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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1623
ऋषिः - शंयुर्बार्हस्पत्यः
देवता - अग्निः
छन्दः - बार्हतः प्रगाथः (विषमा बृहती, समा सतोबृहती)
स्वरः - मध्यमः
काण्ड नाम -
3
त्वं꣡ न꣢श्चि꣣त्र꣢ ऊ꣣त्या꣢꣫ वसो꣣ रा꣡धा꣢ꣳसि चोदय । अ꣣स्य꣢ रा꣣य꣡स्त्वम꣢꣯ग्ने र꣣थी꣡र꣢सि वि꣣दा꣢ गा꣣धं꣢ तु꣣चे꣡ तु नः꣢꣯ ॥१६२३॥
स्वर सहित पद पाठत्व꣢म् । नः꣢ । चित्रः꣢ । ऊ꣣त्या꣢ । व꣡सो꣢꣯ । रा꣡धा꣢꣯ꣳसि । चो꣣दय । अस्य꣢ । रा꣣यः꣢ । त्वम् । अ꣣ग्ने । रथीः꣢ । अ꣣सि । विदाः꣢ । गा꣣ध꣢म् । तु꣣चे꣢ । तु । नः꣣ ॥१६२३॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वं नश्चित्र ऊत्या वसो राधाꣳसि चोदय । अस्य रायस्त्वमग्ने रथीरसि विदा गाधं तुचे तु नः ॥१६२३॥
स्वर रहित पद पाठ
त्वम् । नः । चित्रः । ऊत्या । वसो । राधाꣳसि । चोदय । अस्य । रायः । त्वम् । अग्ने । रथीः । असि । विदाः । गाधम् । तुचे । तु । नः ॥१६२३॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1623
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 17; खण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 17; खण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
प्रथम ऋचा की व्याख्या पूर्वार्चिक में ४१ क्रमाङ्क पर हो चुकी है। यहाँ परमेश्वर और आचार्य से प्रार्थना करते हैं।
पदार्थ
हे (वसो) निवासक परमेश्वर वा आचार्य ! (चित्रः) अद्भुत गुणोंवाले (त्वम्) आप (ऊत्या) रक्षा के साथ (नः) हमारे लिए(राधांसि) विद्या-धन, सच्चरित्रता आदि के धन और आध्यात्मिक ऐश्वर्य (चोदय) प्रेरित करो। हे (अग्ने) विद्वान्, अग्रनायक, तेजस्वी परमेश्वर वा आचार्य ! (त्वम्) आप (अस्य) इस (रायः) विद्या, सदाचार आदि धन के (रथीः) स्वामी (असि) हो। इसलिए (नः) हमारी (तुचे) सन्तान के लिए (तु) शीघ्र ही(गाधम्) तलस्पर्शी पाण्डित्य (विदाः) प्राप्त कराओ ॥१॥
भावार्थ
जैसे जगदीश्वर सबके आत्मा में ज्ञान, सद्गुण आदि प्रेरित करता है, वैसे ही विद्वान् गुरुजन गृहस्थों को भली-भाँति उपदेश करें और उनके पुत्र, पौत्र आदियों को गुरुकुल में सब विद्याएँ पढ़ाकर विद्वान् तथा चरित्रवान् बनायें ॥२॥
टिप्पणी
(देखो अर्थव्याख्या मन्त्र संख्या ४१)
विशेष
ऋषिः—तृणपाणिः शंयुः (तृणसमान तुच्छ भेंट हाथ में जिसके है ऐसा समित्पाणि के जैसा, शम्-कल्याणकारी परमात्मा का इच्छुक उपासक)॥ देवता—इन्द्रः (ऐश्वर्यवान् परमात्मा)॥ छन्दः—विषमा बृहती॥<br>
विषय
प्रभु की प्राप्ति
पदार्थ
मन्त्र संख्या ४१ पर मन्त्रार्थ इस रूप में हैं— हे (वसो) = सबके बसानेवाले प्रभो ! (त्वम्) = आप (नः) = हमें (ऊत्या) = रक्षा के हेतु से (चित्+र:) = ज्ञान देनेवाले हैं, अत: आप (राधांसि) = सर्वकार्यसाधक ज्ञानरूप धनों को (चोदय) = हमें प्राप्त कराइए । (अस्य रायः) = इस धन के तो (अग्ने) = हे उन्नत करनेवाले प्रभो ! (त्वम्) = आप ही (रथी:) = नियन्ता (असि) = हैं । आप (नः) = हमारे (तुचे) = नौजवान सन्तानों के लिए (तु) = भी (गाधम्) = गम्भीर ज्ञान को विदा प्राप्त कराइए ।
भावार्थ
हे प्रभो! आप हमें और हमारे सन्तानों को गम्भीर ज्ञानरूप धन प्राप्त कराइए । इस धन के बिना हम कहीं 'तृण-पाणि' ही न रह जाएँ ।
संस्कृत (1)
विषयः
तत्र प्रथमा ऋक् पूर्वार्चिके ४१ क्रमाङ्के व्याख्यातपूर्वा। अत्र परमेश्वर आचार्यश्च प्रार्थ्यते।
पदार्थः
हे (वसो) निवासक परमेश्वर आचार्य वा ! (चित्रः) अद्भुतगुणः (त्वम् ऊत्या) रक्षया सार्धम् (नः) अस्मभ्यम्(राधांसि) विद्याधनानि सच्चारित्र्यादिधनानि अध्यात्मैश्वर्याणि च (चोदय) प्रेरय। हे (अग्ने) विद्वन् अग्रनायक तेजस्विन् परमेश्वर आचार्य वा ! (त्वम् अस्य) एतस्य (रायः) विद्यासदाचारादिधनस्य (रथीः) स्वामी (असि) विद्यसे। अतः(नः) अस्माकम् (तुचे) अपत्याय (तु) क्षिप्रम् (गाधम्) तलस्पर्शि पाण्डित्यम् (विदाः) लम्भय ॥१॥२
भावार्थः
यथा जगदीश्वरः सर्वेषामात्मनि ज्ञानसद्गुणादिकं प्रेरयति तथैव विद्वांसो गुरुजना गृहस्थान्, सम्यगुपदिशन्तु, तेषां पुत्रपौत्रादींश्च गुरुकुले सर्वा विद्या अध्याप्य विदुषश्चरित्रवतश्च कुर्युः ॥१॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O fire, one of the eight Vasus, along with our protection, givens riches. Thou art the wonderful leader of this wealth acquired in a battle. Grant safety to our progeny!
Translator Comment
See verse 41. Through the use of fire-arms and deadly war-like weapons is a battle won. Hence fire is the leader, the procurer of wealth in a battle.
Meaning
Agni, wonderful lord of versatile action, giver of shelter and security of the home, with protection and advancement, inspire and raise our means and materials for success and achievement. O lord of knowledge and vision, you are the guide and pilot of the chariot and wealth and honours of this generation. Give us the message and inspiration of peace, progress and security for our children. (Rg. 6-48-9)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (चित्र वसो अग्ने) હે અદ્ભુત ગુણ શક્તિ સંપન્ન તથા સર્વની અંદર વાસ કરનાર પરમાત્મન્ ! (त्वम्) તું (नः उत्या) અમારી રક્ષા માટે (राधांसि चोदय) સર્વ સાધક ધનોને પ્રેરિત કર; (अस्य रायः रथीः असि) એ અભીષ્ટ ધન ઐશ્વર્યનો તું રમણકર્તા-ધનનો સ્વામી અર્થાત્ ધનરૂપ રથનો ઈરયિતા = પ્રેરક પ્રદાતા છે. (तुचे तु नः गाधं विदा) સંતાનો ઉત્પત્તિને માટે તો જે પ્રતિષ્ઠારૂપ વીર્યને પ્રાપ્ત કરાવીને સંયત કર. (૭)
भावार्थ
ભાવાર્થ : પરમાત્મા અદ્ભુત દેવ છે, તે અમને નિવાસ માટેના સાધન આપે છે અને સંસિદ્ધ ભોગ ધનોને તથા ભોગ સાધનોને પણ પ્રેરિત કરે છે, તે રમણીય ધનનો સ્વામી છે. અમારા શરીરની અંદર મૂલ ધાતુ વીર્યને સંયત કરવાનું બળ પ્રદાન કરે છે, તે જીવનનો સ્નેહ છે, સ્નેહથી જ જ્યોતિ પ્રાપ્ત થાય છે અને મૃત્યુરૂપ તમ-અંધકારને દૂર કરે છે. (૭)
मराठी (1)
भावार्थ
जसा जगदीश्वर सर्वांच्या आत्म्यात ज्ञान, सद्गुण इत्यादी प्रेरित करतो, तसेच विद्वान गुरुजनांनी गृहस्थांना चांगल्या प्रकारे उपदेश करावा व त्यांच्या पुत्र व पौत्रांना गुरुकुलमध्ये सर्व विद्या शिकवून विद्वान व चरित्रवान बनवावे. ॥१॥
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