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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1733
    ऋषिः - गोतमो राहूगणः देवता - उषाः छन्दः - उष्णिक् स्वरः - ऋषभः काण्ड नाम -
    2

    यु꣣ङ्क्ष्वा꣡ हि वा꣢꣯जिनीव꣣त्य꣡श्वा꣢ꣳ अ꣣द्या꣢रु꣣णा꣡ꣳ उ꣢षः । अ꣡था꣢ नो꣣ वि꣢श्वा꣣ सौ꣡भ꣢गा꣣न्या꣡ व꣢ह ॥१७३३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    युङ्क्ष्व । हि । वा꣣जिनीवति । अ꣡श्वा꣢꣯न् । अ꣣द्य꣢ । अ꣣ । द्य꣢ । अ꣣रुणा꣢न् । उ꣣षः । अ꣡थ꣢꣯ । नः꣣ । वि꣡श्वा꣢꣯ । सौ꣡भ꣢꣯गानि । सौ । भ꣣गानि । आ꣢ । व꣣ह ॥१७३३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    युङ्क्ष्वा हि वाजिनीवत्यश्वाꣳ अद्यारुणाꣳ उषः । अथा नो विश्वा सौभगान्या वह ॥१७३३॥


    स्वर रहित पद पाठ

    युङ्क्ष्व । हि । वाजिनीवति । अश्वान् । अद्य । अ । द्य । अरुणान् । उषः । अथ । नः । विश्वा । सौभगानि । सौ । भगानि । आ । वह ॥१७३३॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1733
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 8; मन्त्र » 3
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 19; खण्ड » 2; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में फिर जगदीश्वरी माँ से प्रार्थना करते हैं।

    पदार्थ

    हे (वाजिनीवति) प्रशस्त क्रियावाली (उषः) उषा के समान तेजोमयी जगन्माता ! तू (अद्य) आज (अरुणान्) तेजस्वी (अश्वान्) इन्द्रिय-रूप घोड़ों को (युङ्क्ष्व हि) ज्ञान के ग्रहण और कर्मों के करने में नियुक्त कर। (अथ) तदनन्तर (नः) हमारे लिए (विश्वा) सब (सौभगानि) सौभाग्य (आवह) प्राप्त करा ॥३॥

    भावार्थ

    वही माता श्रेष्ठ मानी जाती है, जो सन्तान को ज्ञान और कर्म में प्रेरित करे, क्योंकि उसी से सौभाग्य की वृद्धि होती है ॥३॥

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    पदार्थ

    (वाजिनीवति-उषः) हे अमृत अन्नभोग वाली परमात्मदीप्ति या परमात्मज्योति! तू आज (अरुणान्-अश्वान् युङ्क्ष्वहि) ओरोचन३ ज्ञान से प्रकाशमान तथा ईश्वर४ इन्द्रिय संयम में प्रकृष्टयुक्त समर्थ उपासकों को अपने में अवश्य युक्त कर (अथ) अनन्तर (नः) हमारे लिये (विश्वा सौभगानि) सारे सौभाग्यों को (आवह) ले आ—प्राप्त करा॥३॥

    विशेष

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    विषय

    आरोचन अश्व

    पदार्थ

    (वाजिनीवति) = उत्तम अन्नों के द्वारा शक्ति देनेवाली हे (उष:) = उषे! तू (अद्य) = आज (हि) = निश्चय से (अरुणान् अश्वान्) = आरोचन अश्वों को, अर्थात् तेजस्विता से चमकते हुए इन्द्रियरूपी घोड़ों को (युङ्ङ्क्ष्व) = हमारे इस शरीररूप रथ में जोत । वे इन्द्रियरूप घोड़े तेजस्वी हों, अरुण-आरोचन हों। रुग्ण होकर हमारे इस जीवन-रथ को ये बीच में ही खड़ा न कर दें ।

    (अथ) = इस प्रकार अब (न:) = हमें (विश्वा सौभगानि) = सब सौभाग्यों को (आवह) = तू प्राप्त करा । वस्तुत: इस शरीररूप रथ में इन घोड़ों के ठीक होने पर ही सब सौन्दर्य उत्पन्न होता है । ज्ञानेन्द्रियों से ज्ञान में वृद्धि होती है तो कर्मेन्द्रियों से शक्ति में । ज्ञान और शक्ति ही मिलकर हमें श्रीसम्पन्न करते हैं। किसी भी रथ में शक्ति एंजिन का प्रतीक है तो ज्ञान प्रकाश का । 

    भावार्थ

    मेरा शरीररूप रथ सशक्त व सप्रकाश हो ।

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    विषय

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    भावार्थ

    हे उषः ! हे वाजिनीवति ! (अद्य) आज (अरुणान्) चेत नाश से युक्त दीप्तिमान् अथवा रोगरहित (अश्वान्) प्राणों को (युथ्व हि) इस देहरूप रथ में प्रेरित कर। (अथा) और (नः) हमें (विश्वा) समस्त (सौभगानि) उत्तम सुखदायी पदार्थों को (आवह) प्राप्त करा।

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः–१ विरूप आंङ्गिरसः। २, १८ अवत्सारः। ३ विश्वामित्रः। ४ देवातिथिः काण्वः। ५, ८, ९, १६ गोतमो राहूगणः। ६ वामदेवः। ७ प्रस्कण्वः काण्वः। १० वसुश्रुत आत्रेयः। ११ सत्यश्रवा आत्रेयः। १२ अवस्युरात्रेयः। १३ बुधगविष्ठिरावात्रेयौ। १४ कुत्स आङ्गिरसः। १५ अत्रिः। १७ दीर्घतमा औचथ्पः। देवता—१, १०, १३ अग्निः। २, १८ पवमानः सोमः। ३-५ इन्द्रः। ६, ८, ११, १४, १६ उषाः। ७, ९, १२, १५, १७ अश्विनौ॥ छन्दः—१, २, ६, ७, १८ गायत्री। ३, ५ बृहती। ४ प्रागाथम्। ८,९ उष्णिक्। १०-१२ पङ्क्तिः। १३-१५ त्रिष्टुप्। १६, १७ जगती॥ स्वरः—१, २, ७, १८ षड्जः। ३, ४, ५ मध्यमः। ८,९ ऋषभः। १०-१२ पञ्चमः। १३-१५ धैवतः। १६, १७ निषादः॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ पुनरपि जगदीश्वरीं मातरं प्रार्थयते।

    पदार्थः

    हे (वाजिनीवति२) हे प्रशस्तक्रियामयि (उषः) उषर्वत् तेजोमयि जगन्मातः ! त्वम् (अद्य) अस्मिन् दिने (अरुणान्) तेजोमयान् (अश्वान्) इन्द्रियरूपान् (युङ्क्ष्व हि) ज्ञाने क्रियायां च योजय खलु। (अथ) ततश्च (नः) अस्मभ्यम् (विश्वा) सर्वाणि (सौभगानि) सौभाग्यानि (आवह) प्रापय ॥३॥३

    भावार्थः

    सैव माता श्रेष्ठा मन्यते या सन्तानं ज्ञाने कर्मणि च प्रेरयेत्, यतस्तत एव सौभाग्यवृद्धिर्जायते ॥३॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O intellect, the bringer of the wealth of knowledge, yoke the disease ridden breaths to this car of die body today. Then bring us all delight and felicities!

    Translator Comment

    Ashwins' means Prana and Apana or sky and earth, or day and night, or sun and moon, vide Nirukta 12-1.

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    Meaning

    O Dawn, lady of radiance and the energy and vibrancy of life, yoke the red rays of sun beams to your celestial chariot and then bear and bring us all the wealths and good fortunes of the world. (Rg. 1-92-15)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (वाजिनीवति उषः) હે અમૃત અન્નભોગવાળી પરમદીપ્તિ અથવા પરમાત્મજ્યોતિ ! તું આજ (अरुणान् अश्वान् युङ्क्ष्वहि) ઓરોચન- જ્ઞાનથી પ્રકાશમાન તથા ઈશ્વર ઇન્દ્રિય સંયમમાં પ્રકૃષ્ટ - યુક્ત સમર્થ ઉપાસકોને પોતાનામાં અવશ્ય યુક્ત કર (अथ) અને પછી (नः) અમારે માટે (विश्वा सौभगानि) સમસ્ત સૌભાગ્યોને (आवह) લઈ આવ-પ્રાપ્ત કરાવ. (૩)
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जी संतानांना ज्ञान व कर्मात प्रेरित करते, तीच माता श्रेष्ठ असते, कारण त्यामुळेच सौभाग्याची वृद्धी होते. ॥३॥

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