Loading...

सामवेद के मन्त्र

  • सामवेद का मुख्य पृष्ठ
  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1520
    ऋषिः - शतं वैखानसाः देवता - अग्निः पवमानः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    2

    अ꣢ग्ने꣣ प꣡व꣢स्व꣣ स्व꣡पा꣢ अ꣣स्मे꣡ वर्चः꣢꣯ सु꣣वी꣡र्य꣢म् । द꣡ध꣢द्र꣣यिं꣢꣫ मयि꣣ पो꣡ष꣢म् ॥१५२०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ꣡ग्ने꣢꣯ । प꣡व꣢꣯स्व । स्व꣡पाः꣢꣯ । सु꣣ । अ꣡पाः꣢ । अ꣣स्मे꣡इति꣢ । व꣡र्चः꣢꣯ । सु꣣वी꣡र्य꣢म् । सु꣣ । वी꣡र्य꣢꣯म् । द꣡ध꣢꣯त् । र꣣यि꣢म् । म꣡यि꣢꣯ । पो꣡ष꣢꣯म् ॥१५२०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्ने पवस्व स्वपा अस्मे वर्चः सुवीर्यम् । दधद्रयिं मयि पोषम् ॥१५२०॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अग्ने । पवस्व । स्वपाः । सु । अपाः । अस्मेइति । वर्चः । सुवीर्यम् । सु । वीर्यम् । दधत् । रयिम् । मयि । पोषम् ॥१५२०॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1520
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 12; मन्त्र » 3
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 14; खण्ड » 3; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में यह बताया गया है कि योगप्रशिक्षक क्या करे।

    पदार्थ

    हे (अग्ने) योगविद्या के पण्डित योगिराज ! (स्वपाः) शुभ कर्मोंवाले आप (अस्मे) हमारे लिए (सुवीर्यम्) श्रेष्ठ वीर्य से युक्त (वर्चः) योगजन्य तेज (पवस्व) प्राप्त कराओ और (मयि) मुझ योग के जिज्ञासु में (पोषम्) पोषक (रयिम्) विवेकख्यातिरूप अध्यात्म-ऐश्वर्य (दधत्) धारण कराओ ॥३॥

    भावार्थ

    योगप्रशिक्षक योगिराज स्वयं शुभकर्मों का कर्ता होता हुआ शिष्यों को भी शुभ कर्म करने का उपदेश दे और योगाभ्यास के द्वारा उन मुमुक्षु शिष्यों को वर्चस्वी तथा विवेकख्याति से सम्पन्न करके मोक्ष का अधिकारी बना दे ॥३॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    पदार्थ

    (अग्ने) हे ज्ञान प्रेरक परमात्मन्! (स्वपाः) उत्तम कर्म वाला—अबाधित कर्म वाला१ (अस्मे वर्चः सुवीर्यं पवस्व) हमारे अन्दर तेज उत्तम बल को प्रेरित कर (मयि) मेरे में (पोषं रयिं दधत्) पोषक ज्ञान धन को धारण कराता हुआ उपास्य देव को॥३॥

    विशेष

    <br>

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    प्रकाश व कर्मशीलता

    पदार्थ

    हे (अग्ने) = प्रकाशस्वरूप! (स्वपाः) = उत्तम कर्मोंवाले प्रभो! १. (पवस्व) = हमारे जीवनों को पवित्र कीजिए। २. (अस्मे) = हमारे लिए (सुवीर्यम्) = उत्तम वीर्यवाली (वर्च:) = तेजस्विता को प्राप्त कराइए तथा ३. (मयि) = मुझमें (पोषं रयिम्) = पोषक धन को (दधत्) = धारण कीजिए ।

    प्रभु को यहाँ ‘प्रकाशस्वरूप' तथा ‘क्रियाशील' के रूप में स्मरण किया है। प्रकाश व ज्ञान हमारे कर्मों को पवित्र करता है, ज्ञान के समान पवित्र करनेवाली वस्तु है ही नहीं । इसी प्रकार क्रियाशीलता जहाँ हमें वासनाओं के आक्रमण से बचाती है, वहाँ हमें शक्तिशाली भी बनाती है । इन उत्तम कर्मों के द्वारा हम पोषण के लिए पर्याप्त धन भी प्राप्त करते हैं। उत्तम कर्मों से कमाया हुआ यह धन हमारे पतन का कारण नहीं बनता ।

    भावार्थ

    'हमारा जीवन पवित्र हो, उत्तम वीर्य से हम तेजस्वी बनें, हमें पोषक धन प्राप्त हो' इन सब बातों के लिए हमारा जीवन प्रकाश व कर्मशीलता के तत्त्वों को अपनाये।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    missing

    भावार्थ

    हे अग्ने ! (स्वपाः) शोभन प्रज्ञा और कर्म से सम्पन्न परमात्मन् ! आप (अस्मे) हमें (वर्चः) तेज (पवस्व) प्राप्त कराओ और (मयि) मुझ में (रयिम्) प्राण, बल और (पोषं) पुष्टि (दधत्) धारण कराओ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—१,९ प्रियमेधः। २ नृमेधपुरुमेधौ। ३, ७ त्र्यरुणत्रसदस्यू। ४ शुनःशेप आजीगर्तिः। ५ वत्सः काण्वः। ६ अग्निस्तापसः। ८ विश्वमना वैयश्वः। १० वसिष्ठः। सोभरिः काण्वः। १२ शतं वैखानसाः। १३ वसूयव आत्रेयाः। १४ गोतमो राहूगणः। १५ केतुराग्नेयः। १६ विरूप आंगिरसः॥ देवता—१, २, ५, ८ इन्द्रः। ३, ७ पवमानः सोमः। ४, १०—१६ अग्निः। ६ विश्वेदेवाः। ९ समेति॥ छन्दः—१, ४, ५, १२—१६ गायत्री। २, १० प्रागाथं। ३, ७, ११ बृहती। ६ अनुष्टुप् ८ उष्णिक् ९ निचिदुष्णिक्॥ स्वरः—१, ४, ५, १२—१६ षड्जः। २, ३, ७, १०, ११ मध्यमः। ६ गान्धारः। ८, ९ ऋषभः॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ योगप्रशिक्षकः किं कुर्यादित्युच्यते।

    पदार्थः

    हे (अग्ने) योगविद्याविद् विद्वन् ! (स्वपाः) शोभनानि अपांसि कर्माणि यस्य तादृशः त्वम् (अस्मे) अस्मभ्यम् (सुवीर्यम्) श्रेष्ठवीर्योपेतम् (वर्चः) योगजन्यं तेजः (पवस्व) प्रापय, किञ्च (मयि) योगजिज्ञासौ (पोषम्) पोषकम् (रयिम्) विवेकख्यातिरूपम् अध्यात्मं धनम् (दधत्) धारयन्, भवेति शेषः ॥३॥

    भावार्थः

    योगप्रशिक्षको योगिराट् स्वयं शुभकर्मा सन् शिष्यानपि शुभकर्मकरणायोपदिशेत्, योगाभ्यासद्वारा च तान् मुमुक्षून् वर्चस्विनः विवेकख्यातिमतश्च कृत्वा निःश्रेयसाधिकारिणः कुर्यात् ॥३॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Skilled in Thy task, O God, grant us splendour and heroic strength. Grant me wealth that nourishes

    Translator Comment

    See Yajur 8-38.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Meaning

    Agni, pray radiate and purify us. Lord of holy action, bless us with holy lustre, noble courage and virility. Bear and bring us wealth, honour and excellence with promotive health and nourishment. (Rg. 9-66-21)

    इस भाष्य को एडिट करें

    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (अग्ने) હે જ્ઞાનપ્રેરક પરમાત્મન્ ! (स्वपाः) ઉત્તમ કર્મવાળા-અબાધિત કર્મ કરવાવાળા (अस्मे वर्चः सुवीर्यं पवस्व) અમારી અંદર તેજ-ઉત્તમ બળને પ્રેરિત કર. (मयि) મારામાં (पोषं रयिं दधत्) પોષક જ્ઞાનધનને ધારણ કરાવતાં ઉપાસ્ય દેવને [આપ]. (૩)

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    योगप्रशिक्षक योगीराजाने स्वत: शुभ कर्मांचा कर्ता बनून शिष्यांनाही शुभ कर्म करण्याचा उपदेश करावा व योगाभ्यासाद्वारे त्या मुमुक्षु शिष्यांना प्रभावशाली व विवेकख्यातीने संपन्न करून मोक्षाचा अधिकारी बनवावे. ॥३॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top