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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1794
    ऋषिः - वसिष्ठो मैत्रावरुणिः देवता - इन्द्रः छन्दः - विराडनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः काण्ड नाम -
    3

    उ꣣रुव्य꣡च꣢से म꣣हि꣡ने꣢ सुवृ꣣क्ति꣢मिन्द्रा꣢꣯य꣣ ब्र꣡ह्म꣢ जनयन्त꣣ वि꣡प्राः꣢ । त꣡स्य꣢ व्र꣣ता꣢नि꣣ न꣡ मि꣢नन्ति꣣ धी꣡राः꣢ ॥१७९४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ꣣रुव्य꣡च꣢से । उ꣣रु । व्य꣡च꣣से । म꣣हि꣡ने꣢ । सु꣣वृक्ति꣢म् । सु꣣ । वृक्ति꣢म् । इ꣡न्द्रा꣢꣯य । ब्र꣡ह्म꣢꣯ । ज꣣नयन्त । वि꣡प्राः꣢꣯ । वि । प्राः꣣ । त꣡स्य꣢꣯ । व्र꣣ता꣡नि꣢ । न । मि꣣नन्ति । धी꣡राः꣢꣯ ॥१७९४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उरुव्यचसे महिने सुवृक्तिमिन्द्राय ब्रह्म जनयन्त विप्राः । तस्य व्रतानि न मिनन्ति धीराः ॥१७९४॥


    स्वर रहित पद पाठ

    उरुव्यचसे । उरु । व्यचसे । महिने । सुवृक्तिम् । सु । वृक्तिम् । इन्द्राय । ब्रह्म । जनयन्त । विप्राः । वि । प्राः । तस्य । व्रतानि । न । मिनन्ति । धीराः ॥१७९४॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1794
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 9; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 11; मन्त्र » 2
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 20; खण्ड » 3; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में फिर परमात्मा और आचार्य का विषय कहा गया है।

    पदार्थ

    (उरुव्यचसे) विद्या आदि में बहुत व्याप्तिवाले (महिने) महान् (इन्द्राय) परमात्मा वा आचार्य के लिए अर्थात् उनकी प्रसन्नता के लिए (विप्राः) विद्वान् जन (सुवृक्त्तिम्) उत्तम क्रिया और (ब्रह्म) ज्ञान-सङ्ग्रह (जनयन्त) करते हैं। (धीराः) बुद्धिमान् वे (तस्य) उस परमात्मा वा आचार्य के (व्रतानि) नियमों को (न मिनन्ति) नहीं तोड़ते हैं ॥२॥

    भावार्थ

    बुद्धिमान् मनुष्यों को चाहिए कि वे परमात्मा और आचार्य से निर्धारित नियमों का सदैव पालन करें और उसके द्वारा प्रेय मार्ग और श्रेय मार्ग में अपनी उन्नति करें ॥२॥

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    पदार्थ

    (विप्राः) मेधावी उपासक (महिने-उरुव्यचसे-इन्द्राय) महान् तथा बहुत व्याप्त परमात्मा के लिये (सुवृक्तिं ब्रह्म जनयन्त) शोभन स्तुति३ को और प्रार्थना मन्त्र को४ प्रदर्शित करते हैं (तस्य व्रतानि) उसके कर्मों—नियमों को (धीराः) ध्यानीजन (न मिनन्ति) हिंसित नहीं करते हैं॥२॥

    विशेष

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    विषय

    प्रभु के व्रतों का पालन

    पदार्थ

    (वि-प्राः) = विशेषरूप से अपना पूरण करनेवाले [प्रा-पूरणे] लोग (उरुव्यचसे) = महान् विस्तारवाले, (महिने) = विशेष महत्त्ववाले (इन्द्राय) = परमैश्वर्यशाली प्रभु के लिए (सुवृक्तिम्) = जिसके द्वारा अन्यायाचरण व दु:खों का उत्तम वर्जन होता है [वृजी वर्जने] अथवा जिसके कारण जीवन की गति उत्तम होती है [व्रज गतौ], उस (ब्रह्म) = स्तोत्र को (जनयन्त) = उत्पन्न करते हैं ।

    गत मन्त्र में स्पष्ट कहा था कि अपनी महती उन्नति के लिए उस महान् प्रभु का सम्पर्क करो । प्रस्तुत मन्त्र में भी यही कहते हैं कि यदि अपने जीवन को विशेषरूप से पूरण करना चाहते हो, उसकी न्यूनताओं को दूर करना चाहते हो, यदि अपने जीवन से अन्यायाचरण को समाप्त करना चाहते हो तो प्रभु का स्तवन करो । यह प्रभु का स्तवन ‘सुवृक्ति' है— उत्तम प्रकार से दोषों को दूर करनेवाला है।

    यह जीवन के मार्ग को प्रशस्त बनानेवाला है [व्रज गतौ] । वे प्रभु महान् विस्तारवाले हैं, उनके स्तवन से स्तोता भी विशाल हृदयता को धारण करनेवाला होगा । वे प्रभु विशेष महिमावाले हैं – स्तोता भी महिमा को प्राप्त करेगा । वे प्रभु निरतिशय ऐश्वर्यवाले हैं, स्तोता भी परमैश्वर्य में भागी बनेगा। इन सब बातों का विचार करके (धीराः) = ज्ञान में विचरण व रमण करनेवाले पुरुष (तस्य) = उस प्रभु के (व्रतानि) = व्रतों को (न मिनन्ति) = कभी हिंसित नहीं करते । प्रभु ने वेद में जो आदेश दिये हैं ये उनका पालन करते हैं । ('मन्त्रश्रुत्यं चरामसि')='मन्त्रों में जैसा सुना है वैसा ही करते हैं', यह इनका निश्चय होता है ।

    भावार्थ

    धीर पुरुष सदा प्रभु से उपदिष्ट व्रतों का पालन करते हैं ।

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    विषय

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    भावार्थ

    (विप्राः) विद्वान् ब्राह्मण लोग (उरुव्यचसे) महान् ब्रह्माण्ड में व्यापक (महिने) बड़े भारी (इन्द्राय) परमात्मा की (सुवृक्तिम्) उत्तम स्तुतिरूप (ब्रह्म) वेद का (जनयन्त) ज्ञान करते हैं ! (धाराः) वे विद्यावान्, ध्यानवान् पुरुष (तस्य) उसके (व्रतानि) उपदेश किये नियमों को (न मिनन्ति) विनाश नहीं करते, उल्लंघन नहीं करते।

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—१ नृमेधः। ३ प्रियमेधः। ४ दीर्घतमा औचथ्यः। ५ वामदेवः। ६ प्रस्कण्वः काण्वः। ७ बृहदुक्थो वामदेव्यः। ८ विन्दुः पूतदक्षो वा। ९ जमदग्निर्भागिवः। १० सुकक्षः। ११–१३ वसिष्ठः। १४ सुदाः पैजवनः। १५,१७ मेधातिथिः काण्वः प्रियमेधश्चांगिरसः। १६ नीपातिथिः काण्वः। १७ जमदग्निः। १८ परुच्छेपो देवोदासिः। २ एतत्साम॥ देवता:—१, १७ पत्रमानः सोमः । ३, ७ १०-१६ इन्द्रः। ४, ५-१८ अग्निः। ६ अग्निरश्विानवुषाः। १८ मरुतः ९ सूर्यः। ३ एतत्साम॥ छन्द:—१, ८, १०, १५ गायत्री। ३ अनुष्टुप् प्रथमस्य गायत्री उत्तरयोः। ४ उष्णिक्। ११ भुरिगनुष्टुप्। १३ विराडनुष्टुप्। १४ शक्वरी। १६ अनुष्टुप। १७ द्विपदा गायत्री। १८ अत्यष्टिः। २ एतत्साम । स्वर:—१, ८, १०, १५, १७ षड्जः। ३ गान्धारः प्रथमस्य, षड्ज उत्तरयोः ४ ऋषभः। ११, १३, १६, १८ गान्धारः। ५ पञ्चमः। ६, ८, १२ मध्यमः ७,१४ धैवतः। २ एतत्साम॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ पुनरपि परमात्मन आचार्यस्य च विषय उच्यते।

    पदार्थः

    (उरुव्यचसे) विद्यादिषु बहुव्याप्तये (महिने) महते (इन्द्राय) परमात्मने आचार्याय च, तयोः प्रसादायेत्यर्थः (विप्राः) विद्वांसो जनाः (सुवृक्तिम्) शोभनां क्रियाम् (ब्रह्म) ज्ञानसंग्रहं च (जनयन्त) जनयन्ति। (धीराः) प्रज्ञावन्तः ते (तस्य) इन्द्रस्य परमात्मनः आचार्यस्य वा (व्रतानि) नियमान् (न मिनन्ति) न भञ्जन्ति ॥२॥२

    भावार्थः

    बुद्धिमद्भिर्जनैः परमात्मनाऽऽचार्येण च निर्धारिता नियमाः सदैव पालनीयास्तद्द्वारा च प्रेयोमार्गे श्रेयोमार्गे च स्वोन्नतिर्विधेया ॥२॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    The learned manifest through Veda the praise of God, the Sublime, the Far-pervading. The sages never violate His statutes.

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    Meaning

    To the great Indra, the ruler widely perceptive and all aware, vibrant people of the land, the learned and the wise with a sense of dynamism, all offer homage, rooting out dead wood, planting new saplings, generating new forms of sustenance and energy, and creating new forms of appreciating and realising the eternal spirit. And they, people of constancy and settled mind, never violate the laws and discipline of the lords Eternal Law. (Rg. 7-31-11)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (वः) હે ઉપાસકો ! (महे) તમે મહાન બનવા માટે (प्रचेतसे) પ્રકૃષ્ટ જ્ઞાનવાન સર્વજ્ઞ અને પ્રકૃષ્ટ ચેતનાવાળા (महे वृधे) મહાન વૃદ્ધિ કરનાર પરમાત્માને માટે (भरध्वम्) ઉપાસનારસ સમર્પિત કરો (सुमतिं प्रकृणुध्वम्) શ્રેષ્ઠ-શુભ સ્તુતિ કરો (चर्षणिप्राः) મનુષ્યોની કામનાઓને પૂર્ણ કરનાર પરમાત્મા (पूवीः विशः प्रचर) પોતાની શ્રેષ્ઠ ઉપાસક પ્રજાને અવશ્ય સંરક્ષણ પ્રદાન કરે છે. (૬)
     

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : પરમાત્મા મહાન, વૃદ્ધિ કરનાર, સર્વજ્ઞ, સાવધાન કરનાર છે. અમારા મહાન કલ્યાણને માટે ઉપાસનારસોથી તૃપ્ત કરીએ અને તેની શ્રેષ્ઠ સ્તુતિ કરવામાં આવે, તો તે મનુષ્યોનું પાલન કરનાર હોવાથી પોતાની શ્રેષ્ઠ ઉપાસક પ્રજાઓને અવશ્ય પ્રાપ્ત થાય છે. (૬)
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    बुद्धिमान माणसांनी परमात्मा व आचार्य यांनी निर्धारित नियमांचे सदैव पालन करावे व त्याद्वारे प्रेय मार्ग व श्रेयमार्गात आपली उन्नती करावी. ॥२॥

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