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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1296
    ऋषिः - राहूगण आङ्गिरसः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    2

    स꣡ वृ꣢त्र꣣हा꣡ वृषा꣢꣯ सु꣣तो꣡ व꣢रिवो꣣वि꣡ददा꣢꣯भ्यः । सो꣢मो꣣ वा꣡ज꣢मिवासरत् ॥१२९६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः । वृ꣡त्र꣢हा । वृ꣣त्र । हा꣢ । वृ꣡षा꣢꣯ । सु꣣तः꣢ । व꣣रिवोवि꣢त् । व꣣रिवः । वि꣢त् । अ꣡दा꣢꣯भ्यः । अ । दा꣣भ्यः । सो꣡मः꣢꣯ । वा꣡ज꣢꣯म् । इ꣣व । असरत् ॥१२९६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स वृत्रहा वृषा सुतो वरिवोविददाभ्यः । सोमो वाजमिवासरत् ॥१२९६॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सः । वृत्रहा । वृत्र । हा । वृषा । सुतः । वरिवोवित् । वरिवः । वित् । अदाभ्यः । अ । दाभ्यः । सोमः । वाजम् । इव । असरत् ॥१२९६॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1296
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 5
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 6; सूक्त » 1; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    अगले मन्त्र में फिर परमात्मा का विषय है।

    पदार्थ

    (सः) वह (वृत्रहा) विघ्ननाशक, (वृषा) सुखवर्षी, (वरिवोवित्) ऐश्वर्य प्राप्त करानेवाला, (अदाभ्यः) अपराजेय, (सुतः) उपासना किया गया (सोमः) रस का खजाना परमेश्वर (असरत्) उपासकों को प्राप्त होता है, (वाजम् इव) जैसे कोई वीर युद्ध क्षेत्र को प्राप्त होता है ॥५॥ यहाँ उपमालङ्कार है ॥५॥

    भावार्थ

    जैसे कोई वीर सेनापति युद्धभूमि में पहुँच कर अपने पक्ष के योद्धाओं को विजय दिलाता है, वैसे ही परमेश्वर उपासकों के पास पहुँचकर उन्हें विजयोपहार देता है ॥५॥

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    पदार्थ

    (सः) वह (वृत्रहा) पापनाशक (वृषा) कामनावर्षक (वरिवोवित्) मोक्षैश्वर्य को प्राप्त कराने वाला (अदाभ्यः) अहिंसनीय (सोमः) शान्त परमात्मा (सुतः) उपासक द्वारा साक्षात् हुआ (वाजम्-इव-असरत्) उसे ऐसे प्राप्त होता है जैसे यज्ञ को२ ब्रह्मा प्राप्त होता है॥५॥

    विशेष

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    विषय

    शक्ति के अनुपात में

    पदार्थ

    (सः) = वह राहूगण १. (वृत्रहा) = ज्ञान की आवरणभूत वासनाओं का विनाश करनेवाला बनता है। २. (वृषा) = वासनाओं के विनाश के कारण ही शक्तिशाली होता है। वासनाएँ ही तो शक्ति को जीर्ण करती हैं। वासनाओं के विनाश से शक्ति सुरक्षित रहती है। ३. इस सुरक्षित शक्ति से यह (सुतः) = निर्माण के कार्य में लगा रहता है 'सुतमस्यास्तीति' यज्ञादि के अन्दर सदा प्रवृत्त होता है । ४. इन निर्माण के कार्यों में तथा यज्ञों में लगा रहकर यह (वरिवोवित्) = धन प्राप्त करता है । निर्माण के कार्य धनैश्वर्य के उत्पादक तो होते ही हैं । ५. धन को प्राप्त हुआ हुआ वह व्यक्ति (अदाभ्यः) = न दबनेवाला व अहिंसित होता है । ६. 'दबता नहीं' का यह अभिप्राय नहीं कि यह अक्खड़ होता है। अक्खड़ होना तो दूर रहा, वह (सोमः) = अत्यन्त सौम्य व शान्त है । ७. यह सौम्य व्यक्ति (वाजम् इव) = अपनी शक्ति के अनुसार (असरत्) = उस प्रभु की ओर बढ़ता है। जितनी शक्ति होती है उसी के अनुपात में प्रभु की भी प्राप्ति होती है। (‘नायमात्माबलहीनेन लभ्यः'), निर्बल को प्रभु थोड़े ही मिलते हैं ?

    भावार्थ

    जीव वृत्रहा बनकर वृत्र के विनाशक प्रभु को प्राप्त होता है। 
     

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ पुनरपि परमात्मविषयमाह।

    पदार्थः

    (सः) असौ (वृत्रहा) विघ्नहन्ता, (वृषा) सुखवर्षकः, (वरिवोवित्) ऐश्वर्यस्य लम्भकः। [वरिवः इति धननाम। निघं० २।१०।] (अदाभ्यः) अपराजेयः, (सुतः) अभिषुतः, उपासितः (सोमः) रसनिधिः परमेश्वरः (असरत्) उपासकान् प्राप्नोति। कथम् ? (वाजम् इव) यथा कश्चित् वीरः समराङ्गणं प्राप्नोति तद्वत्। [वाज इति सङ्ग्रामनाम। निघं० २।१७] ॥५॥ अत्रोपमालङ्कारः ॥५॥

    भावार्थः

    यथा कश्चिद् वीरः सेनापतिर्युद्धभूमिं प्राप्य स्वपक्षीयान् योद्धॄन् विजयिनः करोति तथैव परमेश्वर उपासकान् प्राप्य तेभ्यो विजयोपहारं ददाति ॥५॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    The soul, the banisher of ignorance, the bestower of happiness, the bringer of prosperity and invincible, goes eagerly towards God as a warrior to the battle-field.

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    Meaning

    Soma, destroyer of darkness, generous, self- manifestive, self-revealed and self discovered, lord giver of the best of wealth and excellence of the world, fearless and undaunted, pervades and vibrates in existence as Shakti, divine omnipotent energy. (Rg. 9-37-5)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (सः) તે (वृत्रहा) પાપનાશક (वृत्रहा) કામનાવર્ષક (वरिवोवित्) મોક્ષૈશ્વર્યને પ્રાપ્ત કરાવનાર (अदाभ्यः) અહિંસનીય (सोमः) શાન્ત પરમાત્મા (सुतः) ઉપાસક દ્વારા સાક્ષાત્ થઈને (वाजम् इव असरत्) જેમ યજ્ઞને બ્રહ્મા પ્રાપ્ત થાય છે, તેમ ઉપાસકને તે પ્રાપ્ત થાય છે. (૫)
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जसा एखादा वीर सेनापती युद्धभूमीत पोचून आपल्या योद्ध्यांना विजय मिळवून देतो, तसेच परमेश्वर उपासकांजवळ पोचून त्यांना विजयाचा उपहार देतो. ॥५॥

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