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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1558
ऋषिः - विश्वामित्रो गाथिनः
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
2
सा꣣ह्वा꣡न्विश्वा꣢꣯ अभि꣣यु꣢जः꣣ क्र꣡तु꣢र्दे꣣वा꣢ना꣣म꣡मृ꣢क्तः । अ꣣ग्नि꣢स्तु꣣वि꣡श्र꣢वस्तमः ॥१५५८॥
स्वर सहित पद पाठसाह्वा꣢न् । वि꣡श्वाः꣢꣯ । अ꣣भियु꣡जः꣢ । अ꣣भि । यु꣡जः꣢꣯ । क्र꣡तुः꣢꣯ । दे꣣वा꣡ना꣢म् । अ꣡मृ꣢꣯क्तः । अ । मृ꣣क्तः । अग्निः꣢ । तु꣣वि꣡श्र꣢वस्तमः । तु꣣वि꣢ । श्र꣣वस्तमः ॥१५५८॥
स्वर रहित मन्त्र
साह्वान्विश्वा अभियुजः क्रतुर्देवानाममृक्तः । अग्निस्तुविश्रवस्तमः ॥१५५८॥
स्वर रहित पद पाठ
साह्वान् । विश्वाः । अभियुजः । अभि । युजः । क्रतुः । देवानाम् । अमृक्तः । अ । मृक्तः । अग्निः । तुविश्रवस्तमः । तुवि । श्रवस्तमः ॥१५५८॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1558
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 9; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 15; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 9; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 15; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
अगले मन्त्र में परमात्मा के गुण वर्णित हैं।
पदार्थ
(विश्वाः अभियुजः) सब आक्रमणकारी काम, क्रोध आदियों को (साह्वान्) अपने बल से तिरस्कृत करता हुआ, (देवानाम्) दिव्य गुणों का (क्रतुः) उत्पादक, (अमृक्तः) किसी से शुद्ध न किया गया अर्थात् स्वतः शुद्ध (अग्निः) तेजस्वी परमेश्वर (तुविश्रवस्तमः) बहुत अधिक यशस्वी है ॥३॥
भावार्थ
अनन्त गुणों से युक्त होने के कारण जगदीश्वर की कीर्ति सबसे अधिक बढ़ी हुई है ॥३॥
पदार्थ
(अग्निः) ज्ञानप्रकाशक परमात्मा (देवानाम्) उपासक मुमुक्षुओं की (विश्वाः-अभियुजः) समस्त अभियोगी विरोधी प्रवृत्तियों को (साह्वान्) दबाने वाला (अमृक्तः क्रतुः) अमृत७ प्रज्ञान प्रेरक८ (तुविश्रवस्तमः) बहुत श्रवणीयतम है—अत्यधिक श्रवण मननादि करने योग्य है॥३॥
विशेष
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विषय
तुवि-श्रवस्-तम
पदार्थ
८. यह विश्वामित्र (विश्वा:) = न चाहते हुए भी हमारे अन्दर घुस आनेवाले (अभियुज:) = सब ओर से हमपर आक्रमण करनेवाले काम, क्रोध, लोभ आदि आसुरभावों को साह्वान्-पराभूत करनेवाला होता है।
९. (देवानां क्रतुः) = देवताओं के सङ्कल्पवाला होता है । सदा दिव्य गुणों को अपने अन्दर बढ़ाने की वृत्तिवाला होता है ।
१०. (अमृक्तः) = दिव्य गुणों के सतत सङ्कल्प के कारण ही यह आसुरवृत्तियों के आक्रमण से बचा [unhurt, safe] रहता है । 'प्रतिपक्षभावनम्'=आसुरवृत्तियों से बचने के लिए यह उनके प्रतिपक्ष – विरोधी दिव्य गुणों का सदा चिन्तन करता है।
११. (अग्निः) = दिव्य गुणों के चिन्तन के कारण वह सदा आगे और आगे बढ़ता चलता है इसका जीवन प्रगतिशील होता है और यह
१२. (तुविश्रवस्तमः) = महान् श्रवस्- यशवाला [fame] होता है, महान् श्रवस्-धन-[wealth]-वाला होता है, महान् स्तोत्रों-[hymn]-वाला होता है तथा अत्यन्त श्रवस्- प्रशंसनीय कर्मोंवाला [praise wasthy action] होता है । यह कीर्ति, धन, स्तुति की वृत्ति तथा प्रशस्त कर्मोंवाला बनता है ।
भावार्थ
हम भी अपने जीवनों में कीर्ति, धन, स्तुति तथा स्तुत्य कर्मोंवाले हों ।
संस्कृत (1)
विषयः
अथ परमात्मनो गुणान् वर्णयति।
पदार्थः
(विश्वाः अभियुजः) सर्वान् आक्रान्तॄन् कामक्रोधादीन् (साह्वान्) स्वबलेन तिरस्कुर्वाणः। [दाश्वान् साह्वान् मीढ्वांश्च। अ० ६।१।१२ इति क्वस्वन्तो निपातः।] (देवानाम्) दिव्यगुणानाम् (क्रतुः) कर्ता, (अमृक्तः) न केनापि शोधितः, प्रत्युत स्वतः शुद्धः। [न मृक्तः अमृक्तः। मृजू शौचालङ्कारयोः, निष्ठा।] (अग्निः) तेजस्वी परमेश्वरः (तुविश्रवस्तमः) बहुयशस्तमो वर्तते। [तुवि बहु श्रवः कीर्तिर्विद्यतेऽस्य स तुविश्रवाः, अतिशयेन तुविश्रवाः तुविश्रवस्तमः। तुवि बहुनाम। निघं० ३।१। श्रवः श्रवणीयं यशः। निरु० ११।७] ॥३॥२
भावार्थः
अनन्तगुणसमन्वितत्वाज्जगदीश्वरस्य कीर्तिः सर्वातिशायिनी वर्तते ॥३॥
इंग्लिश (2)
Meaning
God is the Conqueror of all invading immoral forces, the Instructor of divine virtues, the Embodiment of diverse sorts of knowledge.
Meaning
Patient yet most irresistible of all the front rank people, most enlightened of the noble and generous, inviolable, Agni is well read and most renowned leading light. (Rg. 3-11-6)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (अग्निः) જ્ઞાન પ્રકાશક પરમાત્મા (देवानाम्) ઉપાસક મુમુક્ષુઓની (विश्वाः अभियुजः) સમસ્ત અભિયોગી વિરોધી પ્રવૃત્તિઓને (साह्वान्) દબાવનાર (अमृक्तः क्रतुः) અમૃત પ્રજ્ઞાન પ્રેરક (तुविश्रवस्तमः) બહુ જ શ્રવણીયતમ છે-અત્યધિક શ્રવણ, મનન આદિ કરવા યોગ્ય છે. (૩)
मराठी (1)
भावार्थ
अनंत गुणांनी युक्त असल्यामुळे जगदीश्वराची कीर्ती सर्वात अधिक वाढलेली आहे. ॥३॥
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