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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1544
    ऋषिः - भर्गः प्रागाथः देवता - अग्निः छन्दः - बार्हतः प्रगाथः (विषमा बृहती, समा सतोबृहती) स्वरः - मध्यमः काण्ड नाम -
    2

    पा꣣हि꣡ नो꣢ अग्न꣣ ए꣡क꣢या पा꣣ह्यू꣢३꣱त꣢ द्वि꣣ती꣡य꣢या । पा꣣हि꣢ गी꣣र्भि꣢स्ति꣣सृ꣡भि꣢रूर्जां पते पा꣣हि꣡ च꣢त꣣सृ꣡भि꣢र्वसो ॥१५४४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पा꣣हि꣢ । नः꣣ । अग्ने । ए꣡क꣢꣯या । पा꣣हि꣢ । उ꣣त꣢ । द्वि꣣ती꣡य꣢या । पा꣣हि꣢ । गी꣣र्भिः꣢ । ति꣣सृ꣡भिः꣢ । ऊ꣣र्जाम् । पते । पाहि꣢ । च꣣तसृ꣡भिः꣢ । व꣣सो ॥१५४४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पाहि नो अग्न एकया पाह्यू३त द्वितीयया । पाहि गीर्भिस्तिसृभिरूर्जां पते पाहि चतसृभिर्वसो ॥१५४४॥


    स्वर रहित पद पाठ

    पाहि । नः । अग्ने । एकया । पाहि । उत । द्वितीयया । पाहि । गीर्भिः । तिसृभिः । ऊर्जाम् । पते । पाहि । चतसृभिः । वसो ॥१५४४॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1544
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 1
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 15; खण्ड » 1; सूक्त » 4; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    प्रथम ऋचा पूर्वार्चिक के भाष्य में ३६ क्रमाङ्क पर परमेश्वर और विद्वान् को सम्बोधित की गयी थी। यहाँ आचार्य को कहते हैं।

    पदार्थ

    हे (अग्ने) विद्वान् आचार्य ! आप (एकया) धर्म का उपदेश करनेवाली एक वाणी से (नः) हमारी (पाहि) पालना करो, (उत) और (द्वितीयया) धर्मानुकूल धन कमाने का उपदेश करनेवाली दूसरी वाणी से (पाहि) हमारी पालना करो। हे (ऊर्जां पते) ब्रह्मबलों के अधिपति आचार्य। आप (तिसृभिः गीर्भिः) धर्म, अर्थ और काम का उपदेश करनेवाली तीन वाणियों से (पाहि) हमारी पालना करो। हे (वसो) सद्गुणों के निवासक आचार्य ! आप (चतसृभिः) धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का उपदेश करनेवाली चार वाणियों से (पाहि) हमारी पालना करो ॥१॥

    भावार्थ

    आचार्य का यह कर्तव्य है कि वह शिष्यों को धर्म, धर्माविरोधि धन, धर्माविरोधि काम और मोक्ष के उपदेश से विद्वान् सदाचारी और मोक्ष का अधिकारी बनाये ॥१॥

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    टिप्पणी

    (देखो अर्थव्याख्या मन्त्र संख्या ३६)

    विशेष

    ऋषिः—भर्गः (तेजस्वी)॥ देवता—अग्निः (ज्ञानप्रकाशस्वरूप परमात्मा)॥ छन्दः—विषमा (बृहती)॥<br>

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    विषय

    चार वाणियों के द्वारा रक्षण

    पदार्थ

    प्रस्तुत मन्त्र का अर्थ ३६ संख्या पर द्रष्टव्य है । सरलार्थ यह हैहे अग्ने! (नः) = हमें (एकया) = अपनी ऋग्रूप वाणी से (पाहि) = रक्षित कीजिए, (उत) = और (द्वितीयया) = यजुः रूप दूसरी वाणी से भी (पाहि) = रक्षित कीजिए । हे (ऊर्जाम्पते) = शक्तियों के स्वामिन्! प्रभो! (तिसृभिः गीर्भिः) = ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेदरूप तीनों ही वाणियों से (पाहि) = हमारी रक्षा कीजिए । (वसो) = हे उत्तम निवास देनेवाले (प्रभो चतसृभिः) = चारों वाणियों से पाहि हमारी रक्षा कीजिए ।

    भावार्थ

    हम चारों वेदवाणियों का श्रवण व मनन करें और निदिध्यासन द्वारा उसका साक्षात्कार करनेवाले बनें ।

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    तत्र प्रथमा ऋक् पूर्वार्चिक-भाष्ये ३६ क्रमाङ्के परमेश्वरं विद्वांसं च सम्बोधिता। अत्राचार्य उच्यते।

    पदार्थः

    हे (अग्ने) विद्वन् आचार्य ! त्वम् (एकया) धर्मोपदेशिकया गिरा (नः) अस्मान् (पाहि) पालय, (उत) अपि च (द्वितीयया) धर्मानुकूलार्थोपदेशिकया वाचा (पाहि) पालय। हे (ऊर्जां पते) ब्रह्मबलाधिपते आचार्य ! त्वम् (तिसृभिः गीर्भिः) धर्मार्थकामोपदेशिकाभिः वाग्भिः (पाहि) पालय। हे (वसो) सद्गुणनिवासक आचार्य ! त्वम् (चतसृभिः) धर्मार्थकाममोक्षोपदेशिकाभिः वाग्भिः (पाहि) पालय ॥१॥२

    भावार्थः

    आचार्यस्येदं कर्त्तव्यं यत् स शिष्यान् धर्मस्य, धर्माऽविरोधिनोऽर्थस्य, धर्माऽविरोधिनः कामस्य, मोक्षस्य चोपदेशेन विदुषः सदाचारान् मोक्षाधिकारिणश्च कुर्यात् ॥१॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O God, protect us with one Veda (Rig), Protect us by the second Veda (Yajur). Protect us by the three Vedas (Rig, Yajur, Sama), Guard us O All-Pervading Lord of power, by the four Vedas (Rig, Yajur, S5ma and Atharva)!

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    Meaning

    Agni, save us by the first voice, and by the second, by three voices, and, O lord of cosmic power, ultimate haven and home of existence, protect and promote us by the four. (Rg. 8-60-9)(This is a very simple and yet a most comprehensive verse. The first voice could be the voice of average humanity; second, words of the sages; third, voice of the soul; fourth, the voice of divinity. Another way to understand: One, two, three or all the four Vedas voice. Yet another: voice of the soul in the rising sequence of the four mantras of Aum as described in the Upanishads. And then the four stages of language in the descending order from divine to the human: Para, Pashyanti, Madhyama and Vaikhari. )

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (ऊर्जां पते वसो अग्ने) હે બળના સ્વામી, વસાવનારા, જ્ઞાન-પ્રકાશસ્વરૂપ પરમાત્મન્ ! તું (नः) -અમારી (एकया पाहि) અને તારી એક શક્તિ-બળરૂપ ૠગ્વાણીથી-ૠગ્વેદાનુસાર સ્તુતિથી રક્ષા કર; (उत द्वितीयया पाहि) અને તારી બીજી શક્તિરૂપ યજુર્વાણી - યજુર્વેદાનુસાર પ્રાર્થનાથી અમારી રક્ષા કર; (तिसृभिः गीभिः पाहि) તારી ત્રીજી શક્તિરૂપ ત્રીજી સામવાળી-સામવેદાનુસાર ઉપાસનાથી અમારી રક્ષા કર; (चतसृभिः पाहि) તારી ચોથી શક્તિરૂપ અથર્વવાણી-અથર્વવેદાનુસાર જપથી અમારી રક્ષા કર. (૨) 

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : જ્ઞાન-પ્રકાશરૂપ પરમાત્મા ચારેય વેદની વાણીથી સર્વ મનુષ્યોની રક્ષા કરે જ છે અને અમારી ઉપાસકોની વેદાનુસાર સ્તુતિ-પ્રાર્થના-ઉપાસના અને સાક્ષાત્ અર્થ ભાવન જપ દ્વારા અમારી અંદર ઉર્જાબળને ઇન્દ્રિયો તથા મનને નિયંત્રિત કરવા અને આત્મબળ મોક્ષ પ્રાપ્તિને માટે પ્રદાન કરીને પોતાના સંપૂર્ણ રક્ષણમાં રાખે છે. (૨)

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    आचार्याचे हे कर्तव्य आहे, की त्याने शिष्यांना धर्म, धर्मविरोधी धन, धर्मविरोधी काम व मोक्षाच्या उपदेशाने विद्वान, सदाचारी व मोक्षाचा अधिकार बनावावे. ॥१॥

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