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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1701
ऋषिः - निध्रुविः काश्यपः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
2
प꣡व꣢मानास आ꣣श꣡वः꣢ शु꣣भ्रा꣡ अ꣢सृग्र꣣मि꣡न्द꣢वः । घ्न꣢न्तो꣣ वि꣢श्वा꣣ अ꣢प꣣ द्वि꣡षः꣢ ॥१७०१॥
स्वर सहित पद पाठप꣡व꣢꣯मानासः । आ꣣श꣡वः꣢ । शु꣣भ्राः꣢ । अ꣣सृग्रम् । इ꣡न्द꣢꣯वः । घ्न꣡न्तः꣢꣯ । वि꣡श्वाः꣢꣯ । अ꣡प꣢꣯ । द्वि꣡षः꣢꣯ ॥१७०१॥
स्वर रहित मन्त्र
पवमानास आशवः शुभ्रा असृग्रमिन्दवः । घ्नन्तो विश्वा अप द्विषः ॥१७०१॥
स्वर रहित पद पाठ
पवमानासः । आशवः । शुभ्राः । असृग्रम् । इन्दवः । घ्नन्तः । विश्वाः । अप । द्विषः ॥१७०१॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1701
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 16; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 18; खण्ड » 4; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 16; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 18; खण्ड » 4; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
अगले मन्त्र में ब्रह्मानन्द-रसों का वर्णन है।
पदार्थ
(पवमानासः) पवित्र करनेवाले, (आशवः) वेगगामी, (शुभ्राः) निर्मल (इन्दवः) सराबोर करनेवाले ब्रह्मानन्द-रस (विश्वाः) सब (द्विषः) द्वेष-वृत्तियों को (अप घ्नन्तः) विनष्ट करते हुए (असृग्रम्) अन्तरात्मा में बह रहे हैं ॥३॥
भावार्थ
जब परमात्मा की उपासना से ब्रह्मानन्द-रस स्तोता के अन्तरात्मा में आते हैं, तब सब द्वेष-वृत्तियाँ स्वयं समाप्त हो जाती हैं और विश्व-मैत्री की भावना जाग जाती है ॥३॥
पदार्थ
(आशवः) व्यापनशील (शुभ्राः) शुभ्र—निर्मल (पवमानासः) धारारूप में प्राप्त होनेवाला (इन्दवः) आनन्दरसपूर्ण परमात्मा (विश्वाः-द्विषः) सारी द्वेष-भावनाओं को (अपघ्नन्तः) नष्ट करता हुआ (असृग्रम्)५ आत्मा के अन्दर पहुँचता है॥३॥
विशेष
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विषय
द्वेष की भावना से दूर
पदार्थ
(पवमानासः) = ये पवित्र करनेवाले सोम (असृग्रम्) = बनाये गये हैं—ये १. (आशवः) = मनुष्य को शीघ्रता से कार्य करनेवाला बनाते हैं, अर्थात् ये मनुष्य में स्फूर्ति बढ़ानेवाले हैं २. (शुभ्राः) = ये शरीर को नीरोग, मन को स्वस्थ तथा बुद्धि को तीव्र बनाकर शोभा की वृद्धि करनेवाले हैं । ३. (इन्दवः) = परमैश्वर्य को प्राप्त करानेवाले हैं तथा ४. (विश्वा:) = सब (द्विषः) = द्वेष की भावनाओं को (अपघ्नन्तः) = नष्ट करनेवाले हैं ।
भावार्थ
सोम की रक्षा करनेवाला पुरुष १. आलस्यरहित, स्फूर्ति-सम्पन्न होता है । २. उत्तम गुणों से शोभावाला बनता है। ३. परमैश्वर्य का लाभ करता है और ४. अपने में द्वेष की अपवित्र भावनाओं को नहीं पनपने देता ।
संस्कृत (1)
विषयः
अथ ब्रह्मानन्दरसान् वर्णयति।
पदार्थः
(पवमानासः) पवित्रतासम्पादकाः, (आशवः) त्वरिताः, (शुभ्राः) निर्मलाः (इन्दवः) क्लेदकाः ब्रह्मानन्दरसाः (विश्वाः) सर्वाः (द्विषः) द्वेषवृत्तीः (अपघ्नन्तः) हिंसन्तः (असृग्रम्) अन्तरात्मं सृज्यन्ते ॥३॥
भावार्थः
यदा परमात्मोपासनया ब्रह्मानन्दरसाः स्तोतुरात्मनि समागच्छन्ति तदा सर्वा द्वेषवृत्तयः स्वयमेव समाप्यन्ते विश्वमैत्रीभावना च जागर्ति ॥३॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Noble, active, elevating learned persons, accomplish their task, extirpating all feelings of hatred.
Meaning
Pure and purifying, instant and effective, bright and blazing streams of soma like warriors of nature flow and advance in action, creating peace and plenty for life, dispelling and eliminating all jealous and destructive forces from society. (Rg. 9-63-26)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (आशवः) વ્યાપનશીલ, (शुभ्राः) શુભ્ર-નિર્મળ, (पवमानासः) ધારારૂપમાં પ્રાપ્ત થનાર, (इन्दवः) આનંદરસપૂર્ણ પરમાત્મા (विश्वाः द्विषः) સમસ્ત દ્વેષ ભાવનાઓને (अपघ्नन्तः) નષ્ટ કરતાં (असृग्रम्) આત્માની અંદર પહોંચે છે. (૩)
मराठी (1)
भावार्थ
जेव्हा परमात्म्याच्या उपासनेने ब्रह्मानंद-रस स्त्योत्याच्या अंतरात्म्यात येतात, तेव्हा सर्व द्वेषवृत्ती स्वत: समाप्त होतात व विश्वमैत्रीची भावना जागृत होते. ॥३॥
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