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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1496
    ऋषिः - त्र्यरुणस्त्रैवृष्णः, त्रसदस्युः पौरुकुत्सः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - ऊर्ध्वा बृहती स्वरः - मध्यमः काण्ड नाम -
    3

    अ꣢ध꣣ य꣢दि꣣मे꣡ प꣢वमान꣣ रो꣡द꣢सी इ꣣मा꣢ च꣣ वि꣢श्वा꣣ भु꣡व꣢ना꣣भि꣢ म꣣ज्म꣡ना꣢ । यू꣣थे꣢꣫ न नि꣣ष्ठा꣡ वृ꣢ष꣣भो꣡ वि रा꣢꣯जसि ॥१४९६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ꣡ध꣢꣯ । यत् । इ꣣मे꣢इति꣢ । प꣣वमान । रो꣡द꣢꣯सी꣣इ꣡ति꣢ । इ꣣मा꣢ । च꣣ । वि꣡श्वा꣢꣯ । भु꣡व꣢꣯ना । अ꣣भि꣢ । म꣣ज्म꣡ना꣢ । यू꣣थे꣢ । न । नि꣣ष्ठाः꣢ । निः꣣ । स्थाः꣢ । वृ꣣षभः꣢ । वि । रा꣣जसि ॥१४९६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अध यदिमे पवमान रोदसी इमा च विश्वा भुवनाभि मज्मना । यूथे न निष्ठा वृषभो वि राजसि ॥१४९६॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अध । यत् । इमेइति । पवमान । रोदसीइति । इमा । च । विश्वा । भुवना । अभि । मज्मना । यूथे । न । निष्ठाः । निः । स्थाः । वृषभः । वि । राजसि ॥१४९६॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1496
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 14; खण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    अगले मन्त्र में परमेश्वर की महिमा वर्णित है।

    पदार्थ

    (अध) और, हे (पवमान) क्रियाशील परमात्मन् ! आप (यत्) जब (इमे रोदसी) इन द्युलोक और भूलोक को (इमा च) तथा इन (विश्वा भुवना) सब भुवनों को (मज्मना) बल से (अभि) अभिभूत करते हो, तब (यूथे न) जैसे गौओं के झुण्ड में (निष्ठाः) स्थित (वृषभा) साँड शोभा पाता है, वैसे ही आप (विराजसि) शोभते हो ॥३॥ यहाँ उपमालङ्कार है ॥३॥

    भावार्थ

    जैसे गौओं के झुण्ड में वृषभ अपने महत्व के कारण पृथक् शोभा पाता है, वैसे ही ब्रह्माण्ड के लोक-लोकान्तरों के मध्य जगत्स्रष्टा परमेश्वर सर्वाधिक महिमा के कारण पृथक् भासित होता है ॥३॥

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    पदार्थ

    (अध) अनन्तर (पवमान) धारारूप में प्राप्त होने वाले परमात्मन्! (यद् ‘यदा’) जब (इमे रोदसी) इन द्यावापृथिवी—प्राण उदान२ को—प्राणायाम—योगाभ्यास के प्रति (च) और (विश्वा भुवनानि) समस्त अध्यात्मयज्ञों—स्तुति प्रार्थना उपासनाओं के प्रति भी३ (मज्मना) पावक बल से४ (यूथे न निष्ठा वृषभः) गोसमूह में विशेष स्थित—विशेष लक्षित साण्ड के समान (विराजसि) तू विशेष प्रकाशमान होता है॥३॥

    विशेष

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    विषय

    गौवों में वृषभ के समान

    पदार्थ

    यह ‘त्रसदस्यु' प्रभु की दिव्य कान्तियों का दर्शन व स्तवन करता हुआ सभी लोक-लोकान्तरों में अधिष्ठातृरूपेण स्थित प्रभु को देखता है और कह उठता है कि - (अध) = अब (यत्) = जो (इमे रोदसी) = ये द्युलोक व पृथिवीलोक हैं, (च) = तथा (इमा विश्वा भुवना) = ये सम्पूर्ण लोक-लोकान्तर हैं हे (पवमान) = सबको गति देने व पवित्र करनेवाले प्रभो ! आप (मज्मना) = [नि० २.९ मज्मना इति बलनाम] अपनी शक्ति से इन सबपर (अभिविराजसि) = चारों ओर शोभायमान हो रहे हैं । आपने अपनी शक्ति से इन सबको अधिष्ठित किया हुआ है । इन लोक-लोकान्तरों पर अधिष्ठित आप इस प्रकार शोभायमान हो रहे हैं (न) = जैसे (यूथे) = गौवों के झुण्ड में (निष्ठा) = निश्चितरूप से स्थित (वृषभ:) = वृषभ शोभायमान होता है । सब लोकों का उपादानकारण महत्तत्त्व परमेश्वर से अधिष्ठित है । परमेश्वर से अधिष्ठित प्रकृति ही सचराचर संसार को जन्म देती है। प्रभु लोकों को जन्म देते हैं और फिर उन लोकों की रक्षा भी करते हैं । वृषभ गौवों के झुण्ड में दोनों ही कार्यों को करता है ।

    परमेश्वर से अधिष्ठित ये लोक ठीक गति में रहते हैं तथा इनकी पवित्रता बनी रहती है। जीव जितने अंश में विद्रोह करके स्वतन्त्र होना चाहता है, उतने ही अंश में वह उच्छृंखल होकर अपवित्र हो जाता है। ‘त्रसदस्यु' अपने को प्रभु से अधिष्ठितरूप में ही चाहता है और इसी से वह वासनाओं का शिकार नहीं होता ।

    भावार्थ

    हम सब लोक-लोकान्तरों के अधिष्ठिाता प्रभु की महिमा व शोभा को देखें और अपने जीवनों को पवित्र बनाएँ ।

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ परमेश्वरस्य महिमानमाह।

    पदार्थः

    (अध) अथ, हे (पवमान) गतिमय, क्रियाशील परमात्मन् ! [पवते गतिकर्मा। निघं० २।१४।] त्वम् (यत्) यदा (इमे रोदसी) एते द्यावापृथिव्यौ (इमा च) इमानि च (विश्वा भुवना) सर्वाणि भुवनानि (मज्मना) बलेन [मज्मन् इति बलनाम। निघं० २।९।] (अभि) अभिभवसि, तदा (यूथे न) यथा गोयूथे (निष्ठाः) निष्ठितः (वृषभा) वृषभः विराजति। [सुपां सुलुक्० अ० ७।१।३९ सोराकारादेशः।] तथा, त्वम् (वि राजसि) विशेषेण शोभसे ॥३॥ अत्रोपमालङ्कारः ॥३॥

    भावार्थः

    यथा गोयूथे वृषभः महत्त्वेन पृथक् शोभते तथैव ब्रह्माण्डस्य लोकलोकान्तराणां मध्ये जगत्स्रष्टा परमेशः सर्वातिशायिना महिम्ना पृथग् भासते ॥३॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Just as a bull is supreme among the herd of cows, so dost Thou, G God, shine when Thou takest in Thy might this Earth and Heaven and all existence.

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    Meaning

    And then, O pure and purifying Soma, as long as these heaven and earth and all these regions of the world you wield with your might abide, you abide as the master in the centre of the multitude. (Rg. 9-110-9)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (अध) ત્યાર પછી (पवमान) ધારારૂપમાં પ્રાપ્ત થનાર પરમાત્મન્ ! (यद् "यदा") જ્યારે (इमे रोदसी) એ દ્યાવાપૃથિવી પ્રાણ ઉદાનને-પ્રાણાયામ-યોગાભ્યાસની તરફ (च) અને (विश्वा भुवनानि) સમસ્ત અધ્યાત્મયજ્ઞો-સ્તુતિ, પ્રાર્થનાઓ, ઉપાસનાઓની તરફ પણ (मज्मना) પવિત્ર બળથી (यूथे न निष्ठा वृषभः) ગાયના ધણમાં વિશેષ રહેલ-વિશેષ લક્ષિત સાંઢની સમાન (विराजसि) તું વિશેષ પ્રકાશમાન થઈ રહ્યો છે. (૩)

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जसे गायीच्या समूहात बैल आपल्या महत्त्वामुळे वेगळा दिसतो. तसेच ब्रह्मांडाच्या लोकलोकांतरामध्ये जगत्स्रष्टा परमेश्वर सर्वात अधिक महिमेमुळे पृथक् भासतो. ॥३॥

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