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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1779
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - अग्निः छन्दः - पदपङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः काण्ड नाम -
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    ए꣣भि꣡र्नो꣢ अ꣣र्कै꣡र्भवा꣢꣯ नो अ꣣र्वा꣢ङ् स्वा३꣱र्ण꣡ ज्योतिः꣢꣯ । अ꣢ग्ने꣣ वि꣡श्वे꣢भिः सु꣣म꣢ना꣣ अ꣡नी꣢कैः ॥१७७९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए꣣भिः꣢ । नः꣣ । अर्कैः꣢ । भ꣡व꣢꣯ । नः꣣ । अर्वा꣢ङ् । स्वः꣡ । न । ज्यो꣡तिः꣢꣯ । अ꣡ग्ने꣢꣯ । वि꣡श्वे꣢꣯भिः । सु꣣म꣡नाः꣢ । सु꣣ । म꣡नाः꣢꣯ । अ꣡नी꣢꣯कैः ॥१७७९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एभिर्नो अर्कैर्भवा नो अर्वाङ् स्वा३र्ण ज्योतिः । अग्ने विश्वेभिः सुमना अनीकैः ॥१७७९॥


    स्वर रहित पद पाठ

    एभिः । नः । अर्कैः । भव । नः । अर्वाङ् । स्वः । न । ज्योतिः । अग्ने । विश्वेभिः । सुमनाः । सु । मनाः । अनीकैः ॥१७७९॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1779
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 9; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 5; मन्त्र » 3
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 20; खण्ड » 1; सूक्त » 5; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    अगले मन्त्र में परमात्मा से प्रार्थना की गयी है।

    पदार्थ

    हे (अग्ने) जीवनाधार, सर्वान्तर्यामी जगदीश ! आप (एभिः) इन (अर्कैः) अर्चना के साधन वेदमन्त्रों द्वारा (नः अर्वाङ्) हमारे अभिमुख (भव) होओ ! आप (स्वः न) सूर्य के समान (ज्योतिः) ज्योतिःस्वरूप हो। (सुमनाः) प्रसन्न मनवाले आप (विश्वेभिः) सब (अनीकैः) सद्गुणों की सेनाओं के साथ वा तेजों के साथ (नः अर्वाङ् भव) हमारे अभिमुख होओ ॥३॥ यहाँ उपमालङ्कार है ॥३॥

    भावार्थ

    जैसे सूर्य अपनी किरणों से हमारे अभिमुख होता है, वैसे ही जगदीश्वर सब सद्गुणों और तेजों के साथ हमें प्राप्त हो ॥३॥ इस खण्ड में आनन्द-धाराओं, परमेश्वर, जीवात्मा और द्विजन्मा के विषयों का वर्णन होने से इस खण्ड की पूर्व खण्ड के साथ संगति है ॥ बीसवें अध्याय में प्रथम खण्ड समाप्त ॥

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    पदार्थ

    (अग्ने) हे परमात्मन्! तू (नः-एभिः-अर्कैः-अव) हमारे इन अर्चनमन्त्रों२ द्वारा (नः-अर्वाक्-भव) हमारी ओर हो (स्वः-न ज्योतिः) सूर्य समान ज्योति है (विश्वेभिः-अनीकैः सुमनाः) सारे अपने प्रमुख तेजों के द्वारा सुमन हमारे लिये कल्याण मन वाला—कल्याणकारी हो जा॥३॥

    विशेष

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    विषय

    सुमना: [ उत्तम मनवाला ]

    पदार्थ

    हे प्रभो ! (न:) = हमारे (एभिः) = इन (अर्कैः) = स्तुतिमन्त्रों से, (अर्चना) = साधनभूत स्तोत्रों से आप (नः) = हमारे (अर्वाक्) = समीप व सम्मुख (भव) = होओ । हे प्रभो! आप तो (स्वः) = न (ज्योति:) = सूर्य के समान ज्योतिर्मय हैं। जब भक्त अपने सत्य स्तोत्रों से प्रभु को अपने सम्मुख कर पाता है तब वह यही तो अनुभव करता है कि ये प्रभु सूर्य के समान ज्योतिर्मय हैं । वेद प्रभु को ‘आदित्यवर्णम्'–सूर्य के समान वर्णवाला कहते हैं ।

    हे (अग्ने) = मुझे आगे ले-चलनेवाले प्रभो ! (विश्वेभिः अनीकै:) = आप इन सब तेजों से [अनीक= splendour] (सुमना:) = मुझे उत्तम मनवाला कीजिए। एक भक्त प्रभु का स्तवन करता है, सूर्य के समान ज्योतिर्मयरूप में उसे देखता है और प्रभु के तेज से उसके मन के सब मैल भस्म होकर उसका मन पवित्रता से चमक उठता है । 'प्रभु का तेज चमके और हृदय अपवित्र रहे' यह कभी सम्भव है ? भक्त प्रभु का स्तवन करता है, प्रभु उसके हृदयान्धकार को दूर करके उसके मन को ज्योतिर्मय करते हैं और भक्त ‘सुमना:' हो जाता है ।

    भावार्थ

    प्रभु-स्तोत्रों के गायन से मनुष्य 'सुमना: ' बनता है ।

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ परमात्मा प्रार्थ्यते।

    पदार्थः

    हे (अग्ने) जीवनाधार सर्वान्तर्यामिन् जगदीश ! त्वम् (एभिः) एतैः (अर्कैः) अर्चनसाधनैः वेदमन्त्रैः। [अर्को मन्त्रो भवति यदनेनार्चन्ति। निरु० ५।५] (नः अर्वाङ्) अस्मदभिमुखः (भव) जायस्व। त्वम् (स्वः न) सूर्य इव (ज्योतिः) ज्योतिःस्वरूपोऽसि। (सुमनाः) प्रसन्नमनाः त्वम् (विश्वेभिः) सर्वैः (अनीकैः२) सद्गुणसैन्यैः तेजोभिर्वा सह (नः अर्वाङ् भव) अस्मदभिमुखो भव ॥३॥३ अत्रोपमालङ्कारः ॥३॥

    भावार्थः

    यथा सूर्यः स्वरश्मिभिरस्मदभिमुखो जायते तथैव जगदीश्वरोऽखिलैः सद्गुणैस्तेजोभिश्चास्मान् प्राप्नुयात् ॥३॥ अस्मिन् खण्डे आनन्दधाराणां परमेश्वरस्य जीवात्मनो द्विजन्मनश्च विषयाणां वर्णनादेतत्खण्डस्य पूर्वखण्डेन संगतिर्वेद्या ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O Bounteous God, bright like the sunlight, through these our praises, come Thou to meet us, with all Thy beauties!

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    Meaning

    Agni, light and life of the world, majestic as the suns refulgent glory, good and loving at heart, in response to these our songs of praise and prayer and acts of piety, come straight and bless us with all your forces of protection and promotion and give us, lead us to, the success of our hearts desire. (Rg. 4-10-3)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (अग्ने) હે પરમાત્મન્ ! તું (नः एभिः अर्कैः अव) અમારા એ અર્ચનમંત્રો દ્વારા (नः अर्वाक् भव) અમારી તરફ આવ. (स्वः न ज्योतिः) સૂર્ય સમાન જ્યોતિ છે (विश्वेभिः अनीकैः सुमनाः) પોતાના સમસ્ત પ્રમુખ તેજોના દ્વારા સુમન અમારે માટે કલ્યાણ મનવાળો-કલ્યાણકારી બની જા. (૩)
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जसा सूर्य आपल्या किरणांसह आमच्यासमोर येतो, तसेच जगदीश्वर सर्व सद्गुणांसह व तेजासह आम्हाला प्राप्त व्हावा. ॥३॥ या खंडात आनंद-धारा, परमेश्वर, जीवात्मा व द्विजन्माच्या विषयांचे वर्णन असल्यामुळे या खंडाची पूर्व खंडाबरोबर संगती जाणावी

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