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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1367
ऋषिः - अग्नयो धिष्ण्या ऐश्वराः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - द्विपदा विराट् पङ्क्तिः
स्वरः - पञ्चमः
काण्ड नाम -
2
प꣢रि꣣ प्र꣡ ध꣢न्वे꣡न्द्राय सोम स्वादुर्मित्राय पूष्णे भगाय ॥१३६७॥
स्वर सहित पद पाठप꣢रि꣣ । प्र꣡ । ध꣢न्व꣡ । इ꣡न्द्रा꣢꣯य । सो꣣म । स्वादुः꣢ । मि꣣त्रा꣡य꣢ । मि꣣ । त्रा꣡य꣢꣯ । पू꣣ष्णे꣢ । भ꣡गा꣢꣯य ॥१३६७॥
स्वर रहित मन्त्र
परि प्र धन्वेन्द्राय सोम स्वादुर्मित्राय पूष्णे भगाय ॥१३६७॥
स्वर रहित पद पाठ
परि । प्र । धन्व । इन्द्राय । सोम । स्वादुः । मित्राय । मि । त्राय । पूष्णे । भगाय ॥१३६७॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1367
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 8; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 11; खण्ड » 2; सूक्त » 5; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 8; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 11; खण्ड » 2; सूक्त » 5; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
प्रथम ऋचा की व्याख्या पूर्वार्चिक में ४२७ क्रमाङ्क पर परमात्मा के विषय में की जा चुकी है। यहाँ ब्रह्मानन्द का विषय कहते हैं।
पदार्थ
हे (सोम) ब्रह्मानन्दरस ! (स्वादुः) मधुर स्वादवाला तू (मित्राय) मित्र, (पूष्णे) पोषणकर्ता, (भगाय) सेवनीय (इन्द्राय) जीवात्मा के लिये(परि प्र धन्व) प्रवाहित हो ॥१॥
भावार्थ
परमेश्वर के पास से प्रवाहित हुए परमानन्दरस का पान करके जीवात्मा में एक विलक्षण शक्ति उत्पन्न हो जाती है ॥१॥
टिप्पणी
(देखो अर्थव्याख्या मन्त्र संख्या ४२७)
विशेष
ऋषिः—ऋणत्रसदस्यू ऋषी (ऋण त्रास को क्षीण करने वाले जप स्वाध्यायशील)॥ देवता—इन्द्रः (ऐश्वर्यवान् परमात्मा)॥ छन्दः—द्विपदा विराट्॥<br>
संस्कृत (1)
विषयः
तत्र प्रथमा ऋक् पूर्वार्चिके ४२७ क्रमाङ्के परमात्मविषये व्याख्याता। अत्र ब्रह्मानन्दविषय उच्यते।
पदार्थः
हे (सोम) ब्रह्मानन्दरस ! (स्वादुः) मधुरः त्वम् (मित्राय) मित्रभूताय, (पूष्णे) पोषकाय, (भगाय) सेवनीयाय (इन्द्राय) जीवात्मने (परि प्र धन्व) परि प्रस्रव ॥१॥
भावार्थः
परमेश्वरस्य सकाशात् प्रस्रुतं परमानन्दरसं पीत्वा जीवात्मनि काचिदपूर्वा शक्तिः समुदेति ॥१॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O Calm, extremely Sweet God, bestow happiness Oil the person, who is friendly, life infusing and dignified !
Translator Comment
See verse 427.
Meaning
O Soma, come and inspire as the most delicious psychic and spiritual experience for the soul and the nation, for friends, for the sustaining guardians and for the spirit of honour and glory of humanity. (Rg. 9-109-1)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (सोम) હે શાન્ત ઉપાસનારસ (इन्द्राय) ઐશ્વર્યવાન પરમાત્માને માટે (स्वादुः) સ્વાદરૂપમાં (परीप्रधन्व) સમગ્રરૂપથી પ્રગતિ કર તથા (मित्राय) મિત્રભૂત પરમાત્માને માટે (पूष्णे) પોષણકર્તા પરમાત્માને માટે (भगाय) ધન વિભાજકને માટે પ્રગતિ કર. (૧)
भावार्थ
ભાવાર્થ : મારો ઉપાસનારસ ઐશ્વર્યવાન તથા મિત્રભૂત પોષણકર્તા પરમાત્માને માટે તથા ભગ - ઐશ્વર્ય વિભાજક પરમાત્માને માટે ખૂબજ પ્રક્ષરિત થાય. (૧)
मराठी (1)
भावार्थ
परमेश्वराकडून प्रवाहित झालेल्या परमानंद रसाचे पान करून जीवात्म्यात एक विलक्षण शक्ती उत्पन्न होते. ॥१॥
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