि । धा꣣वति । इ꣡न्दुः꣢꣯ । इ꣡न्द्रा꣢꣯य । म꣣ꣳह꣡य꣢न् ॥१२९७॥
स्वर रहित मन्त्र
स देवः कविनेषितो३ऽभि द्रोणानि धावति । इन्दुरिन्द्राय मꣳहयन् ॥१२९७॥
स्वर रहित पद पाठ
सः । देवः । कविना । इषितः । अभि । द्रोणानि । धावति । इन्दुः । इन्द्राय । मꣳहयन् ॥१२९७॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1297
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 6
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 6; सूक्त » 1; मन्त्र » 6
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 6
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 6; सूक्त » 1; मन्त्र » 6
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
अगले मन्त्र में जीवात्मा का विषय है।
पदार्थ
(कविना) मेधावी गुरु से (इषितः) प्रेरित (सः) वह (देवः) स्तुतिकर्ता (इन्दुः) तेजस्वी जीवात्मा (इन्द्राय) परमात्मा को (मंहयन्) आत्मसमर्पण करता हुआ (द्रोणानि अभि) लक्ष्यों की ओर (विधावति) वेग से दौड़ता है ॥६॥
भावार्थ
परमात्मा के प्रति आत्मसमर्पण करने से जीवात्मा में कोई विलक्षण शक्ति उत्पन्न हो जाती है, जिससे वह सब विघ्नों को दूर फेंकता हुआ लक्ष्य तक जा पहुँचता है ॥६॥ इस खण्ड में परमात्मा और जीवात्मा के विषयों का वर्णन होने से इस खण्ड की पूर्व खण्ड के साथ सङ्गति है ॥ दशम अध्याय में षष्ठ खण्ड समाप्त ॥
पदार्थ
(सः) वह (देवः) द्योतमान (इन्दुः) आनन्दरसपूर्ण सोम—परमात्मा (कविना-इषितः) स्तुतिकर्मा मेधावी से प्रेरित—स्तुति में लाया हुआ (इन्द्राय मंहयन्) आत्मा के लिये स्वानन्द देने३ के हेतु (द्रोणानि-अभिधावति) मन, बुद्धि, चित्त, अहङ्कार पात्रों में प्राप्त होता है॥६॥
विशेष
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विषय
मंहयन्, प्रभु से प्रेरित हुआ
पदार्थ
(सः) = वह राहूगण १. (कविना) = क्रान्तदर्शी प्रभु से – वेदरूपी महान् काव्य के रचयिता कवि से (इषितः) = सदा प्रेरणा को प्राप्त होता हुआ, (द्रोणानि) = अपने शरीरों को (अभिधावति) = अन्दर व बाहर से पवित्र कर डालता है। स्थूलशरीर को पवित्र करके सदा नीरोग बना रहता है, साथ ही सूक्ष्मशरीर की पवित्रता से इसकी इन्द्रियाँ शक्तिशाली, मन निर्मल व बुद्धि तीव्र हो जाती है । [धाव्-शोधन]।
२. इस शोधन के द्वारा यह (इन्दुः) = सोम का पान करनेवाला शक्ति सम्पन्न जीव (इन्द्राय) = परमैश्वर्यसम्पन्न सर्वशक्तिमान् प्रभु की प्राप्ति के लिए (मंहयन्) = अपनी उन्नति व वृद्धि कर रहा होता है [to grow], उस प्रभु की प्राप्ति के लिए यह मानस को दान की भावना से भर रहा होता है [to give= मंहते], उस प्रभु के दर्शन के लिए यह अपने मस्तिष्क को चमका रहा होता है [to shine मंहते] ।
भावार्थ
प्रभु-प्राप्ति के लिए आवश्यक है कि हम १. नीरोगता के द्वारा अपने पुरुषार्थ में वृद्धि करें [अपने बल को बढ़ाएँ], २. हमारा मन उदार व दान की प्रवृत्तिवाला हो तथा ३. हमारी बुद्धि ज्ञान की ज्योति से जगमगाये ।
टिप्पणी
सूचनाः – यहाँ मंहयन् शब्द के तीन अर्थ हैं—
१. शरीर के बल की वृद्धि [to make grow], २. मन में देने की वृत्ति [to make give] तथा ३. बुद्धि की चमक [to make shine ] । यही तीन उपाय प्रभु-प्राप्ति के हैं। इनके लिए प्रयत्न करता हुआ ही जीव प्रभु-प्राप्ति के लिए बढ़ रहा होता है ।
संस्कृत (1)
विषयः
अथ जीवात्मविषय उच्यते।
पदार्थः
(कविना) मेधाविना गुरुणा (इषितः) प्रेरितः (सः) असौ (देवः) स्तोता। [दीव्यति स्तुतिकर्मा।] (इन्दुः) तेजस्वी जीवात्मा (इन्द्राय) परमात्मने (मंहयन्) आत्मानं समर्पयन्। [मंहते ददातिकर्मा। निघं० ३।२०। तत्र मंहयतिरपि पठितव्यः।] (द्रोणानि अभि) लक्ष्याणि प्रति (धावति) वेगेन गच्छति। [लक्ष्यसूचनार्थं यः काष्ठमयो यूपो निखन्यते तद् द्रोणमित्युच्यते] ॥६॥
भावार्थः
परमात्मानं प्रत्यात्मसमर्पणेन जीवात्मनि काचिद् विलक्षणा शक्तिरुत्पद्यते यया स सर्वान् विघ्नानपास्यन् लक्ष्यं प्राप्नोति ॥६॥ अस्मिन् खण्डे परमात्मजीवात्मविषयवर्णनादेतत्खण्डस्य पूर्वखण्डेन संगतिरस्ति ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
The lustrous, joyful soul, urged by God, worshipping Him, revels in the treasures of knowledge.
Meaning
Self-refulgent generous Soma divine, celebrated by poets, rushes to manifest, brilliant, blissful and great, in the heart of the devotees exalting the soul. (Rg. 9-37-6)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (सः) તે (देवः) પ્રકાશમાન (इन्दुः) આનંદરસપૂર્ણ સોમ-પરમાત્મા (कविना इषितः) સ્તુતિકર્મા - મેધાવીથી પ્રેરિત-સ્તુતિ લાવીને (इन्द्राय मंहयन्) આત્માને માટે પોતાનો આનંદ આપવા માટે (द्रोणानि अभिधावति) મન, બુદ્ધિ, ચિત્ત અને અહંકાર આદિ પાત્રોમાં પ્રાપ્ત થાય છે. (૬)
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्म्याला आत्मसमर्पण करण्याने जीवात्म्यात कोणती तरी विलक्षण शक्ती उत्पन्न होते, ज्यामुळे तो सर्व विघ्ने दूर करतो व लक्ष्यापर्यंत पोचतो. ॥६॥
टिप्पणी
या खंडात परमात्मा व जीवात्म्याच्या विषयाचे वर्णन असल्यामुळे या खंडाची पूर्व खंडाबरोबर संगती आहे
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