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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1441
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
काण्ड नाम -
4
ए꣡मे꣢नं प्र꣣त्ये꣡त꣢न꣣ सो꣡मे꣢भिः सोम꣣पा꣡त꣢मम् । अ꣡म꣢त्रेभिरृजी꣣षि꣢ण꣣मि꣡न्द्र꣢ꣳ सु꣣ते꣢भि꣣रि꣡न्दु꣢भिः ॥१४४१॥
स्वर सहित पद पाठआ । ई꣣म् । एनम् । प्रत्ये꣡त꣢न । प्र꣣ति । ए꣡त꣢꣯न । सो꣡मे꣢꣯भिः । सो꣣मपा꣡त꣢꣯मम् । सो꣣म । पा꣡त꣢꣯मम् । अ꣡म꣢꣯त्रेभिः । ऋ꣣जीषि꣡ण꣢म् । इ꣡न्द्र꣢꣯म् । सु꣣ते꣡भिः꣢ । इ꣡न्दु꣢꣯भिः ॥१४४१॥
स्वर रहित मन्त्र
एमेनं प्रत्येतन सोमेभिः सोमपातमम् । अमत्रेभिरृजीषिणमिन्द्रꣳ सुतेभिरिन्दुभिः ॥१४४१॥
स्वर रहित पद पाठ
आ । ईम् । एनम् । प्रत्येतन । प्रति । एतन । सोमेभिः । सोमपातमम् । सोम । पातमम् । अमत्रेभिः । ऋजीषिणम् । इन्द्रम् । सुतेभिः । इन्दुभिः ॥१४४१॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1441
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 13; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 13; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
अगले मन्त्र में मनुष्यों को परमात्मा की उपासना के लिए प्रेरित किया गया है।
पदार्थ
हे मनुष्यो ! तुम (सोमपातमम्) तुम्हारे श्रद्धारस को अतिशय पान करनेवाले (एनम् प्रति) इस परमात्मा के प्रति (ईम्) सब ओर से (सोमेभिः) श्रद्धारसों के साथ (एतन) पहुँचो। (ऋजीषिणम्) सरल धार्मिक जनों के पास पहुँचने का जिसका स्वभाव है, ऐसे (इन्द्रम् प्रति)जगदीश्वर के प्रति (अमत्रेभिः) महान्, (सुतेभिः) अभिषुत किये हुए, (इन्दुभिः) भिगो देनेवाले श्रद्धारसों के साथ (एतन) पहुँचो ॥२॥
भावार्थ
परमात्मा के प्रति हार्दिक श्रद्धारस के प्रवाह से मनुष्य का जीवन उज्ज्वल हो जाता है ॥२॥
पदार्थ
(ईम्-एनं सोमपातम्) हे उपासको! तुम अवश्य इस उपासनारस के अत्यन्त पान करने वाले—स्वीकार करने वाले—(ऋजीषिणम्-इन्द्रम्) अध्यात्मयज्ञ में अतिरिक्त बढ़े-चढ़े उपासक वाले१ परमात्मा को (सुतेभिः-अमत्रेभिः-इन्दुभिः सोमेभिः) सम्पन्न हुए—बिना माप वाले२ अत्यधिक दीप्यमान उपासनारसों द्वारा (आप्रत्येतन) समन्तरूप से प्राप्त होओ॥२॥
विशेष
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विषय
अपने को उस-जैसा ही बनाएँ
पदार्थ
(आ) = सर्वथा (ईम्) = निश्चय से (एनम्) = इस प्रभु के (प्रतिएतन) = ओर आओ - चलो | यह सिद्धान्त तो निश्चित ही है कि प्रकृति की ओर न जाकर प्रभु की ओर चलना चाहिए । यह कार्य सर्वोत्तम ढंग से ऐसे ही हो सकता है कि हम उस जैसे ही बनकर उसकी ओर चलने का ध्यान करें । वेद कहता है कि
१. (सोमपातमम्) = अतिशय सोम का पान करनेवाले–शक्ति को अपने अन्दर धारण करनेवाले प्रभु को (सोमेभिः) = सोमों के द्वारा ही प्राप्त करो । यदि हम उत्पन्न सोम की रक्षा नहीं करते तो अपनी कितनी हानि करते हैं ? ।
२. (ऋजीषिणम्) = [seizing, driving away] शत्रुओं का विद्रावण करते हुए उस प्रभु को (अमत्रेभिः) = शत्रुओं के अभिभव [overpowering enemies] के द्वारा पाने का प्रयत्न करो । ३. (इन्द्रम्) = बल के कार्यों को करनेवाले प्रभु को [सर्वाणि बलकर्माणि इन्द्रस्य] (सुतेभिः) = अपने अन्दर उत्पन्न किये हुए (इन्दुभिः) = सोम व शक्ति के कणों से ही प्राप्त किया जा सकता है|
भावार्थ
प्रभु-जैसे बनकर हम प्रभु को प्राप्त करें ।
संस्कृत (1)
विषयः
अथ जनान् परमात्मोपासनायै प्रेरयति।
पदार्थः
हे मनुष्याः ! यूयम् (सोमपातमम्) युष्माकं श्रद्धारसानाम् अतिशयेन पातारम् (एनं प्रति) एतं परमात्मानं प्रति (ईम्)सर्वतः (सोमेभिः) श्रद्धारसैः सह (एतन) प्राप्नुत। (ऋजीषिणम्) ऋजून् सरलान् धार्मिकान् जनान् ईषितुं गन्तुं शीलं यस्य तम् (इन्द्रम् प्रति) जगदीश्वरम् अभिलक्ष्य (अमत्रेभिः) महद्भिः। [अमत्रोऽमात्रो महान् भवति अभ्यमितो वा। निरु० ६।२३।] (सुतेभिः) अभिषुतैः (इन्दुभिः) आर्द्रीकुर्वद्भिः श्रद्धारसैः (एतन)गच्छत ॥२॥२
भावार्थः
परमात्मानं प्रति हार्दिकस्य श्रद्धारसस्य प्रवाहेण मनुष्यस्य जीवनमुज्ज्वलं जायते ॥२॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O learned persons, go nigh to God, this store-house of knowledge, through the aid of sages. Realise through the sermons of renowned scholars, God, the Exhibitor Of the path of rectitude!
Translator Comment
Gleaned’ refers to knowledge.
Meaning
In consequence and return, O scholars and citizens of the land, be grateful to this Indra, brilliant ruler, lover of the peace and pleasure of the soma of knowledge and enlightenment and promoter of scholars and men of truth and naturalness. Do all possible homage to him with ample measures of work and knowledge distilled like soma in the essence from your brilliant work and noble conduct. (Rg. 6-42-2)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (ईम् एनं सोमपातम्) હે ઉપાસકો ! તમે અવશ્ય એ ઉપાસનારસનું પાન કરનાર-સ્વીકાર કરનાર (ऋजीषिणम् इन्द्रम्) અધ્યાત્મયજ્ઞમાં અતિરિક્ત પ્રવૃદ્ધ ઉપાસકવાળા પરમાત્માને (सुतेभिः अमत्रेभिः इंदुभिः सोमेभिः સંપન્ન થયેલ અમાપ-અત્યધિક પ્રકાશમાન ઉપાસનારસો દ્વારા (आप्रत्येतन) સમગ્રરૂપથી પ્રાપ્ત થાઓ. (૨)
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्म्याबद्दलच्या हार्दिक श्रद्धा रसाच्या प्रवाहाने माणसाचे जीवन उज्ज्वल बनते. ॥२॥
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