Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1365
ऋषिः - त्र्यरुणस्त्रैवृष्णः, त्रसदस्युः पौरुकुत्स्यः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - पिपीलिकामध्या अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
काण्ड नाम -
2
अ꣡जी꣢जनो꣣ हि꣡ प꣢वमान꣣ सू꣡र्यं꣢ वि꣣धा꣢रे꣣ श꣡क्म꣢ना꣣ प꣡यः꣢ । गो꣡जी꣢रया꣣ र꣡ꣳह꣢माणः꣣ पु꣡र꣢न्ध्या ॥१३६५
स्वर सहित पद पाठअ꣡जी꣢꣯जनः । हि । प꣣वमान । सू꣡र्य꣢꣯म् । वि꣣धा꣡रे꣢ । वि꣣ । धा꣡रे꣢꣯ । श꣡क्म꣢꣯ना । प꣡यः꣢꣯ । गो꣡जी꣢꣯रया । गो । जी꣣रया । र꣡ꣳह꣢꣯माणः । पु꣡र꣢꣯न्ध्या । पु꣡र꣢꣯म् । ध्या꣣ ॥१३६५॥
स्वर रहित मन्त्र
अजीजनो हि पवमान सूर्यं विधारे शक्मना पयः । गोजीरया रꣳहमाणः पुरन्ध्या ॥१३६५
स्वर रहित पद पाठ
अजीजनः । हि । पवमान । सूर्यम् । विधारे । वि । धारे । शक्मना । पयः । गोजीरया । गो । जीरया । रꣳहमाणः । पुरन्ध्या । पुरम् । ध्या ॥१३६५॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1365
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 11; खण्ड » 2; सूक्त » 4; मन्त्र » 2
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 11; खण्ड » 2; सूक्त » 4; मन्त्र » 2
Acknowledgment
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
अगले मन्त्र में परमेश्वर की स्तुति की गयी है।
पदार्थ
हे (पवमान) पवित्रकर्ता, सर्वान्तर्यामी परमेश्वर ! आपने (सूर्यम्) सूर्य को (अजीजनः हि) उत्पन्न किया है और (शक्मना) अपनी शक्ति से (विधारे) विधारक अन्तरिक्ष में (पयः) मेघ-जल को (अजीजनः) उत्पन्न किया है। आप (गोजीरया) भूमण्डल के जीवन की इच्छा से (पुरन्ध्या) बहुत अधिक प्रज्ञा तथा क्रिया द्वारा (रंहमाणः) शीघ्रकारी होते हो ॥२॥
भावार्थ
ब्रह्माण्ड में स्थित सूर्य, विद्युत्, नक्षत्र, बादल आदि सब विलक्षण वस्तुएँ परमात्मा ने ही रची हैं, इनके निर्माण में किसी मनुष्य का सामर्थ्य नहीं है। वह सबकी हितकामना से बुद्धिपूर्वक चेष्टा करता है ॥२॥
पदार्थ
(पवमान) हे धारारूप में प्राप्त होने वाले परमात्मन्! तू (विधारे) विशेष धारा-स्तुति वाणी४ जिसके अन्दर है ऐसे उपासक आत्मा में (शक्मना) कर्मशक्ति से५ (सूर्यं पयः) सूर्य समान६ ज्ञानप्रकाश७ (अजीजनः-हि) निश्चित उत्पन्न करता है (गोजीरया पुरन्ध्या रंहमाणः) स्तुतिवाणी से प्रेरित—अतिशयित बुद्धि से८ उपकारक बुद्धि से उपासक के अन्दर प्राप्त होता हुआ॥२॥
विशेष
<br>
विषय
शीघ्रता से चलता हुआ
पदार्थ
हे सोम! (पवमान) = सोमरक्षा के द्वारा अपने जीवन को पवित्र बनानेवाले तूने १. (हि) = निश्चय से (सूर्यम्) = अपने जीवन में ज्ञान के सूर्य को (अजीजन:) = प्रकट किया है, अर्थात् सोम को ज्ञानाग्नि का ईंधन बनाकर तूने ज्ञानाग्नि को प्रदीप्त किया है । तेरे मस्तिष्करूप द्युलोक में ज्ञान का सूर्य ही उदय हो गया है।
२. ज्ञान-प्राप्ति के अनन्तर तू (शक्मना) = शक्ति से (पयः) = लोकों का अप्यायन-वर्धन करनेवाला और विधारे=विशेषरूप से धारण करनेवाला हुआ है । ज्ञान प्राप्त करके इसने अपनी सारी शक्ति का विनियोग लोकहित में किया है—लोकों के धारण के लिए यह पूर्ण प्रयत्नशील हुआ है— लोकों के वर्धन में ही इसने आनन्द का अनुभव किया ।
३. यह अपने जीवन मार्ग पर (गो-जीरया) = वेदवाणियों की जीवन देनेवाली – उनको जागरित करनेवाली (पुरन्ध्या) = [बहुधिया] विशालबुद्धि से (रंहमाण:) = तीव्रता से गतिवाला हुआ है। एवं, ज्ञानपूर्वक लोकहित के कार्यों में लगे हुए इस त्र्यरुण ने सचमुच अपने जीवन में शरीर, मन व बुद्धि के बलों को प्राप्त करके अपने 'त्र्यरुण' नाम को चरितार्थ किया है।
भावार्थ
हम अपने जीवनों को ज्ञान द्वारा पवित्र व उज्ज्वल बनाएँ और लोकहित के मार्ग पर आगे और आगे बढ़ते चलें ।
संस्कृत (1)
विषयः
अथ परमेश्वरं स्तौति।
पदार्थः
हे (पवमान) पावक सर्वान्तर्यामिन् परमेश्वर ! त्वम् (सूर्यम्) आदित्यम् (अजीजनः हि) उत्पादितवानसि खलु, अपि च (शक्मना) स्वशक्त्या (विधारे) विधारके अन्तरिक्षे (पयः) मेघजलम् (अजीजनः) उत्पादितवानसि। त्वम् (गोजीरया२) गोजीवया, भूमण्डलस्य जीवनेच्छया (पुरन्ध्या) भूयस्या प्रज्ञया क्रियया च। [पुरन्धिर्बहुधीः। निरु० ६।१३। धीः इति कर्मनाम प्रज्ञानाम च। निघं० २।१, ३।९।] (रंहमाणः) त्वरमाणः भवसीति शेषः ॥२॥३
भावार्थः
ब्रह्माण्डस्थानि सूर्यविद्युन्नक्षत्रपर्जन्यादीनि सर्वाणि विलक्षणानि वस्तूनि परमात्मनैव विरचितानि, नैषां निर्माणे कस्यचिन्मनुष्यस्य सामर्थ्यमस्ति। स सर्वेषां हितकाम्यया बुद्धिपूर्वकं चेष्टमानो वर्त्तते ॥२॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O God, Ever Active, the Motivator of all through Thy power of sustaining the universe. Thou dost beget the sun to support water in the atmosphere through his rays !
Meaning
Soma, pure, purifying and dynamic by your essential omnipotence, mighty moving with cosmic intelligence and ignition of oceanic particles of Prakrti, you create the sun, generate bio-energy in all containing space and set in motion the stars and planets of the universe. (Rg. 9-110-3)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (पवमान) હે ધારારૂપમાં પ્રાપ્ત થનાર પરમાત્મન્ ! તું (विधारे) વિશેષ ધારા-સ્તુતિવાણી જેની અંદર છે એવા ઉપાસક આત્મામાં (शक्मना) કર્મશક્તિથી (सूर्यं पयः) સૂર્ય સમાન જ્ઞાનપ્રકાશ (अजीजनः हि) નિશ્ચિત ઉત્પન્ન કરે છે. (गोजीरया पुरन्ध्या रंहमाणः) સ્તુતિ વાણીથી પ્રેરિત-અતિશય બુદ્ધિથી ઉપકારક બુદ્ધિથી ઉપાસકની અંદર પ્રાપ્ત થાય છે. (૨)
मराठी (1)
भावार्थ
ब्रह्मांडात स्थित सूर्य, विद्युत्, नक्षत्र, मेघ इत्यादी सर्व विलक्षण वस्तू परमेश्वरानेच निर्माण केलेल्या आहेत. कोणत्याही माणसात ते निर्माण करण्याचे सामर्थ्य नाही. परमात्मा सर्वांच्या हितासाठी बुद्धिपूर्वक प्रयत्न करतो. ॥२॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal