Loading...

सामवेद के मन्त्र

  • सामवेद का मुख्य पृष्ठ
  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1495
    ऋषिः - त्र्यरुणस्त्रैवृष्णः, त्रसदस्युः पौरुकुत्सः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - ऊर्ध्वा बृहती स्वरः - मध्यमः काण्ड नाम -
    3

    आ꣢दीं꣣ के꣢ चि꣣त्प꣡श्य꣢मानास꣣ आ꣡प्यं꣢ वसु꣣रु꣡चो꣢ दि꣣व्या꣢ अ꣣꣬भ्य꣢꣯नूषत । दि꣣वो꣡ न वार꣢꣯ꣳ सवि꣣ता꣡ व्यू꣢र्णुते ॥१४९५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ꣢त् । ई꣣म् । के꣢ । चि꣢त् । प꣡श्य꣢꣯मानासः । आ꣡प्य꣢꣯म् । व꣣सुरु꣡चः꣢ । व꣣सु । रु꣡चः꣢꣯ । दि꣣व्याः꣢ । अ꣣भि꣢ । अ꣣नूषत । दिवः꣢ । न । वा꣡र꣢꣯म् । स꣣विता꣢ । वि । ऊ꣣र्णुते ॥१४९५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आदीं के चित्पश्यमानास आप्यं वसुरुचो दिव्या अभ्यनूषत । दिवो न वारꣳ सविता व्यूर्णुते ॥१४९५॥


    स्वर रहित पद पाठ

    आत् । ईम् । के । चित् । पश्यमानासः । आप्यम् । वसुरुचः । वसु । रुचः । दिव्याः । अभि । अनूषत । दिवः । न । वारम् । सविता । वि । ऊर्णुते ॥१४९५॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1495
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 14; खण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    आगे पुनः वही विषय है।

    पदार्थ

    (आत्) जब परब्रह्म के पास से बहता हुआ ब्रह्मानन्द-रस जीवात्मा को प्राप्त होने लगता है, उसके अनन्तर इस ब्रह्मानन्द के (आप्यम्) अपने साथ बन्धुत्व को (पश्यमानासः) देखते हुए, (वसुरुचः) अग्नि, बिजली और आदित्य के समान कान्तिवाले तेजस्वी (केचित्) कोई (दिव्याः) दीप्तिमान् ब्रह्म का साक्षात्कार करने में निपुण उपासक (ईम्) इस ब्रह्मानन्द-रस की (अभ्यनूषत) स्तुति करते हैं। (सविता) सूर्य (दिवः न वारम्) जैसे आकाश के शिशु चन्द्रमा को अपने प्रकाश से (व्यूर्णुते) आच्छादित करता है, वैसे ही (सविता) रस का प्रवाहक सोम परमेश्वर उन उपासकों को (व्यूर्णुते) आनन्द-रस से आच्छादित करता है ॥२॥ यहाँ उपमालङ्कार है ॥२॥

    भावार्थ

    जैसे सूर्य के प्रकाश से चन्द्रमा स्नान करता है, वैसे ही परमात्मा के आनन्द-रस से जीव ॥२॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    पदार्थ

    (आत्-ईम्) फिर इस (आप्यम्) प्राप्तव्य परमात्मा को (केचित्) कुछेक (पश्यमानासः) दिखाई देनेवाले (वसुरुचः) रात्रि में चमकने वाले१ तारे जैसे (दिव्या) दीप्तिमान् (अभ्यनूषत) स्तुत करते हैं (दिवः-न वारं सविता व्यूर्णुते) जैसे सूर्य आकाश को घेरने वाले अन्धकार को अपने प्रकाश से हटा देता है ऐसे अपने अज्ञान अन्धकार को हटा देते हैं॥२॥

    विशेष

    <br>

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    दिव्य कान्तियों का दर्शन

    पदार्थ

    हृदय में श्रद्धा तथा मस्तिष्क में ज्योति के विकास के (आत् ईम्) = ठीक पश्चात् - बिना किसी अन्य बिलम्ब के (केचित्) = कुछ– विरल पुरुष उस (आप्यम्) = सबके प्राप्त करने योग्य (दिव्याः वसुरुचः) = सर्वत्र बसनेवाले व सभी को अपने में निवास देनेवाले प्रभु की दिव्य कान्तियों को (पश्यमानासः) = देखते हुए (अभ्यनूषत) - उसका स्तवन करते हैं।

    आत्मतत्त्व की ओर विरल पुरुषों की ही प्रवृत्ति होती है। (‘आश्चर्यवत् पश्यति कश्चिदेनम्') प्रभु-दर्शन की प्रबल इच्छा होने पर यह व्यक्ति अपने में श्रद्धा व ज्ञान का विकास करने के लिए सतत प्रयत्नशील होता है, क्योंकि इनके बिना प्रभु-दर्शन सम्भव नहीं ? यह अनुभव करता है कि प्रभु ही मेरे लिए प्राप्त करने योग्य हैं । यह कहता है कि

    मैं एकमात्र प्रभु को ही अपनी शरण अनुभव करूँ । इसे अनुभव होता है कि प्रभु ही वसु हैं—मेरे उत्तम निवास के कारण हैं। प्रभु की दिव्य कान्तियों को देखता हुआ यह गद्गद हो उठता है और सहज ही प्रभु के स्तवन में प्रवृत्त होता है ।

    वह (सविता) = सबको प्रेरणा देनेवाला प्रभु भी (दिवः) = प्रकाश के (वारं न) = आवरण से बने हुए [न – इव] कामादि को (व्यूर्णुते) = परे हटा देता है। जैसे किसी वस्तु के आवरण को खोल दिया जाता है, उसी प्रकार यह सविता देव अपने स्तोता के ज्ञान के आवरण को हटा देते हैं, अर्थात् उसे उत्तम बुद्धि प्राप्त कराते हैं ।

    भावार्थ

    हम प्रभु की दिव्य कान्ति को देखनेवाले हों । प्रभु कृपा से हमारी बुद्धियों का विकास हो ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    missing

    भावार्थ

    जब (दिवः) प्रकाशस्वरूप आत्मा के (वारं) आवरण को (सविता न) सूर्य के समान समस्त जगत् का प्रेरक परमात्मा (विऊर्णुते) खोलता या हटा देता है (आत्) तब ही (केचित् दिव्या) प्रकाश में वर्त्तमान होकर भी कुछ एक (वसुरुचः) आत्मा के साधक या इन्द्रियादि उपकरणों के चमत्कारों को प्रेम करने हारे साधक (आप्यं) अपने प्राप्त करने योग्य बन्धुरूप (ईम्) इस प्रभु को या समाधि से उत्पन्न सनन्द को ही (पश्यमानासः) देखते हुए उसकी (अभि अनूषत) स्तुति करते हैं।

    टिप्पणी

    ‘दिवः पीयूषं’।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—१,९ प्रियमेधः। २ नृमेधपुरुमेधौ। ३, ७ त्र्यरुणत्रसदस्यू। ४ शुनःशेप आजीगर्तिः। ५ वत्सः काण्वः। ६ अग्निस्तापसः। ८ विश्वमना वैयश्वः। १० वसिष्ठः। सोभरिः काण्वः। १२ शतं वैखानसाः। १३ वसूयव आत्रेयाः। १४ गोतमो राहूगणः। १५ केतुराग्नेयः। १६ विरूप आंगिरसः॥ देवता—१, २, ५, ८ इन्द्रः। ३, ७ पवमानः सोमः। ४, १०—१६ अग्निः। ६ विश्वेदेवाः। ९ समेति॥ छन्दः—१, ४, ५, १२—१६ गायत्री। २, १० प्रागाथं। ३, ७, ११ बृहती। ६ अनुष्टुप् ८ उष्णिक् ९ निचिदुष्णिक्॥ स्वरः—१, ४, ५, १२—१६ षड्जः। २, ३, ७, १०, ११ मध्यमः। ६ गान्धारः। ८, ९ ऋषभः॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ पुनस्तमेव विषयमाह।

    पदार्थः

    (आत्) तदनन्तरम्, यदा परब्रह्मणः सकाशात् प्रस्रवन् ब्रह्मानन्दरसो जीवात्मानं प्राप्नोति तदेत्यर्थः। अस्य (आप्यम्) स्वात्मना सह बन्धुत्वम् (पश्यमानासः) वीक्षमाणाः, (वसुरुचः) वसुवत् अग्निविद्युदादित्यवद् रुक् कान्तिर्येषां ते, तेजस्विनः (केचित्) केचन (दिव्याः) दिवि द्योतमाने परब्रह्मणि साधवः परब्रह्मसाक्षात्कारनिपुणा उपासकाः इत्यर्थः (ईम्) एनं ब्रह्मानन्दरसम् (अभ्यनूषत) अभिस्तुवन्ति। (सविता) सूर्यः (दिवः न वारम्) आकाशस्य बालं शिशुं चन्द्रमसं यथा स्वप्रकाशेन (व्यूर्णुते) आच्छादयति, तथैव (सविता) रसाभिषोता सोमः परमेश्वरः तान् उपासकान् (व्यूर्णुते) आनन्दरसेन आच्छादयति। [वारं बालम् वबयो रलयोश्चाभेदत्वात्] ॥२॥ अत्रोपमालङ्कारः ॥२॥

    भावार्थः

    यथा सूर्यप्रकाशेन चन्द्रः स्नाति, तथैव परमात्मन आनन्दरसेन जीवः ॥२॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    When the darkness of the soul is removed by God like the Sun, then only, some intellectually superior persons, the implemented of the soul, praise God, visualising Him as their attainable Friend.

    Translator Comment

    Like the sun: Just as the sun at dawn removes the darkness of the earth, so does God remove the darkness of the soul, when it goes into Samadhi.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Meaning

    And some men of vision who can perceive the adorable presence worthy of attainment, and some divinely blest lovers of the life sustainer Soma who adore and exalt him, these reveal the mystery and majesty of the supreme Soma spirit as the sun reveals the world of physical reality. (Rg. 9-110-6)

    इस भाष्य को एडिट करें

    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (आत् ईम्) પછી તે (आप्यम्) પ્રાપ્તવ્ય પરમાત્માને (केचित्) કિંચિત્ (पश्यमानासः) જોવામાં આવનાર (वसुरुचः) રાતે ચમકનાર તારાઓ જેમ (दिव्या) પ્રકાશમાન (अभ्यनूषत) સ્તુત કરે છે (दिवः न वारं सचिता व्यूर्णुते) જેમ સૂર્ય આકાશને ઘેરનાર અંધકારને પોતાના પ્રકાશથી દૂર કરી દે છે, તેમ પોતાના અજ્ઞાન અંધકારને દૂર કરી દે છે. (૨)
     

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    जसा सूर्य प्रकाशाने चंद्र स्नान करतो, तसेच परमात्म्याच्या आनंदरसाने जीव. ॥२॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top