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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1309
    ऋषिः - वत्सः काण्वः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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    प्र꣣जा꣢मृ꣣त꣢स्य꣣ पि꣡प्र꣢तः꣣ प्र꣡ यद्भर꣢꣯न्त꣣ व꣡ह्न꣢यः । वि꣡प्रा꣢ ऋ꣣त꣢स्य꣣ वा꣡ह꣢सा ॥१३०९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र꣣जा꣢म् । प्र꣣ । जा꣢म् । ऋ꣣त꣡स्य꣢ । पि꣡प्र꣢꣯तः । प्र । यत् । भ꣡र꣢꣯न्त । व꣡ह्न꣢꣯यः । वि꣡प्राः꣢꣯ । वि । प्राः꣣ । ऋत꣡स्य꣢ । वा꣡ह꣢꣯सा ॥१३०९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रजामृतस्य पिप्रतः प्र यद्भरन्त वह्नयः । विप्रा ऋतस्य वाहसा ॥१३०९॥


    स्वर रहित पद पाठ

    प्रजाम् । प्र । जाम् । ऋतस्य । पिप्रतः । प्र । यत् । भरन्त । वह्नयः । विप्राः । वि । प्राः । ऋतस्य । वाहसा ॥१३०९॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1309
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 10; मन्त्र » 3
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 8; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    अगले मन्त्र में सत्य का विषय है।

    पदार्थ

    (यत्) जब (वह्नयः) ब्रह्मयज्ञ को वहन करनेवाले उपासक लोग (पिप्रतः) पालनकर्ता, (ऋतस्य) सत्य के (प्रजाम्) उत्पादक परमेश्वर को (प्रभरन्त) अन्तरात्मा में धारण कर लेते हैं, तब वे (विप्राः) विद्वान् जन (ऋतस्य) सत्य के (वाहसा) प्रचारक हो जाते हैं ॥३॥

    भावार्थ

    सत्यज्ञान और सत्यकर्म के आदर्शरूप परमात्मा का अनुभव करके और अपने जीवन में सत्य को लाकर ही सत्य का प्रचार आसानी से हो सकता है ॥३॥ इस खण्ड में परमात्मा का विषय वर्णित होने से इस खण्ड की पूर्व खण्ड के साथ सङ्गति है, यह जानना चाहिए ॥ दशम अध्याय में अष्टम खण्ड समाप्त ॥

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    पदार्थ

    (पिप्रतः-ऋतस्य) विश्व को पूरण करने७ विश्व में व्यापने वाले अमृतरूप परमात्मा के८ (प्रजाम्) प्रजायमान प्रसिद्ध मधु९ आनन्द को (यद् ‘यदा’) जब (प्रभरन्तः—वह्नयः) अपने अन्दर प्रकृष्ट रूप से धारण करने हेतु स्तुति से पहुँचाने वाले१० स्तोता उपासक (विप्राः) मेधावीजन (ऋतस्य वाहसा) अमृतरूप परमात्मा के वाहक स्तुतिसमूह से परमात्मा को वहन करते हैं॥३॥

    विशेष

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    विषय

    प्रजा का प्रभरण

    पदार्थ

    १. (ऋतस्य पिप्रतः) = ऋत का पालन करनेवाले, जिनका जीवन बड़ा नियमित है, जो सूर्य-चन्द्र के समान अपने भौतिक कार्यों में नियमित गति से चलते हैं, २. (वह्नय:) = जो ज्ञान को धारण करनेवाले हैं, अग्नि की भाँति ही जो ज्ञान धारण करनेवाले हैं, अग्नि की भाँति ही जो ज्ञान से प्रकाशमान हैं,

    ३. (यत् ऋतस्य वाहसा) = जो नियमितता [regularity] व सत्य के धारण से (विप्राः) = अपना विशेषरूप से पूरण करनेवाले हैं, ये लोग (प्रजाम्) = प्रजा का (प्रभरन्त) = प्रकर्षेण भरण करते हैं। अपने नियमित जीवन के उदाहरण से ये औरों को भी ऋत का पालन करनेवाला बनाते हैं । ऋत को अपनाकर ही हम औरों को ऋत पालन का उपदेश दे सकते हैं ।

    भावार्थ

    प्रचारक को सदा ऋत का पालन करनेवाला बनना चाहिए। अन्यथा उसका सब उपदेश व्यर्थ ही जाता है ।

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ सत्यस्य विषयमाह।

    पदार्थः

    (यत्) यदा (वह्नयः) ब्रह्मयज्ञस्य वोढारः उपासकाः (पिप्रतः) पालयतः [पॄ पालनपूरणयोः, शतृः।] (ऋतस्य) सत्यस्य (प्रजाम्) प्रकर्षेण जनयितारं परमेश्वरम् (प्र भरन्त) अन्तरात्मनि धारयन्ति, तदा ते (विप्राः) विद्वांसो जनाः (ऋतस्य) सत्यस्य (वाहसा) वाहसः प्रचारका जायन्ते। [वाहस् शब्दाज्जसि ‘सुपां सुलुक्०’ अ० ७।१।३९ इत्यनेन जस आकारादेशः] ॥३॥

    भावार्थः

    सत्यज्ञानस्य सत्यकर्मणश्चादर्शभूतं परमात्मानमनुभूय स्वजीवने सत्यमानीयैव सत्यं प्रचारयितुं सुशकम् ॥३॥ अस्मिन् खण्डे परमात्मविषयवर्णनादेतत्खण्डस्य पूर्वखण्डेन संगतिरस्तीति वेद्यम् ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    When brilliant learned persons realize the spiritual power of the soul, as its magnifiers they do it with the strength of knowledge and truth.

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    Meaning

    When the forces of nature carry on the laws of divinity and sustain the children of creation through evolution, and the enlightened sages too carry on the yajna of divine law of truth in their adorations, Indra, immanent divinity, waxes with pleasure. (Rg. 8-6-2)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (पिप्रतः ऋतस्य) વિશ્વને પૂરણ કરવા વિશ્વમાં વ્યાપનાર અમૃત રૂપ પરમાત્મા ના (प्रजाम्) પ્રજાયમાન પ્રસિદ્ધ મધ આનંદને (यद् 'यदा') જ્યારે (प्रभरन्तः वह्नयः) પોતાની અત્યંત રૂપમાં ધારણ કરવા માટે સ્તુતિ દ્વારા પહોંચાડનાર સ્તોતા ઉપાસક (विप्राः) મેધાવીજન (ऋतस्य वाहसा) અમૃતરુપ પરમાત્માના વાહક સ્તુતિ સમૂહથી પરમાત્માનું વહન કરે છે. (૩)
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    सत्यज्ञान व सत्यकर्माचा आदर्शरूप परमात्म्याचा अनुभव घेऊन आपल्या जीवनात सत्य आणून सत्याचा प्रचार सरळपणे होऊ शकतो. ॥३॥

    टिप्पणी

    या खंडात परमात्म्याचा विषय वर्णित असल्यामुळे या खंडाची पूर्व खंडाबरोबर संगती आहे, हे जाणले पाहिजे

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