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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1708
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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    ऋ꣣ता꣡वा꣢नं वैश्वान꣣र꣢मृ꣣त꣢स्य꣣ ज्यो꣡ति꣢ष꣣स्प꣡ति꣢म् । अ꣡ज꣢स्रं घ꣣र्म꣡मी꣢महे ॥१७०८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ऋ꣣ता꣡वा꣢नम् । वै꣣श्वानर꣢म् । वै꣣श्व । नर꣢म् । ऋ꣣त꣡स्य꣢ । ज्यो꣡ति꣢꣯षः । प꣡ति꣢꣯म् । अ꣡ज꣢꣯स्रम् । अ । ज꣣स्रम् । घर्म꣢म् । ई꣣महे ॥१७०८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ऋतावानं वैश्वानरमृतस्य ज्योतिषस्पतिम् । अजस्रं घर्ममीमहे ॥१७०८॥


    स्वर रहित पद पाठ

    ऋतावानम् । वैश्वानरम् । वैश्व । नरम् । ऋतस्य । ज्योतिषः । पतिम् । अजस्रम् । अ । जस्रम् । घर्मम् । ईमहे ॥१७०८॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1708
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 19; मन्त्र » 1
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 18; खण्ड » 4; सूक्त » 4; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    प्रथम मन्त्र में जगदीश्वर से प्रार्थना की गयी है।

    पदार्थ

    (ऋतावानम्) सत्यमय, (वैश्वानरम्) सब मनुष्यों के हितकर्ता, (ऋतस्य) जल वा धन के और (ज्योतिषः) ज्योति के (पतिम्) स्वामी वा पालक जगदीश्वर से हम (अजस्रम्) अक्षय (घर्मम्) तेज वा प्रताप को (ईमहे) माँगते हैं ॥१॥

    भावार्थ

    जो स्वयं प्रतापी, तेजस्वी और सत्यमय होता है, वही दूसरों को वैसा बना सकता है ॥१॥

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    पदार्थ

    (ऋतावानम्) अमृत वाले मोक्षानन्द देने वाले७—(ऋतस्य ज्योतिषः-पतिम्) अमृतज्ञान ज्योति के स्वामी (अजस्रं घर्मम्-ईमहे) आलस्य अनश्वर तेजोरूप८ अमृतानन्द परमात्मा को माँगते हैं॥१॥

    विशेष

    ऋषिः—भरद्वाजः (परमात्मा के अर्चनबल को अपने अन्दर धारण करने वाला उपासक)॥ देवता—वैश्वानरोऽग्निः (विश्वनायक परमात्मा)॥ छन्दः—गायत्री॥<br>

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    विषय

    वैश्वानर अग्नि

    पदार्थ

    अग्नि, अर्थात् आगे ले-चलनेवाला, वैश्वानर=[विश्वान् नरान् नयति] सब मनुष्यों के हित के लिए उनका उत्थान करनेवाला । आजकल की भाषा में 'एक ऐसा नेता जो सबका भला चाहता हुआ, सबको उन्नति के मार्ग पर ले-चलता है । इस 'वैश्वानर अग्नि' का चित्रण प्रस्तुत मन्त्र में उपलभ्य है ।

    १. (ऋतावानम्) = [ऋतावान्-possessed of sacrifice, of true character] । [क] जो त्याग की भावना का पोषण करता है। [ख] जो सच्चरित्र है । वस्तुत: नेता के लिए सबसे प्रथम आवश्यक गुण यही है कि वह त्याग की भावनावाला हो तथा सत्य चरित्रवाला हो । त्याग की भावना के बिना वह कुछ कर नहीं सकता और चरित्र की उत्कृष्टता के बिना उसका जीवन व भाषण प्रभावशाली नहीं हो सकता ।

    २. (वैश्वानरम्) = [विश्व-नर-हितम्] वह सबका भला चाहनेवाला हो । नेता की संकुचित मनोवृत्ति व पक्षपात उसे नेतृत्व से ही नीचे ले-आती है । नेता को सबके प्रति हित की भावनावाला होना चाहिए । ।

    ३. (ऋतस्य ज्योतिषः पतिम्) = यह नेता ऋत का और ज्योति का पति होता है । यह अपने अन्दर नियमितता=regularity तथा ज्ञान का पोषण करता है । नियमितता इसे शारीरिक स्वास्थ्य प्रदान करती है और ज्ञान इसके मानस स्वास्थ्य को सिद्ध करता है । एवं, ऋत और ज्योति से यह ‘स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मनवाला' आदर्श पुरुष बनता है ।

    ४. (अजस्त्रं घर्मम्) = यह 'सतत घर्म' होता है । ‘लगातार दीप्ति को फैलानेवाला' होता है। ‘'अजस्त्र' का अभिप्राय है 'बिना विच्छेद – रुकावट के' तथा 'घर्मम्' शब्द में दीप्ति व क्षरण की भावना है । 'क्षरण', अर्थात् मल को दूर करना । यह नेता निरन्तर प्रजाओं की मलिनताओं को दूर करके उनमें ज्ञान की दीप्ति फैलाता है ।

    (ईमहे) = हम ऐसे ही नेता को चाहते हैं ।

    भावार्थ

    प्रभुकृपा से हमें 'त्यागी, सच्चरित्र, सबका भला चाहनेवाले, नियमित जीवनवाले, दीप्तियुक्त, निरन्तर दीप्ति को फैलानेवाले नेता प्राप्त हों ।'

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    तत्रादौ जगदीश्वरं प्रार्थयते।

    पदार्थः

    (ऋतावानम्) सत्यवन्तम्। [अत्र ‘छन्दसीवनिपौ’ अ० ५।२।१०९ इति वार्तिकेन वनिप् प्रत्ययः। ‘अन्येषामपि दृश्यते’ अ० ६।३।१३७ इति ऋतस्य दीर्घान्तादेशः।] (वैश्वानरम्) विश्वेषां नृणां हितम्, (ऋतस्य) जलस्य धनस्य वा। [ऋतमित्युदकनाम धननाम च। निघं० १।१२, २।१०।] (ज्योतिषः) प्रकाशस्य च (पतिम्) स्वामिनं पातारं वा जगदीश्वरं वयम् (अजस्रम्) अक्षयम् (घर्मम्) तेजः प्रतापं वा (ईमहे) याचामहे। [ईमहे इति याच्ञाकर्मसु पठितम्। निघं० ३।१९] ॥१॥

    भावार्थः

    यः स्वयं प्रतापी तेजस्वी सत्यवांश्च भवति स एवान्यांस्तथाविधान् कर्तुं शक्नोति ॥१॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O God, full of lustre, Embodiment of true knowledge, the Friend of mankind, the Lord of all luminous worlds. Eternal, we worship Thee!

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    Meaning

    We adore, exalt and worship Agni, eternal, refulgent, light of yajna, leading life and energy of the world, protector and sustainer of truth and law. (Atharva 6, 36, 1)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (ऋतावृधम्) અમૃતવાળા મોક્ષાનંદ દેવાવાળા (ऋतस्य ज्योतिषः पतिम्) અમૃતજ્ઞાન જ્યોતિના સ્વામી (अजस्रं घर्मम् ईमहे) નિત્ય, અવિનાશી, શુદ્ધ, તેજસ્વી અને મોક્ષાનંદ પરમાત્માને અમે માંગીએ છીએ. (૧)

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जो स्वत: पराक्रमी, तेजस्वी व सत्यवादी असतो, तो इतरांनाही तसेच बनवू शकतो. ॥१॥

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