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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1402
    ऋषिः - तिरश्चीराङ्गिरसः देवता - इन्द्रः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः काण्ड नाम -
    3

    ए꣢तो꣣ न्वि꣢न्द्र꣣ꣳ स्त꣡वा꣢म शु꣣द्ध꣢ꣳ शु꣣द्धे꣢न꣣ सा꣡म्ना꣢ । शु꣣द्धै꣢रु꣣क्थै꣡र्वा꣢वृ꣣ध्वा꣡ꣳस꣢ꣳ शु꣣द्धै꣢रा꣣शी꣡र्वा꣢न्ममत्तु ॥१४०२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ꣢ । इ꣣त । उ । नु꣢ । इ꣡न्द्र꣢꣯म् । स्त꣡वा꣢꣯म । शु꣣द्ध꣢म् । शु꣣द्धे꣡न꣢ । सा꣡म्ना꣢꣯ । शु꣣द्धैः꣢ । उ꣣क्थैः꣢ । वा꣣वृ꣢ध्वाꣳस꣢म् । शु꣣द्धैः꣢ । आ꣣शी꣡र्वा꣢न् । आ꣣ । शी꣡र्वा꣢꣯न् । म꣣मत्तु ॥१४०२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एतो न्विन्द्रꣳ स्तवाम शुद्धꣳ शुद्धेन साम्ना । शुद्धैरुक्थैर्वावृध्वाꣳसꣳ शुद्धैराशीर्वान्ममत्तु ॥१४०२॥


    स्वर रहित पद पाठ

    आ । इत । उ । नु । इन्द्रम् । स्तवाम । शुद्धम् । शुद्धेन । साम्ना । शुद्धैः । उक्थैः । वावृध्वाꣳसम् । शुद्धैः । आशीर्वान् । आ । शीर्वान् । ममत्तु ॥१४०२॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1402
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 9; मन्त्र » 1
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 12; खण्ड » 3; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    प्रथम ऋचा की व्याख्या पूर्वार्चिक में ३५० क्रमाङ्क पर अध्यात्म विषय में की गयी थी। यहाँ परमेश्वर, आचार्य और राजा का विषय वर्णित करते हैं।

    पदार्थ

    हे साथियो ! (एत उ) आओ, (नु) शीघ्र ही, तुम और हम मिलकर (शुद्धेन साम्ना) शुद्ध स्तोत्र से (शुद्धम्) शुद्ध (इन्द्रम्)परमात्मा, आचार्य वा राजा के (स्तवाम) गुणों का वर्णन करें। (शुद्धैः उक्थैः) शुद्ध स्तोत्रों वा वेदपाठों से (वावृध्वांसम्) वृद्धि को प्राप्त प्रत्येक स्तोता, शिष्य वा प्रजाजन को (अशीर्वान्) आशीर्वादों वा गोदुग्धों का अधिपति वह परमात्मा, आचार्य वा राजा (शुद्धैः) शुद्ध आशीर्वादों वा शुद्ध गोदुग्धों से (ममत्तु) आनन्दित करे ॥१॥

    भावार्थ

    स्तुति किये गये परमेश्वर, आचार्य और राजा स्तोताओं को आशीर्वाद देकर और दूध, घी आदि ऐश्वर्य देकर बढ़ाते हैं ॥१॥

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    टिप्पणी

    (देखो अर्थव्याख्या मन्त्र संख्या ३५०)

    विशेष

    ऋषिः—तिरश्ची (अन्तर्ध्यानी उपासक६)॥ देवता—इन्द्रः (ऐश्वर्यवान् परमात्मा)॥ छन्दः—अनुष्टुप्॥<br>

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    विषय

    परिव्राजक के उपदेश का मुख्य विषय

    पदार्थ

    ३५० संख्या पर इस मन्त्र का अर्थ द्रष्टव्य है -

    गत मन्त्र में उल्लेख था कि — अभिस्वर धन्वा पूयमानः'=अपने हृदय को पवित्र करता हुआ तू वेदोपदेश कर। इस मन्त्र में उस उपदेश का संकेत है। यह उपदेशक ‘तिरश्ची:' [तिरः अञ्चति] तिरोहित होकर—[छिपे ही रहते हुए- अब तक संन्यासियों में अपने नामादि बतलाने की प्रथा नहीं] गति करता है— परिव्राट् तो यह है ही। प्रभु के कार्य में लगा होने से ‘आङ्गिरस'=शक्तिशाली है । वासनाओं के लिए अपने हृदय को जो मरुभूमि बना देता है उसे ऐसा होना ही चाहिए। यह उपदेश करता है कि - (एत उ) = आओ, चारों ओर से यहाँ एकत्र हो जाओ । (नु) = अब (इन्द्रम्) = उस परमैश्वर्यशाली प्रभु का हम (स्तवाम) = स्तवन करें। जो (शुद्धम्) = पूर्ण शुद्ध है। उसका स्तवन (शुद्धेन साम्ना) = शुद्ध, शान्त मनोवृत्ति से करें । (शुद्धैः उक्थैः) = शुद्ध वचनों से (वावृध्वांसम्) = बढ़नेवाले उस प्रभु का हम स्तवन करें । प्रत्येक को चाहिए कि – (शुद्धैः) = शरीर, मन व बुद्धि को पवित्र बनाकर (आशीर्वान्) = सबके लिए शुभ इच्छाओंवाला होकर ममत्तु-सदा प्रसन्न मनवाला होकर विचरे । 

    भावार्थ

    प्रभुभक्त निर्दोष मनवाला होता है, सत्यवाणीवाला तथा प्रसन्न बदनवाला यह लोकहित के लिए प्रभु-सन्देश सुनाता है और लोगों को प्रभु-प्रवण करने का प्रयत्न करता है। अगले मन्त्र में यह वर्णन है कि वह क्या कहता है|

    टिप्पणी

    नोट – मन्त्र संख्या १४०१ तथा १४०२ को पढ़ने से स्पष्ट है कि १४०२वाँ मन्त्र ३५० की आवृत्ति होते हुए भी यहाँ आवश्यक है ।

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    तत्र प्रथमा ऋक् पूर्वार्चिके ३५० क्रमाङ्केऽध्यात्मविषये व्याख्याता। अत्र परमेश्वरस्याचार्यस्य नृपतेश्च विषय उच्यते।

    पदार्थः

    हे सखायः ! (एत उ) आगच्छत खलु, (नु) क्षिप्रम्, यूयं वयं च संभूय (शुद्धेन साम्ना) पवित्रेण स्तोत्रेण (शुद्धम्) पवित्रम् (इन्द्रम्) परमात्मानम् आचार्यं नृपतिं वा (स्तवाम) स्तुयाम।(शुद्धैः उक्थैः) पवित्रैः स्तोत्रैः वेदपाठैर्वा (वावृध्वांसम्) वृद्धं प्रत्येकं स्तोतारं शिष्यं प्रजाजनं वा (आशीर्वान्) आशिषां गोपयसां वा अधिपतिः स परमात्मा, आचार्यः, नृपतिर्वा (शुद्धैः) शुद्धैराशीर्वादैः शुद्धैः गोपयोभिर्वा (ममत्तु) आनन्दयतु ॥१॥

    भावार्थः

    स्तुताः परमेश्वर आचार्यो नृपतिश्च स्तोतॄनाशीर्वादप्रदानेन दुग्धघृताद्यैश्वर्यप्रदानेन च वर्धयन्ति ॥१॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Come now and let us glorify the mighty, pure King, with pure. Sama hymns, and pure Vedic verses. May he be delighted with pure songs of praise.

    Translator Comment

    See verse 350. Sayana has in vain tried to import history in the Verse, Indra killed the demons, felt remorseful and guilty, and requested the Rishis to purity him. This interpretation is illogical and unacceptable.

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    Meaning

    Come, friends, and, with happy chant of pure holy Sama songs, adore Indra, pure and bright spirit and power of the world, who feels pleased and exalted by honest unsullied songs of adoration. Let the supplicant with a pure heart please and win the favour of Indra and rejoice. (Rg. 8-95-7)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (एत नु उ) હે ઉપાસકો ! આવો શીઘ્ર તમે અને અમે સર્વ અવશ્ય (शुद्धम् इन्द्रम्) પાપ શિવ સંપર્કરહિત તેમજ શુભ ગુણયુક્ત પરમાત્માની (शुद्धेन साम्ना) નિષ્પાપ તેમજ શુભ ગુણયુક્ત સાધુ ગાન દ્વારા (स्तवाम) સ્તુતિ કરીએ; તથા (शुद्धः उक्थैः) અસત્ય આદિ દોષોથી રહિત તેમજ ૠજુ સત્ય આદિ ધર્મયુક્ત વાક્-વાણીઓથી (वावृध्वांसम्) વધતાં-વધારતાં પ્રસન્ન થતાં કરતાં પરમાત્માની સ્તુતિ કરીએ. જેથી (शुद्धैः आशीर्वान् ममत्तु) તે અમારી શુદ્ધ-પવિત્ર આશીઃ-ઇચ્છાઓ પ્રાર્થનાઓથી આશાઓવાળા કામનાઓને આપનાર પ્રસન્ન બને. (૯)

     

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : પરમાત્મા અમારી આશાઓને, કામનાઓને પૂર્ણ કરે છે, પરન્તુ પવિત્રમાં પવિત્ર, શાન્ત, શિવરૂપ, સાધુભાવથી પૂર્ણ વચનોથી તથા અસત્ય આદિ દોષરહિત આચરણોથી સ્તુતિ કરીએ, ત્યારે તે વધતાં વધારતાં યુક્ત બનીને અમારી પવિત્ર પ્રાર્થનાઓ દ્વારા અમારી કામનાઓને પૂર્ણ કરનાર બનીને પ્રસન્નતાને પ્રાપ્ત કરે છે. (૯)
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    स्तुती केलेला परमेश्वर, आचार्य, राजा यांनी स्तोत्यांना आशीर्वाद देऊन व दूध, तूप इत्यादी ऐश्वर्य देऊन त्यांची वृद्धी करवावी. ॥१॥

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