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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1541
    ऋषिः - विरूप आङ्गिरसः देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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    उ꣡त्ते꣢ बृ꣣ह꣡न्तो꣢ अ꣣र्च꣡यः꣢ समिधा꣣न꣡स्य꣢ दीदिवः । अ꣡ग्ने꣢ शु꣣क्रा꣡स꣢ ईरते ॥१५४१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ꣢त् । ते꣣ । बृह꣡न्तः꣢ । अ꣣र्च꣡यः꣢ । स꣣मिधा꣡न꣢स्य । स꣣म् । इधान꣡स्य꣢ । दी꣣दिवः । अ꣡ग्ने꣢꣯ । शु꣣क्रा꣡सः꣢ । ई꣣रते ॥१५४१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उत्ते बृहन्तो अर्चयः समिधानस्य दीदिवः । अग्ने शुक्रास ईरते ॥१५४१॥


    स्वर रहित पद पाठ

    उत् । ते । बृहन्तः । अर्चयः । समिधानस्य । सम् । इधानस्य । दीदिवः । अग्ने । शुक्रासः । ईरते ॥१५४१॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1541
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 15; खण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    प्रथम मन्त्र में परमात्मा का तेज वर्णित करते हैं।

    पदार्थ

    हे (दीदिवः) सत्य के प्रकाशक, (अग्ने) विज्ञानवान् जगन्नायक परमात्मन् ! (समिधानस्य) देदीप्यमान (ते) आपकी (बृहन्तः) महान्, (शुक्रासः) पवित्र (अर्चयः) दीप्तियाँ (उदीरते) उठ रही हैं ॥१॥

    भावार्थ

    जब उपासक परमात्मा में तन्मय हो जाता है, तब भौतिक अग्नि की ज्वालाओं के समान उसका तेजस्वी रूप उसके सामने प्रकट हो जाता है ॥१॥

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    पदार्थ

    (दीदिवः-अग्ने) हे दीप्तिमान् परमात्मन्! (ते समिधानस्य) तुझ समिध्यमान—हृदय के अन्दर प्रकाशित—साक्षात् किए हुए को (बृहन्तः-शुक्रासः-अर्चयः) महान् शीघ्र कार्यकारी—शीघ्र सफल होनेवाली अर्चनाएँ—स्तुतियाँ (उदीरते) उठती रहती हैं—उठती रहें॥१॥

    विशेष

    ऋषिः—विरूपः (परमात्मा को विविधरूपों में निरूपण करने वाला उपासक)॥ देवता—अग्निः (ज्ञानप्रकाशस्वरूप परमात्मा)॥ छन्दः—गायत्री॥<br>

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    विषय

    ब्रह्म-दीप्ति से दीप्त 'विरूप'

    पदार्थ

    हे (दीदिवः) = प्रकाशमान् प्रभो ! (समिधानस्य) = हृदयस्थली में समिद्ध किये जाते हुए हे (अग्ने) = अग्रेणी प्रभो ! (ते बृहन्तः) = तेरी वृद्धि की कारणभूत (शुक्रासः) = शुद्ध (अर्चयः) = ज्ञानदीप्तियाँ – ज्वालाएँ (उत् ईरते) =  उद्गत होती हैं ।

    जब भक्त प्रकाशस्वरूप प्रभु को अपनी हृदय-स्थली में दीप्त करने में समर्थ होता है तब यह हृदय-स्थली ज्ञान की किरणों से जगमगा उठती है। वे ज्ञान की ज्वालाएँ शुद्ध होती हैं और हमारे जीवन की वृद्धि का साधन होती हैं । हृदय में इन ज्ञान ज्वालाओं के प्रकाशित होने पर उनका प्रतिक्षेप इस भक्त के चेहरे पर भी व्यक्त होता है । यह सामान्य पुरुषों से अधिक दीप्त-वदनवाला प्रतीत होता है, और विशिष्टरूपवाला होने के कारण मन्त्र का ऋषि ‘विरूप' है । यह अपने जीवन में एक विशेष शक्ति का अनुभव करता है और अङ्ग-प्रत्यङ्ग में शक्तिशाली होने के कारण ‘आङ्गिरस' होता है । यह चेहरे से ही 'ब्रह्मवित्'-सा लगने लगता है। 

    भावार्थ

    हृदयों में विकसित ज्ञान की दीप्ति हमारे मुखों पर प्रतिफलित होकर हमें यथार्थ में 'विरूप' बनाये ।

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    विषय

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    भावार्थ

    हे अग्ने ! (समिधानस्य) उत्तम रीति से प्रज्वलित, प्रदीप्त (ते) तेरी (शुक्रासः) कान्तिमान् तेजोमय, (बृहन्तः) बड़ी बड़ी (अर्चयः) सूय्य आदि ज्वालाएं (उद् ईरते) उठ रही हैं ऊर्ध्वं आकाश में गति कर रही हैं।

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—१, ११ गोतमो राहूगणः। २, ९ विश्वामित्रः। ३ विरूप आंगिरसः। ५, ६ भर्गः प्रागाथः। ५ त्रितः। ३ उशनाः काव्यः। ८ सुदीतिपुरुमीळ्हौ तयोर्वान्यतरः । १० सोभरिः काण्वः। १२ गोपवन आत्रेयः १३ भरद्वाजो बार्हस्पत्यो वीतहव्यो वा। १४ प्रयोगो भार्गव अग्निर्वा पावको बार्हस्पत्यः, अथर्वाग्नी गृहपति यविष्ठौ ससुत्तौ तयोर्वान्यतरः॥ अग्निर्देवता। छन्दः-१-काकुभम्। ११ उष्णिक्। १२ अनुष्टुप् प्रथमस्य गायत्री चरमयोः। १३ जगती॥ स्वरः—१-३, ६, ९, १५ षड्जः। ४, ७, ८, १० मध्यमः। ५ धैवतः ११ ऋषभः। १२ गान्धरः प्रथमस्य, षडजश्चरमयोः। १३ निषादः श्च॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    तत्रादौ परमात्मनस्तेजो वर्णयति।

    पदार्थः

    हे (दीदिवः२) सत्यप्रकाशक (अग्ने) विज्ञानवन् जगन्नेतः परमात्मन् ! (समिधानस्य) सम्यग् दीप्यमानस्य (ते) तव (बृहन्तः) महान्तः (शुक्रासः) पवित्राः (अर्चयः) प्रभाः (उदीरते) उद्गच्छन्ति ॥१॥

    भावार्थः

    यदोपासकः परमात्मनि तन्मयो जायते तदा भौतिकाग्नेर्ज्वाला इव तस्य तेजोमयं रूपं तस्य पुरत आविर्भवति ॥१॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O refulgent fire, thy mighty, bright flames, when thou art enkindled, rise on high!

    Translator Comment

    See verse 36. The four Vedas, the repository of the knowledge of God, have been mentioned in the first as well as the second part of the Samaveda, so that one who studies only one part may have knowledge of the revelation of God.

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    Meaning

    Agni, lord of light and fire, kindled, fed and rising, your lofty and expansive flames, shining and blazing, pure, powerful and purifying, go on rising higher and higher. (Rg. 8-44-4)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (दीदिवः अग्ने) હે પ્રકાશમાન પરમાત્મન્ ! (ते समिधानस्य) તું સમિધ્યમાન-હૃદયમાં પ્રકાશિત સાક્ષાત્ કરેલને (बृहन्तः शुक्रासः अर्चयः) મહાન શીઘ્ર કાર્યકારી-તુરત જ સફળ થનારી-અર્ચનાઓ-સ્તુતિઓ (उदीरते) ઊઠતી રહે છે-ઊઠતી રહે. (૧)

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जेव्हा उपासक परमात्म्यामध्ये तन्मय होतो, तेव्हा भौतिक अग्निज्वालाप्रमाणे त्याचे तेजस्वी रूप त्याच्यासमोर प्रकट होते. ॥१॥

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