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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1622
ऋषिः - मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
3
वृ꣡षा꣢ यू꣣थे꣢व꣣ व꣡ꣳस꣢गः कृ꣣ष्टी꣡रि꣢य꣣र्त्यो꣡ज꣢सा । ई꣡शा꣢नो꣣ अ꣡प्र꣢तिष्कुतः ॥१६२२॥
स्वर सहित पद पाठवृ꣡षा꣢꣯ । यू꣣था꣢ । इ꣣व । व꣡ꣳस꣢꣯गः । कृ꣣ष्टीः꣢ । इ꣣यर्ति । ओ꣡ज꣢꣯सा । ई꣡शा꣢꣯नः । अ꣡प्र꣢꣯तिष्कुतः । अ । प्र꣣तिष्कुतः ॥१६२२॥
स्वर रहित मन्त्र
वृषा यूथेव वꣳसगः कृष्टीरियर्त्योजसा । ईशानो अप्रतिष्कुतः ॥१६२२॥
स्वर रहित पद पाठ
वृषा । यूथा । इव । वꣳसगः । कृष्टीः । इयर्ति । ओजसा । ईशानः । अप्रतिष्कुतः । अ । प्रतिष्कुतः ॥१६२२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1622
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 17; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 17; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
अब कैसा परमात्मा किसके समान किन्हें प्राप्त होता है, यह कहते हैं।
पदार्थ
(वंसगः) शान से चलनेवाला (वृषा) साँड (यूथा इव) जैसे गौओं के झुण्ड में जाता है, वैसे ही (वृषा) शुभगुणों की वर्षा करनेवाला, (वंसगः) धर्मसेवी के पास जानेवाला (ईशानः) जगदीश्वर (अप्रतिष्कुतः) किसी से न रोका जाता हुआ (ओजसा) बल के साथ (कृष्टीः) उपासक मनुष्यों के पास (इयर्ति) पहुँच जाता है ॥३॥ यहाँ श्लिष्टोपमालङ्कार है ॥३॥
भावार्थ
जो श्रद्धा से परमेश्वर की उपासना करते हैं, परमेश्वर भी उन धर्मात्मा लोगों की अवश्य सहायता करता है और उन्हें बल देता है ॥३॥
पदार्थ
(वृषा यूथा-इव) गौओं के समूह में साण्ड की भाँति (अप्रतिष्कुतः-ईशानः) प्रतिरोधन करने वाला—अपनानेवाला परमात्मा (वंसगाः-कृष्टीः) सम्भजन को प्राप्त मनुष्यों३ अर्थात् उपासकजनों को (ओजसा-इयर्ति) आत्मतेज से आत्मभाव से—अपनेपन से प्राप्त होता है॥३॥
विशेष
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विषय
ओज से प्रभु की प्राप्ति
पदार्थ
वे प्रभु (वृषा) = शक्तिशाली हैं, (इव) = जैसे (वंसग:) = बैल (यूथा ईशान:) = गौओं के समूह का ईशान होता है, उसी प्रकार वे प्रभु सब जीवों के ईशान हैं । (अप्रतिष्कुतः) = आप अप्रतिष्कुत हैं, कोई भी का विरोध नहीं कर सकता तथा साथ ही आप अप्रतिस्खलित हैं— आपसे कभी किसी ग़लती का सम्भव नहीं ।
इस प्रकार शक्तिशाली वे प्रभु (ओजसा) = ओज के द्वारा (कृष्टीः) = श्रमशील व्यक्तियों को (ईयर्ति) = प्राप्त होते हैं। प्रभु ओज बल के द्वारा ही प्राप्त होते हैं । इसी भाव के पोषण के लिए यहाँ मन्त्र में प्रभु को ‘वृषा’, ‘ईशान’, ‘अप्रतिष्कुत’ शक्तिशाली, स्वामी तथा अविरोध्य [matchless] कहा गया है। प्रभु अपनी शक्ति का प्रयोग जीवहित के लिए उसी प्रकार करते हैं जैसे झुण्ड में विचरनेवाला बैल झुण्ड की रक्षा करता है । जीव ने भी शक्तिशाली बनकर शक्ति का प्रयोग वृद्धि व रक्षा के लिए ही करना है । रक्षा व वृद्धि में विनियुक्त बल ही हमें प्रभु को प्राप्त करानेवाला होगा । 'ओज' उसी शक्ति का नाम है जो वृद्धि का कारण होता है। प्रस्तुत मन्त्र का ऋषि ‘मधुच्छन्दा' अपने बल का विनियोग औरों के पीड़न में करेगा ही नहीं। मधुर इच्छाओंवाला होने पर ऐसा सम्भव ही कैसे हो सकता है कि वह किसी का पीड़न करे ।
भावार्थ
हम शक्तिशाली बनकर प्रभु को प्राप्त करनेवाले बनें ।
संस्कृत (1)
विषयः
अथ कीदृशः परमात्मा क इव कान् प्राप्नोतीत्याह।
पदार्थः
(वंसगः२) वननीयगतिः, कमनीयगमनः (वृषा) वृषभः (यूथा इव) गोयूथानि इव (वृषा) शुभगुणवर्षणकर्ता (वंसगः३) वंसं धर्मसेविनं गच्छतीति तथाविधः (ईशानः) जगदीश्वरः (अप्रतिष्कुतः) केनापि अप्रतिरुद्धः सन् (ओजसा) बलेन (कृष्टीः) उपासकान् मनुष्यान् (इयर्ति) प्राप्नोति ॥३॥४ अत्र श्लिष्टोपमालङ्कारः ॥३॥
भावार्थः
ये श्रद्धया परमेश्वरमुपासते परमेश्वरोऽपि तेषां धर्मात्मनां जनानां साहाय्यमवश्यं करोति तेभ्यो बलं च ददाति ॥३॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Just as a strong bull goes to the herd of kine, so does Unconquerable, Matchless God, bestow knowledge through His magnanimity on men.
Meaning
As the virile bull leads the herd it rules, so does Indra, generous lord indomitable and ruler of the world, inspire and lead His children to joy and freedom. (Rg. 1-7-8)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (वृषा यूथा इव) ગાયના ધણ-સમૂહમાં સાંઢની સમાન (अप्रतिष्कुतः ईशानः) પ્રતિરોધન કરનાર-અપનાવનાર પરમાત્મા (वंसगाः कृष्टीः) સંભજનને પ્રાપ્ત મનુષ્યો અર્થાત્ ઉપાસકજનોને (ओज सा इयर्ति) આત્મતેજથી-આત્મભાવથી સારી રીતે ભજનથી-પોતાપણાથી પ્રાપ્ત થાય છે. (૩)
मराठी (1)
भावार्थ
जे श्रद्धेने परमेश्वराची उपासना करतात, परमेश्वरही त्या धर्मात्मा लोकांची सहायता करतो व त्यांना बल देतो. ॥३॥
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