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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 190
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
    2

    क꣢ इ꣣मं꣡ नाहु꣢꣯षी꣣ष्वा꣢꣫ इन्द्र꣣ꣳ सो꣡म꣢स्य तर्पयात् । स꣢ नो꣣ व꣢सू꣣न्या꣡ भ꣢रात् ॥१९०

    स्वर सहित पद पाठ

    कः꣢ । इ꣣म꣢म् । ना꣡हु꣢꣯षीषु । आ । इ꣡न्द्र꣢꣯म् । सो꣡म꣢꣯स्य । त꣣र्पयात् । सः꣢ । नः꣣ । व꣡सू꣢꣯नि । आ । भ꣣रात् ॥१९०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    क इमं नाहुषीष्वा इन्द्रꣳ सोमस्य तर्पयात् । स नो वसून्या भरात् ॥१९०


    स्वर रहित पद पाठ

    कः । इमम् । नाहुषीषु । आ । इन्द्रम् । सोमस्य । तर्पयात् । सः । नः । वसूनि । आ । भरात् ॥१९०॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 190
    (कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 5; मन्त्र » 6
    (राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 8;
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में इन्द्र को सोमरस से तृप्त करने का विषय है।

    पदार्थ

    (नाहुषीषु) मानवीय प्रजाओं में (कः) कौन धन्य मनुष्य (इमम्) इस, गुणों के आधार (इन्द्रम्) परमात्मा, राजा, आचार्य एवं अतिथि आदि को (सोमस्य) सोम से अर्थात् श्रद्धा-रस, ज्ञान-रस, उपासना-रस, कर्म-रस, ब्रह्म-रस, क्षत्र-रस, ब्रह्मचर्य-रस, धर्म-रस, कीर्त-रस आदि से (आ तर्पयात्) चारों ओर से तृप्त करेगा, जिससे (सः) तृप्त किया हुआ वह (नः) हमारे लिए (वसूनि) सब प्रकार के ऐश्वर्यों को (आ भरात्) लाये ॥६॥ इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है ॥६॥

    भावार्थ

    परमेश्वर की उपासना, श्रद्धा, ज्ञान-संग्रह, कर्म, ब्रह्मचर्य, तपस्या, श्रम, धर्म, वैराग्य, व्रत-पालन आदि श्रेष्ठ आचारों से ही परमात्मा, राजा, आचार्य आदि प्रसन्न होते हैं और प्रचुर ऐश्वर्य प्रदान करते हैं ॥६॥

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    पदार्थ

    (नाहुषीषु) मानुषी प्रजाओं में—मनुष्यों में “नहुषः-मनुष्यनाम” [निघं॰ २.३] (कः-आ) कोई विरला जन मुमुक्षु “आः स्मरणे” (अव्ययार्थनिबन्धनम्) (इमम्-इन्द्रम्) इस ऐश्वर्यवान् परमात्मा को (सोमस्य) उपासनारस के समर्पण से (तर्पयात्) अपने ऊपर प्रसन्न कर सकता है—उसका कृपापात्र बन सकता है (सः) वह जो इन्द्र—परमात्मा (नः) हम सब मनुष्यों के लिये (वसूनि-आभरात्) नाना प्रकार के भोगधनों को प्रदान करता है।

    भावार्थ

    परमात्मा सामान्यतः हम सब मनुष्यों को सांसारिक भोगधनों को प्रदान करता है, परन्तु हम मनुष्यों में से कोई ही विरला मुमुक्षुजन होता है जो उपासनारस के समर्पण से परमात्मा को अपने ऊपर प्रसन्न करता है—प्रसन्न कर उसके आश्रय में रह अमृत सुख ब्रह्मानन्द एवं मोक्ष को प्राप्त करता है॥६॥

    विशेष

    ऋषिः—वामदेवः (वननीय उपास्य देव है जिसका ऐसा उपासनापरायण जन)॥<br>

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    विषय

    कौन भला कर सकता है?

    पदार्थ

    इस मन्त्र का ऋषि वामदेव है- सुन्दर दिव्य गुणोंवाला | दिव्य गुणोंवाला बनने के लिए ही उसने यह तत्त्व अपनाया है कि वह वीर्यरक्षा व ब्रह्मचर्य के द्वारा आत्मिक शक्ति का विकास करे। मानव प्रजाओं को 'नाहुषी' कहते हैं, क्योंकि ये अन्य प्राणियों की अपेक्षा आपस में अधिक सम्बद्ध हैं [नह बन्धने] । सन्तान माता-पिता पर देर तक आश्रित रहती है। व्यक्ति समाज पर आश्रित है। एक राष्ट्र अन्य की अपेक्षा करता है एवं, मानव प्रजाएँ 'नाहुषी' कहलाती हैं। वामदेव कहता है कि (नाहुषीषु) = इन मानव प्रजाओं में (कः) = कौन व्यक्ति (इन्द्रम्) = इन्द्र को-आत्मा को (सोमस्य आतर्पयात्) = सोम के द्वारा पूर्ण तृप्त करता है। सोम वीर्य-शक्ति का नाम है। आत्मिक शक्ति का तर्पण इसी से होता है। वैदिक साहित्य में सोमपान से इन्द्र के शक्तिशाली बनाने का भी यही अभिप्राय है। सोमपान के बिना इन्द्र असुरों को जीत नहीं सकता। वीर्यरक्षा हमारी सब बुरी भावनाओं को समाप्त कर देती है। सोमरक्षा से आत्मिक शक्तियों का विकास होता है और सः = इन आत्मिक शक्तियों के विकास करनेवाला ही (नः) = हमें (वसूनि आभरत्) = कुछ उत्तम वस्तु प्राप्त करा सकता है। जिसका जीवन संयमी है, वही लोकहित के कार्यों के करने में रुचि व सामर्थ्यवाला हो पाता है। संसार के सभी बड़े-बड़े सुधारक ब्रह्मचारी हुए। जिन्होंने जितनी मात्रा में इसके महत्त्व को समझ जीवन में परिणत किया, वे उतने ही लोकहित के कार्य कर पाये ।

    भावार्थ

    हम सोमपान के द्वारा आत्मिक शक्ति का विकास करें और लोकहित में प्रवृत्त हों।

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    विषय

    परमेश्वर की स्तुति

    भावार्थ

    भा० = ( इमम् इन्द्रम् ) = इस इन्द्र आत्मा को ( नहुषीषु १  ) = कर्म-बन्धन में बंधी मनुष्य प्रजाओं में ( सोमस्य ) = गुण-कर्त्तिन और ज्ञान-सम्पादन द्वारा ( क:तर्पयात् ) = कौन तृप्त कर सकता है ? अथवा ( कः ) = सुखमय प्रजापति ही ( सः ) = वह परमेश्वर ही ( नः ) = हमारे ( वसूनि ) = ज्ञानों और ऐश्वर्यों को ( आभरात् ) = सदा प्रदान करे । 
    अजरामरवत् प्राज्ञः विद्यामर्थं च चिन्तयेत् । (स्फुट)


     

    टिप्पणी

     १. नहुष इति मनुष्यनाम ( नि० २ । ३) नह्यन्तेः कर्मभिः पूर्वकृतैः ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

     

    ऋषिः - वामदेवो :।

    देवता - इन्द्रः।

    छन्दः - गायत्री।

    स्वरः - षड्जः। 

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथेन्द्रस्य सोमरसतर्पणविषयमाह।

    पदार्थः

    (नाहुषीषु) मानुषीषु प्रजासु। नहुष इति मनुष्यनाम। निघं० २।३। नह्यन्ते बध्यन्ते कर्मपाशैरिति नहुषाः१ मनुष्याः। णह बन्धने पृनहिकलिभ्य उषच्। उ० ४।७५ इति उषच् प्रत्ययः। (कः) को धन्यो जनः (इमम्) एतम् गुणगणाधारम् (इन्द्रम्) परमात्मानं, राजानम्, आचार्यम्, अतिथिं वा (सोमस्य) सोमेन श्रद्धारसेन, ज्ञानरसेन, उपासनारसेन, कर्मरसेन, ब्रह्मरसेन, क्षत्ररसेन, ब्रह्मचर्यरसेन, धर्मरसेन, यशोरसेन वा। अत्र तृतीयार्थे षष्ठी प्रयुक्ता। (आ तर्पयात्) समन्तात् तर्पयिष्यति, येन (सः) तर्पितोऽसौ (नः) अस्मभ्यम् (वसूनि) सर्वविधानि ऐश्वर्याणि (आ भरात्) आहरेत्। तर्पयात्, भरात् इत्युभयत्रापि क्रमेण तृप तृप्तौ, हृञ् हरणे धातोर्लेटि, लेटोऽडाटौ। अ० ३।४।९४ इत्याडागमः। भरात् इत्यत्र हृग्रहोर्भश्छन्दसि इति वार्तिकेन हस्य भः ॥६॥ अत्र श्लेषालङ्कारः ॥६॥

    भावार्थः

    परमेश्वरोपासनया, श्रद्धया, ज्ञानसंग्रहेण, कर्मणा, ब्रह्मचर्येण, तपसा, श्रमेण, धर्मेण, वैराग्येण, व्रतपालनेन इत्यादिभिः शुभाचरणैरेव परमात्मनृपत्याचार्यप्रभृतयः सर्वेऽपि प्रसीदन्ति पुष्कलमैश्वर्यं च प्रयच्छन्ति ॥६॥

    टिप्पणीः

    १. नहुषः शुभाशुभकर्मबद्धो मनुष्यः इति ऋ० १।२२।८ भाष्ये द०। नहुष इति मनुष्यनाम, तेषु भवाः ज्योतिष्टोमाद्याः क्रियाः नाहुष्यः—इति वि०। मानुषीषु प्रजासु—इति भ०।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Who amidst mortals, bound by the ties of action, can gratify the soul with knowledge. God alone grants us the wealth of knowledge.

    Translator Comment

    $ Griffith considers Nahusha to be a tribe, apparently different from the five great Aryan tribes and dwellers on or near the Indus ? This is absurd as there is no history in the Vedas नहुष इति मनुष्यनाम् निषः 2।3।6 नहुष means man vide Nighantu.

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    Meaning

    Who in this bounden humanity can regale and surfeit this Indra with the soma of surrender and adoration None. May the lord of boundless abundance bring us wealth, honour and excellence of life.

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (नाहुषीषु) માનુષી પ્રજાઓમાં - મનુષ્યોમાં (कः आ) કોઈ વિરલ મનુષ્ય મુમુક્ષુ (इमम् इन्द्रम्) એ ઐશ્વર્યવાન પરમાત્માને (सोमस्य) ઉપાસનારસનાં સમર્પણ દ્વારા (तर्पयात्) પોતાની ઉપર પ્રસન્ન કરી શકે છે - તેનો કૃપાપાત્ર બની શકે છે (सः) તે જે ઇન્દ્ર પરમાત્મા (नः) અમને સર્વ મનુષ્યોને માટે (वसूनि आभरात्) વિવિધ પ્રકારના અનેક ભોગ ધનોને પ્રદાન કરે છે. (૬)

     

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : પરમાત્મા સામાન્ય રીતે અમને સર્વે મનુષ્યોને સાંસારિક ભોગ ધનો પ્રદાન કરે છે , પરંતુ અમારા મનુષ્યોમાંથી કોઈ વિરલો મુમુક્ષુજન હોય છે કે , જે ઉપાસનારસનાં સમર્પણ દ્વારા પરમાત્માને પોતાની ઉપર પ્રસન્ન કરે છે ; પ્રસન્ન કરી તેના આશ્રયમાં રહી અમૃતસુખ બ્રહ્માનંદ અને મોક્ષને પ્રાપ્ત કરે છે. (૬)

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    उर्दू (1)

    Mazmoon

    بھگتی کی بھینٹ سے پَرسن ہو بھگوان جھولی بھر دیتے ہیں!

    Lafzi Maana

    (ناہُشی شُو) کرم کے بندھنوں میں جکڑی ہوئی پرجاؤں میں (کاہ) کون سا ایسا بھگت اُپاسک ہے جو کہ (اِمم اِندرم) اس پرمیشور کو (سومیہ) بھگتی رس بھینٹوں کے ذریعہ (ترپیات) تِرپت کر دیتا ہے، اپنے پر خوش کر دیتا ہے۔ جس سے پرسّن ہو کر (سہ نہ وسونی آبھرت) وہ بھگوان ہمیں کثرتِ زر و مال سے بھر دیتا ہے۔

    Tashree

    کون ہے وہ خوش نصیب بھینٹ بھگتی کرتا جو؟ اور اِس سے خُوش پربُھو عابد کی جھولی بھرتا ہو؟

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    परमेश्वराची उपासना, श्रद्धा, ज्ञानसंग्रह, कर्म ब्रह्मचर्य, तप, श्रम, धर्म, वैराग्य, व्रतपालन इत्यादी श्रेष्ठ आचारणानेच परमात्मा, राजा, आचार्य इत्यादी प्रसन्न होतात व प्रचुर ऐश्वर्य प्रदान करतात. ॥६॥

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    विषय

    पुढील मंत्रात इंद्राला सोमरसाद्वारे तृप्त करण्याविषयी म्हटले आहे -

    शब्दार्थ

    (नाहुषीषु) सांगा बरे ! आम्हा सामाजिक जनांमध्ये (कः) कोण तो धन्य माणूस आहे ? उत्तर - धन्य तो आहे की जो (इमम्) गुणांचा आधार असलेल्या या (इन्द्रम्) परमेश्वर, राजा, आचार्य, अतिथी आदींना (सोमस्य) सोमद्वारे म्हणजे श्रद्धारसाने / ज्ञान रसाने वा उपासनारूप रसो, कर्म रसाने, ब्रह्मरसाने अथवा ब्रह्मचर्य, धर्म, कीर्ती आदी रसाने (आतर्पयात्) पूर्णतः तृप्त वा संतुष्ट करतो. त्याच्या उपासनादी कर्माने तृप्त झालेला इन्द्र (परमेश्वर, राजा, आचार्य) (नः) आमच्यासाठी (वसूनि) सर्व प्रकारची ऐश्वर्य- संपदा (आभरात्) घेऊन येतो. ।। ६।।

    भावार्थ

    उपासना, श्रद्धा, ज्ञान संग्रह, कर्म, ब्रह्मचर्य, तप, श्रम, धर्म, वैराग्य, व्रत पालन आदी श्रेष्ठ आचरण कर्मानेच परमात्मा, राजा वा आचार्य आदी प्रसन्न होतात (त्यामुळे मनुष्याने तसे आचरण ठेवावे) ।। ६।।

    विशेष

    या मंत्रात श्लेष अलंकार आहे.।। ६।।

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    तमिल (1)

    Word Meaning

    [1](நாஹுஷர்களில்) எவன் இந்த (இந்திரனை சோமனால்) (நல்ல செயலால்) திருப்தி செய்கிறானோ அவன் எங்களுக்கு ஐசுவரியங்களைக் கொண்டு வருவான்.

    FootNotes

    [1].நாஹுஷர்களில் - மனிதர்களில்

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