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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1394
    ऋषिः - ऋजिश्वा भारद्वाजः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - काकुभः प्रगाथः (विषमा ककुप्, समा सतोबृहती) स्वरः - ऋषभः काण्ड नाम -
    3

    आ꣡ सो꣢ता꣣ प꣡रि꣢ षिञ्च꣣ता꣢श्वं꣣ न꣡ स्तोम꣢꣯म꣣प्तु꣡र꣢ꣳ रज꣣स्तु꣡र꣢म् । व꣣नप्रक्ष꣡मु꣢द꣣प्रु꣡त꣢म् ॥१३९४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ꣢ । सो꣣त । प꣡रि꣢꣯ । सि꣣ञ्चत । अ꣡श्व꣢꣯म् । न । स्तो꣡म꣢꣯म् । अ꣣प्तु꣡र꣢म् । र꣣जस्तु꣡र꣢म् । व꣣नप्रक्ष꣢म् । व꣣न । प्रक्ष꣢म् । उ꣣दप्रु꣡त꣢म् । उ꣣द । प्रु꣡त꣢꣯म् ॥१३९४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ सोता परि षिञ्चताश्वं न स्तोममप्तुरꣳ रजस्तुरम् । वनप्रक्षमुदप्रुतम् ॥१३९४॥


    स्वर रहित पद पाठ

    आ । सोत । परि । सिञ्चत । अश्वम् । न । स्तोमम् । अप्तुरम् । रजस्तुरम् । वनप्रक्षम् । वन । प्रक्षम् । उदप्रुतम् । उद । प्रुतम् ॥१३९४॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1394
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 6; मन्त्र » 1
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 12; खण्ड » 2; सूक्त » 5; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    प्रथम ऋचा की व्याख्या पूर्वार्चिक में ५८० क्रमाङ्क पर परमेश्वर की आराधना के विषय में की गयी थी। यहाँ ब्रह्मानन्द का विषय वर्णित करते हैं।

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! तुम (स्तोमम्) स्तुति करने योग्य, (अप्तुरम्) प्राणों में गति देनेवाले, (रजस्तुरम्) पृथिवी, सूर्य आदि लोकों को गति देनेवाले, (वनप्रक्षम्) जंगलों को वर्षा-जल से सींचनेवाले, (उदप्रुतम्) जलों को बहानेवाले सोम-नामक परमात्मा को (आ सोत) दुहो अर्थात् उससे आनन्द-रस प्राप्त करो और उसे (अश्वं न) बादल के समान (परि सिञ्चत) चारों ओर बरसाओ ॥१॥ यहाँ उपमालङ्कार है ॥१॥

    भावार्थ

    जैसे बादल भूमि को जल से सींचता है, वैसे ही उपासकों को चाहिए कि ब्रह्मानन्द से अपने तथा दूसरों के आत्मा को पुनः-पुनः सींचें ॥१॥

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    टिप्पणी

    (देखो अर्थव्याख्या मन्त्र संख्या ५८०)

    विशेष

    ऋषिः—ऋजिश्वा (सत्य जीवन यात्रा का पथिक)॥ देवता—पवमानः सोमः (धारारूप में प्राप्त होने वाला शान्तस्वरूप परमात्मा)॥ छन्दः—विषमा ककुप्॥<br>

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    विषय

    प्रभु की भावना से अपने को भर लें

    पदार्थ

    ५८० संख्या पर इस मन्त्र का अर्थ इस प्रकार है–‘ऋजिश्वा भारद्वाज' [सरल, शक्ति-सम्पन्न] अपने सब मित्रों को प्रेरणा देता है कि – (आ) = सर्वथा (सोत) = प्रभु की भावना को अपने में उत्पन्न करो–उसका चिन्तिन करो, (परिषिञ्चत) = उसके चिन्तन से अपने को सींच लो। जो प्रभु १. (अश्वम्) = सर्वव्यापक है, २. (नः स्तोमम्) = हमारे द्वारा स्तुति करने योग्य हैं, ३. (अप्तुरम्) = हमें उत्तम कर्मों की प्रेरणा देनेवाले हैं, ४. (रजस्तुरम्) = वे प्रभु हमें प्रकाश प्राप्त कराते हैं, ५. (वनप्रक्षम्) = संविभाग की भावना से हमारा सम्पर्क करानेवाले हैं, ६. (उदप्रुतम्) = वे प्रभु अपनी करुणा से हममें भी करुणाजल उत्पन्न करनेवाले हैं । 

    भावार्थ

    हम सदा प्रभु का स्मरण करें ।

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    तत्र प्रथमा ऋक् पूर्वार्चिके ५८० क्रमाङ्के परमेश्वराराधनविषये व्याख्याता। अत्र ब्रह्मानन्दविषयो वर्ण्यते।

    पदार्थः

    हे मनुष्याः ! यूयम् (स्तोमम्) स्तोतव्यम्, (अप्तुरम्) प्राणेषु गतिप्रदातारम्, (रजस्तुरम्) पृथिवीसूर्यादिलोकेषु गतिप्रदातारम्, (अनप्रक्षम्) अरण्यानां वृष्टिजलेन सेक्तारम्, (उदप्रुतम्) उदकानां प्रवाहयितारं सोमं परमात्मानम् (आ सोत) आनन्दरसं आक्षारयत, तं च (अश्वं न) पर्जन्यमिव२ (परिसिञ्चत) परिवर्षत ॥१॥ अत्रोपमालङ्कारः ॥१॥

    भावार्थः

    यथा पर्जन्यो भूमिं पयसा सिञ्चति तथैवोपासकैर्ब्रह्मानन्देन स्वात्मा परेषां चात्मा मुहुर्मुहुः सेचनीयः ॥१॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Just as a swift horse is adorned, so should the soul, the bringer of knowledge and action, and driver Of ignorance, the integrator with God, Our goal, satiated with knowledge, be perfected, and poured out in each and every limb of the body.

    Translator Comment

    See verse 580.

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    Meaning

    O celebrants, come, realise and all-ways serve Soma like sacred adorable energy impelling as particles of water and rays of light, the spirit pervasive in the universe and deep as the bottomless ocean. (Rg. 9-108-7)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    (स्तोमम्) સ્તુતિયોગ્ય - ઉપાસનીય (अप्तुरम्) પ્રાણને પ્રેરિત કરનાર (रजस्तुरम्) જ્ઞાનજ્યોતિ પ્રેરક (वनप्रक्षम्) વનનીય મોક્ષનો સંપર્ક કરાવનાર, (उदप्रुतम्) આર્દ્ર આનંદરસના પ્રેરક (अश्वम्) વ્યાપક, (न) વર્તમાન પરમાત્માને (आसोत) હૃદયમાં પ્રકાશિત કરો (परिषिञ्चत) આત્મામાં શ્રદ્ધાથી ધારણ કરો. (૩)

     

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : ઉપાસકજનો ! તમે સ્તુતિ કરવા યોગ્ય, પ્રાણપ્રેરક, બળપ્રદ, જ્ઞાન જ્યોતિ પ્રસારક, મોક્ષથી સંપર્ક કરાવનાર, આનંદરસ પ્રવાહક, વ્યાપક પરમાત્માનો હૃદયમાં સાક્ષાત્ કરો અને શ્રદ્ધાથી ધારણ કરો. (૩)
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जसा मेघ भूमीला जलाद्वारे सिंचित करतो, तसेच उपासकांनी ब्रह्मानंदाने आपल्या व दुसऱ्याच्या आत्म्याला पुन: पुन: सिंचित करावे. ॥१३९४॥

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