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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1442
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
काण्ड नाम -
4
य꣡दी꣢ सु꣣ते꣢भि꣣रि꣡न्दु꣢भिः꣣ सो꣡मे꣢भिः प्रति꣣भू꣡ष꣢थ । वे꣢दा꣣ वि꣡श्व꣢स्य꣣ मे꣡धि꣢रो धृ꣣ष꣢꣫त्तन्त꣣मि꣡देष꣢꣯ते ॥१४४२॥
स्वर सहित पद पाठय꣡दि꣢꣯ । सु꣣ते꣡भिः꣢ । इ꣡न्दु꣢꣯भिः । सो꣡मे꣢꣯भिः । प्र꣣तिभू꣡ष꣢थ । प्र꣣ति । भू꣡ष꣢꣯थ । वे꣡द꣢꣯ । वि꣡श्व꣢꣯स्य । मे꣡धि꣢꣯रः । घृ꣣ष꣢त् । त꣡न्त꣢꣯म् । तम् । त꣣म् । इ꣢त् । आ । इ꣣षते ॥१४४२॥
स्वर रहित मन्त्र
यदी सुतेभिरिन्दुभिः सोमेभिः प्रतिभूषथ । वेदा विश्वस्य मेधिरो धृषत्तन्तमिदेषते ॥१४४२॥
स्वर रहित पद पाठ
यदि । सुतेभिः । इन्दुभिः । सोमेभिः । प्रतिभूषथ । प्रति । भूषथ । वेद । विश्वस्य । मेधिरः । घृषत् । तन्तम् । तम् । तम् । इत् । आ । इषते ॥१४४२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1442
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 13; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 13; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
अगले मन्त्र में परमात्मा की उपासना का फल वर्णित है।
पदार्थ
हे उपासको ! (यदि) यदि (सुतेभिः) अभिषुत किये हुए, (इन्दुभिः) सराबोर कर देनेवाले (सोमेभिः) श्रद्धारसों से, तुम इन्द्र परमात्मा को (प्रतिभूषथ) अलङ्कृत करते हो, तो (मेधिरः) मेधावी वह इन्द्र (विश्वस्य) तुम्हारे सब मनोरथों को (वेद) जान जाता है और (धृषत्) विघ्नों को परास्त करता हुआ (तं तम्) उस-उस मनोरथ को (इत्) अवश्य ही (आ इषते) पूर्ण करता है ॥३॥
भावार्थ
परमेश्वर में श्रद्धा रखनेवाला मनुष्य अभीष्ट की पूर्ति में समर्थ हो जाता है ॥३॥
पदार्थ
(यदी) हे उपासको! यदि (सुतेभिः-इन्दुभिः सोमेभिः) निष्पन्न प्रकाशमान उपासनारसों से (प्रति भूषथ) इन्द्र—परमात्मा को तुम प्रतिप्राप्त हो जाओ३ तो (मेधिरः-धृषत्) प्रशस्त मेधा वाला अज्ञाननाशक परमात्मा (विश्वस्य वेद) सब कमनीय को जानता है (तं तम्-इत्-एषते) उसको प्राप्त कराता है॥३॥
विशेष
<br>
विषय
ब्रह्मचर्य
पदार्थ
प्रभु 'भारद्वाज बार्हस्पत्य' = शक्ति को अपने में भरनेवाले ज्ञानी से कहते हैं कि (यत् ई) = जब ही तुम (सुतेभिः) = शरीर में रसादि क्रम से उत्पन्न हुए-हुए (इन्दुभिः) = शक्ति देनेवाले (सोमेभिः) = सोमकणों से (प्रतिभूषथ) = अपने अङ्ग-प्रत्यङ्ग को सुभूषित करते हो [भूष्=adorn, give beauty to] तो उसका परिणाम यह होता है कि तुम १. (विश्वस्य वेद) = ज्ञानी बनते हो - सारे ज्ञान-विज्ञान के प्राप्त करनेवाले होते हो। २. (मेधिरः) = उत्तम मेधावाले बनते हो । बुद्धि का निर्माण इन्हीं सोमकणों से होता है। सोम का अपव्यय करनेवालों की ज्ञानाग्नि बुझ जाती है - थोड़े-से भी गम्भीर चिन्तन से उनका सिर दर्द करने लगता है ३. (धृषत्) = तू काम, क्रोध, लोभ आदि अन्त:शत्रुओं का धर्षण करनेवाला बनता है। ये शत्रु तुझपर प्रबल नहीं हो पाते । ४. तं तं इत् एषते - यह सोम से अपने जीवन को सुन्दर बनानेवाला उस-उस कामना को प्राप्त होता है, अर्थात् जो चाहता है वह करने में समर्थ होता है, ब्रह्मचारी के लिए कुछ भी अप्राप्य नहीं है ।
भावार्थ
ब्रह्मचर्य से सोमकणों की ऊर्ध्वगति के द्वारा १. मनुष्य सम्पूर्ण ज्ञान-विज्ञानों को प्राप्त करता है । २. बुद्धिमान् बनता है । ३. शत्रुओं का धर्षण करनेवाला होता है और ४. सब कामनाओं को प्राप्त करता है ।
संस्कृत (1)
विषयः
अथ परमात्मोपासनायाः फलमाह।
पदार्थः
हे उपासकाः। (यदि) चेत् (सुतेभिः) अभिषुतैः, (इन्दुभिः)क्लेदकैः (सोमेभिः) श्रद्धारसैः यूयम्, इन्द्रं परमात्मानम् (प्रति भूषथ) अलङ्कुरुथ, तर्हि (मेधिरः) मेधावी स इन्द्रः (विश्वस्य) विश्वं सर्वं युष्मदीयं मनोरथम् (वेद) जानाति, किञ्च (धृषत्) विघ्नानां धर्षकः सन् (तं तम्) तं तं मनोरथम् (इत्) निश्चयेन (आ-इषते) आपूरयति। [इषतिः गतिकर्मा। निघं० २।१४] ॥३॥२
भावार्थः
परमेश्वरे श्रद्दधानो जनोऽभिलषितपूर्त्यै समर्थो जायते ॥३॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O learned persons, when Ye worship God through accomplished, intellectual sages. He, the Controller of all, being Wise, knows everything, and fulfil each desire of yours!
Meaning
If you honour the lord ruler with the homage of pure and brilliant soma of knowledge and yajnic action in response to his magnanimity, the wise and adorable lord of the world would acknowledge and appreciate each act of homage. (Rg. 6-42-3)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (यदी) હે ઉપાસકો ! જો (सुतेभिः इन्दुभिः सोमेभिः) નિષ્પન્ન પ્રકાશમાન ઉપાસનારસોથી (प्रति भूषथ) ઇન્દ્ર-પરમાત્માને તમે પ્રતિપ્રાપ્ત થઈ જાઓ, ત્યારે (मेधिरः धृषत्) પ્રશસ્ત મેધાવાળા અજ્ઞાનનાશક પરમાત્મા (विश्वस्य वेद) સમસ્ત ઇચ્છનીયને જાણે છે (तं तम् इत् एषते) તેને પ્રાપ્ત કરાવે છે. (૩)
मराठी (1)
भावार्थ
परमेश्वरावर श्रद्धा ठेवणारा माणूस अभीष्ट पूर्ती करण्यास समर्थ होतो. ॥३॥
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