Loading...

सामवेद के मन्त्र

  • सामवेद का मुख्य पृष्ठ
  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1403
    ऋषिः - तिरश्चीराङ्गिरसः देवता - इन्द्रः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः काण्ड नाम -
    3

    इ꣡न्द्र꣢ शु꣣द्धो꣢ न꣣ आ꣡ ग꣢हि शु꣣द्धः꣢ शु꣣द्धा꣡भि꣢रू꣣ति꣡भिः꣢ । शु꣣द्धो꣢ र꣣यिं꣡ नि धा꣢꣯रय शु꣣द्धो꣡ म꣢मद्धि सोम्य ॥१४०३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ꣡न्द्र꣢꣯ । शु꣣द्धः꣢ । नः꣣ । आ꣢ । ग꣣हि । शुद्धः꣢ । शु꣣द्धा꣡भिः꣢ । ऊ꣣ति꣡भिः꣢ । शु꣣द्धः꣢ । र꣡यि꣢म् । नि । धा꣣रय । शुद्धः꣢ । म꣡मद्धि । सोम्य ॥१४०३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्र शुद्धो न आ गहि शुद्धः शुद्धाभिरूतिभिः । शुद्धो रयिं नि धारय शुद्धो ममद्धि सोम्य ॥१४०३॥


    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्र । शुद्धः । नः । आ । गहि । शुद्धः । शुद्धाभिः । ऊतिभिः । शुद्धः । रयिम् । नि । धारय । शुद्धः । ममद्धि । सोम्य ॥१४०३॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1403
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 9; मन्त्र » 2
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 12; खण्ड » 3; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में भी परमेश्वर, आचार्य और राजा का ही विषय है।

    पदार्थ

    हे (इन्द्र) परमेश्वर, आचार्य वा राजन् ! (शुद्धः) शुद्ध आप (नः) हमारे पास (आ गहि) आओ, (शुद्धः) शुद्ध आप(शुद्धाभिः) शुद्ध (ऊतिभिः) रक्षाओं के साथ आओ। (शुद्धः) शुद्ध आप, हमें (रयिम्) आध्यात्मिक वा भौतिक ऐश्वर्य (नि धारय) प्राप्त कराओ। (शुद्धः) शुद्ध आप, हे (सोम्य) सौम्य परमेश्वर, आचार्य वा राजन् ! (अस्मान्) हमें (ममद्धि)आनन्दित करो ॥२॥

    भावार्थ

    जो स्वयं ज्ञान, शरीर, मन, वचन और कर्म से शुद्ध है, वही दूसरों को शुद्ध कर सकता है ॥२॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    पदार्थ

    (सोम्य-इन्द्र) हे उपासनारस समर्णयोग्य परमात्मन्! तू (शुद्धः) शुद्ध है (नः-आगहि) हमारी ओर आ (शुद्धः शुद्धाभिः-ऊतिभिः) शुद्ध है अतः शुद्ध रक्षाविधानों के साथ आ७ (शुद्धः-रयिं विधारय) तू शुद्ध है बल धन को हमारे अन्दर धारण करा (शुद्धः-ममद्धि) तू शुद्ध है अतः हर्ष—आनन्द प्राप्त करा॥२॥

    विशेष

    <br>

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    सम्मिलित स्तवन

    पदार्थ

    १. गत मन्त्र में कहा था कि 'प्रभु का स्तवन करें' । प्रस्तुत मन्त्र में वही स्तवन दिया जाता है— हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशाली प्रभो ! (शुद्धः) = पूर्ण शुद्ध आप (नः आगहि) = हमें प्राप्त होओ। आपको प्राप्त कर हम भी शुद्ध बन पाएँ । २. (शुद्धः) = आप पूर्ण शुद्ध हो । (शुद्धाभिः ऊतिभिः) = अपने शुद्ध संरक्षणों से (नः आगहि) = हमें प्राप्त होओ, अर्थात् आपके रक्षण ही हमारे जीवनों को शुद्ध बनाते हैं, आपके ये रक्षण हमें सदा प्राप्त हों । ३. (शुद्धः) = हे प्रभो! आप पूर्ण शुद्ध हो । (रयिं निधारय) = आप ही हममें निवास के लिए आवश्यक धन धारण कीजिए, अर्थात् आपका स्मरण करते हुए हम शुद्ध मार्गों से ही धन का उपार्जन करें 'अग्ने नय सुपथा राये' । ४. हे (सोम्य) = अत्यन्त शान्तस्वरूप प्रभो ! (शुद्धः) = पूर्ण शुद्ध आप (ममद्धि) = हमपर प्रसन्न हों । आपकी कृपादृष्टि सदा हमपर बनी रहे-हम कभी आपके अप्रिय न हों ।

    भावार्थ

    शुद्ध प्रभु का स्तवन हमारे जीवनों को भी शुद्ध कर डाले ।

    टिप्पणी

    नोट – प्रस्तुत मन्त्र की यह बात विशेष ध्यान देने योग्य है कि सब मिलकर प्रभु-स्तवन करते हुए निश्चय करते हैं कि हम शुद्ध मार्गों से ही धनार्जन करेंगे। इस मायामय संसार में जीवन शोधन के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण बात यही है । यही स्तवन अगले मन्त्र में भी चलता है

    इस भाष्य को एडिट करें

    पदार्थ

    शब्दार्थ = हे  ( इन्द्र ) =  परमेश्वर !  ( शुद्धः नः आगहि ) = सदा पवित्र स्वरूप आप हमको प्राप्त होवें।  ( शुद्धः शुद्धाभिः ऊतिभिः ) = पावन आप अपनी पावनी रक्षाओं से हमारी रक्षा करें।  ( शुद्धः रयिम् निधारय ) = पावन आप निष्कपट व्यवहार से प्राप्त पवित्र धन को धारण करावें ।  ( सोम्य ) = हे अमृतस्वरूप प्रभो ! ( शुद्धः ममद्धि ) = पावन आप हम पर प्रसन्न होवें । 

    भावार्थ

    भावार्थ = हे दीनदयालो भगवन् ! आप सदा पवित्र स्वरूप और पवित्र करनेवाले हो, हमको पवित्र बनाओ। खान-पान आदि व्यवहार के लिए हमें पवित्र धन दो, जिससे हम पवित्र रहते हुए आपके प्यारे सच्चे भक्त बनें और अपने सहवासी भाइयों को भी पवित्र सच्चे भक्त बनाते हुए सदा सुखी रहें।

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ पुनः परमेश्वराचार्यनृपतीनां विषयमाह।

    पदार्थः

    हे (इन्द्र) परमेश्वर आचार्य नृपते वा ! (शुद्धः) पवित्रः त्वम् (नः) अस्मान् (आ गहि) आगच्छ, (शुद्धः) पवित्रः त्वम् (शुद्धाभिः) पवित्राभिः (ऊतिभिः) रक्षाभिः सह आगच्छ। (शुद्धः) पवित्रः त्वम्, अस्मासु (रयिम्) आध्यात्मिकं भौतिकं च ऐश्वर्यम् (नि धारय) निधेहि। (शुद्धः) पवित्रः त्वम्, हे (सोम्य) सौम्य परमेश्वर आचार्य नृपते वा ! अस्मान् (ममद्धि) आनन्दय ॥२॥

    भावार्थः

    यः स्वयं ज्ञानेन, शरीरेण, मनसा, वाचा, कर्मणा च शुद्धः स एवान्यान् शुद्धान् कर्तुं पारयति ॥२॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O God, come Thou pure to us. Thou art pure With Thy pure powers. O Pure God, send Thou riches to us, O Divine, Pure God, make us always happy!

    इस भाष्य को एडिट करें

    Meaning

    May Indra, pure and absolute spirit, come to us and bless us. May the pure immaculate spirit come with pure modes of action and protection. May the pure spirit bring us wealth, honour and excellence. May pure divinity, absolute peace and bliss, be pleased and exalted. (Rg. 8-95-8)

    इस भाष्य को एडिट करें

    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (सोम इन्द्र) હે ઉપાસનારસ સમર્પણ યોગ્ય પરમાત્મન્ ! તું (शुद्धः) શુદ્ધ છે. (नः आगहि) અમારી તરફ આવ. (शुद्धः शुद्धिभिः ऊतिभिः) શુદ્ધ છે, માટે શુદ્ધ રક્ષા વિધાનોની સાથે આવ. (शुद्धः रयिं विधारय) તું શુદ્ધ છે, બળ ધનને અમારી અંદર ધારણ કરાવ (शुद्धः ममद्धि) તું શુદ્ધ છે, માટે હર્ષઆનંદ પ્રાપ્ત કરાવ. (૨)
     

    इस भाष्य को एडिट करें

    बंगाली (1)

    পদার্থ

    ইন্দ্র শুদ্ধো ন আ গহি শুদ্ধঃ শুদ্ধাভিরূতিভিঃ।

    শুদ্ধো রয়িং নি ধারয় শুদ্ধো মমদ্ধি সোম্য।।৫১।।

    (সাম ১৪০৩)

    পদার্থঃ (ইন্দ্রঃ) হে পরমেশ্বর! (শুদ্ধঃ নঃ আগহি) সদা পবিত্র স্বরূপ তোমাকে আমরা প্রাপ্ত হই। (শুদ্ধঃ শুদ্ধাভিঃ ঊতিভিঃ)  শুদ্ধ তুমি নিজ শুদ্ধ রক্ষাশক্তি দ্বারা আমাদের রক্ষা করো। (শুদ্ধঃ রয়িম্ নি ধারয়) হে শুদ্ধ পরমেশ্বর! তুমি নিষ্কপটতা দ্বারা প্রাপ্ত পবিত্র ধনকে ধারন করাও। (সোম্য) হে অমৃতস্বরূপ (শুদ্ধঃ মমদ্ধি) শুদ্ধ ঈশ্বর! তুমি আমাদের প্রতি প্রসন্ন হও। 

     

    ভাবার্থ

    ভাবার্থঃ হে দীনদয়াল ভগবান! তুমি সর্বদাই পবিত্র স্বরূপ এবং পবিত্রতা দানকারী, আমাদের পবিত্র করো। আহার পান আদি ব্যবহারের জন্য আমাদের পবিত্র ধনরাশি দাও, যাতে আমরা পবিত্র হয়ে তোমার প্রিয় উপাসক হই এবং আমার সাথে বাসকারী সকলেই যেন পরম উপাসক হয়ে সদা সুখী থাকে।।৫১।।

     

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    जो स्वत: ज्ञान, शरीर, मन, वचन व कर्माने शुद्ध आहे, तोच दुसऱ्याला शुद्ध करू शकतो. ॥२॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top