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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 403
ऋषिः - सौभरि: काण्व:
देवता - इन्द्रः
छन्दः - ककुप्
स्वरः - ऋषभः
काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
3
त्व꣡या꣢ ह स्विद्यु꣣जा꣢ व꣣यं꣡ प्रति꣢꣯ श्व꣣स꣡न्तं꣢ वृषभ ब्रुवीमहि । स꣣ꣳस्थे꣡ जन꣢꣯स्य꣣ गो꣡म꣢तः ॥४०३॥
स्वर सहित पद पाठत्व꣡या꣢꣯ । ह꣣ । स्वित् । युजा꣢ । व꣣य꣢म् । प्र꣡ति꣢꣯ । श्व꣣स꣡न्त꣢म् । वृ꣣षभ । ब्रुवीमहि । सँस्थे꣢ । स꣣म् । स्थे꣢ । ज꣡न꣢꣯स्य । गो꣡म꣢꣯तः ॥४०३॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वया ह स्विद्युजा वयं प्रति श्वसन्तं वृषभ ब्रुवीमहि । सꣳस्थे जनस्य गोमतः ॥४०३॥
स्वर रहित पद पाठ
त्वया । ह । स्वित् । युजा । वयम् । प्रति । श्वसन्तम् । वृषभ । ब्रुवीमहि । सँस्थे । सम् । स्थे । जनस्य । गोमतः ॥४०३॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 403
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 2; मन्त्र » 5
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 6;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 2; मन्त्र » 5
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 6;
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भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
अगले मन्त्र में यह वर्णित है कि इन्द्र को सहायक पाकर हम क्या करें।
पदार्थ
हे (वृषभ) मनोरथों को पूर्ण करनेवाले परमात्मन् ! (गोमतः जनस्य) ज्ञान-किरणों अथवा अध्यात्म-किरणों से युक्त आत्मा के (संस्थे) उपासना-यज्ञ में अथवा देवासुरसंग्राम में (श्वसन्तम्) हमारी हिंसा करने के लिए तैयार व्याधि, स्त्यान, संशय, प्रमाद, आलस्य आदि तथा दुःख, दौर्मनस्य आदि विघ्न-समूह का (त्वया ह स्वित्) तुझ ही (युजा) सहायक के द्वारा, हम (प्रति ब्रुवीमहि) प्रतिकार करें ॥ राज-प्रजा पक्ष में भी योजना करनी चाहिए। गोपालक प्रजाजनों की गौओं को चुराने का यदि कोई प्रयत्न करे, तो राजकीय सहायता से युद्ध में उसका प्रतिकार करना उचित है ॥५॥ इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है ॥५॥
भावार्थ
अध्यात्म-प्रकाश से युक्त आत्मा को जो पुनः मोहान्धकार में डालना चाहते हैं, उनका परमेश्वर की सहायता से बलपूर्वक प्रतिरोध करना चाहिए। इसी प्रकार गो-सेवकों की गायों का वध करने की जो चेष्टा करते हैं, उन पर राजदण्ड और प्रजादण्ड गिराना चाहिए ॥५॥
पदार्थ
(वृषभ) हे सुखवर्षक परमात्मन्! (त्वया युजा स्वित्-ह) निश्चित तुझ से युक्त होने वाले के साथ ही (श्वसन्तं प्रति ब्रुवीमहि) श्वास लेते हुए जैसे प्रबल पाप का प्रतिवाद करते हैं (गोमतः-जनस्य संस्थे) स्तुति वाणी वाले जन के संस्थान—ध्यान में बैठकर।
भावार्थ
स्तुति करने वाले उपासक के ध्यानासन पर बैठ ध्यान जमाकर तेरे से योग कर प्रबल पाप का भी प्रतिवाद प्रतीकार कर सकते हैं, अतः परमात्मा का ध्यान करना चाहिए॥५॥
विशेष
ऋषिः—सौभरिः (परमात्मस्वरूप को अपने अन्दर भली-भाँति भरण धारण करने से सम्पन्न)॥<br>
विषय
जितेन्द्रियों के सम्पर्क में
पदार्थ
प्रभु ने सोमपान के लिए आमन्त्रण दिया। सोभरि उस आमन्त्रण को सुनकर अनुभव करता है कि इस आमन्त्रण के स्वीकार में सबसे बड़ा विघातक 'काम' है। उसे पराजित करना भी तो उसके लिए सुगम नहीं है, अतः वह प्रभु से प्रार्थना करता है कि (ह स्विद्) = निश्चयपूर्वक (त्वया) = आप-से (युजा) = साथी से मिलकर (वयम्) = हम (वृषभ) = शक्तिशालिन् व सुखों की वर्षा करनेवाले प्रभो! (श्वसन्तम्) = इस फँकार मारते हुए, बल के दर्पवाले इस कामरूप शत्रु को (प्रतिब्रुबीहिं) = युद्ध के लिए ललकार दें। उसके आह्वान का ठीक प्रत्युत्तर दे दें। हे प्रभो! आपकी सहायता के बिना मेरे लिए इसे जीत सकना सम्भव नहीं। इसे जीते बिना मेरे लिए सोमपान के आमन्त्रण का स्वीकार भी तो असम्भव है।
हाँ, आपकी निराकारता मुझ निराकारता मुझ घबराये हुए के लिए एक बड़ी समस्या उपस्थित कर देती है। मैं आप के पीछे आऊँ भी तो कैसे? देखूँ, तभी तो। न आपको देख पाता हूँ, और न आपका अनुगामी बन पाता हूँ। ऐसी स्थिति में इसका एक ही हल है और वह यह कि मैं उन व्यक्तियों का अनुगामी बनूँ जो कि आपका साक्षात्कार करके आपके पीछे आ रहे हैं। (गोमतः) = प्रशस्त इन्द्रियोंवाले (जनस्य) = लोगों के (संस्थे) = साथ मिलकर ठहरने में ही मेरा कल्याण है। ये लोग आप तक पहुँचेंगे तो इनके पीछे चलता हुआ मैं भी आप तक क्यों न पहुँचूँगा? आपकी छत्रछाया रहते हुए ये कामादि वासनाओं से आक्रान्त नहीं होते तो इनकी छत्रछाया मुझे भी इस आक्रमण से बचाएगी ही। वे निराकार के उपासक हैं तो मैं निराकार के इन साकार उपासकों का साकार उपासक हूँ। आपके सङ्ग से ये तरेंगे, और इनके सङ्ग मैं भी। हे प्रभो! आपकी कृपा से इन प्रशस्तेन्द्रिय, विकासशील सन्तों का सम्पर्क पाकर, कामादि को जीतकर मैं आपके सोमपान के आमन्त्रण को स्वीकार करनेवाला बनूँ। तभी तो मैंने इस अपने जीवन के कर्तव्य का सुभरण किया होगा।
भावार्थ
मैं सदा प्रशस्तेन्द्रिय सन्तों के सम्पर्क में रहनेवाला बनूँ।
विषय
"Missing"
भावार्थ
भा० = हे ( वृषभ ! ) = सर्वश्रेष्ठ ! ( त्वया ह स्विद् ) = तुझे ही ( युजा ) = सहायक द्वारा ( गोमतः ) = वाणी से सम्पन्न ( जनस्य ) = पुरुषों के ( संस्थे ) = संघ में ( श्वसन्तं प्रति ) = श्वास लेते हुए प्राणी के प्रति ( ब्रवीमहि ) = तेरी स्तुति करते हैं ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः - सौभरि:।
देवता - इन्द्रः।
छन्दः - ककुप्।
स्वरः - ऋषभः।
संस्कृत (1)
विषयः
अथेन्द्रं सहायं लब्ध्वा वयं किं कुर्यामेत्याह।
पदार्थः
हे (वृषभ) कामवर्षिन् परमात्मन् ! (गोमतः जनस्य) ज्ञानकिरणैः अध्यात्मकिरणैर्वा युक्तस्य जीवात्मनः (संस्थे२) उपासनायज्ञे देवासुरसंग्रामे वा। संतिष्ठन्ते हविष्प्रदानाय जना यत्र स संस्थो यज्ञः, यद्वा संतिष्ठन्ते जनाः परस्परं प्रहरणाय यत्र स संस्थः संग्रामः। (श्वसन्तम्) जिघांसन्तं व्याधिस्त्यानसंशयप्रमादालस्यादिकं दुःखदौर्मनस्यादिकं च विघ्नसमूहम्। श्वसितिः हन्तिकर्मा। निघं० २।१९। (त्वया ह स्वित्) त्वयैव खलु (युजा) सहायेन (वयम्) त्वदुपासकाः (प्रति ब्रुवीमहि) प्रत्युत्तरं दद्याम, प्रतिकुर्याम इत्यर्थः ॥ राजप्रजापक्षेऽपि योजनीयम्। गोमतः प्रजाजनस्य गा अपहर्तुं यदि कश्चित् प्रयतते तर्हि राजसाहाय्येन युद्धे तत्प्रतीकारो विधेयः ॥५॥ अत्र श्लेषालङ्कारः ॥५॥
भावार्थः
अध्यात्मप्रकाशयुक्तमात्मानं ये पुनर्मोहान्धकारे पातयितुमुद्युञ्जते ते परमेश्वरस्य साहाय्येन बलात् प्रतिरोद्धव्याः, तथैव गोसेवकानां गा हन्तुं ये चेष्टन्ते तेषामुपरि राजदण्डः प्रजादण्डश्च पातनीयः ॥५॥
टिप्पणीः
१. ८।२१।११। २. संतिष्ठन्ते यत्र योद्धारः स संस्थः संग्रामः, तस्मिन्। जनस्य गोमतः गोषु ह्रियमाणासु चोरैः सह यः संग्रामः तस्मिन् कृते हन्याम इत्यर्थः—इति वि०। संस्थे संस्थाने युद्धे इत्यर्थः—इति भ०। संस्थे स्थाने युद्धे—इति सा०।
इंग्लिश (2)
Meaning
O God, the Bestower of knowledge, with Thee for friend, we magnify Thee, in the company of the learned persons, unto living beings!
Meaning
By you alone as our friend and comrade, O lord almighty, generous giver, can we counter a gasping contestant in this settled world order of humanity full of lands and cows, blest as we are with the light of knowledge and culture. (Rg. 8-21-11)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (वृषभ) હે સુખની વર્ષા કરનાર પરમાત્મન્ ! (त्वया युजा स्वित् ह) નિશ્ચિત તારાથી યુક્ત થનારની સાથે જ (श्वसन्तं प्रति ब्रुवीमहि) શ્વાંસ લેતાં જેમ પ્રબળ પાપનો પ્રતિવાદ કરીએ છીએ (गोमतः जनस्य संस्थे) સ્તુતિ વાણી વાળા જનના સંસ્થાન ધ્યાનમાં બેસીને. (૫)
भावार्थ
ભાવાર્થ : સ્તુતિ કરનાર ઉપાસકનાં ધ્યાનાસન પર બેસીને, ધ્યાન ધરીને, તારાથી યોગ કરીને-જોડાઈને પ્રબળ પાપનો પણ પ્રતિવાદ, પ્રતિકાર કરી શકીએ છીએ, તેથી પરમાત્માનું ધ્યાન કરવું જોઈએ. (૫)
उर्दू (1)
Mazmoon
ہمیشہ آپ کے ساتھ ہی جُڑے رہیں!
Lafzi Maana
سُکھ کی ورشا کرنے والے بھگوان! ہم آپ کے ساتھ ہی ہمیشہ جُڑی رہیں، تاکہ پاپوں کے پھنکارتے ہوئے سانپوں کا مقابلہ کر سکیں، اور یہ تب ہو گا جگت پتا پرمیشور! جب ہمارے ہردیوں میں آپ کا آسن جما رہے اور ہمیں ہر سمے تیرا ہی دھیان رہے۔
Tashree
آپ جب ہوں ساتھ ہمارے بدیوں سے پھر ڈرناک یا، آپ کے ہی واسطے ہردیہ میں ہے آسن بچھا۔
मराठी (2)
भावार्थ
अध्यात्म प्रकाशाने युक्त आत्म्याला जे पुन्हा मोहांधकारात लिप्त करू इच्छितात, त्यांचा परमेश्वराच्या साह्याने बलपूर्वक प्रतिकार केला पाहिजे. त्याचप्रकारे गो-सेवकांच्या गाईंचा जे वध करण्याचा प्रयत्न करतात त्यांच्यावर राजदंड व प्रजादंडाचा प्रहार केला पाहिजे ॥५॥
विषय
इंद्राचे साह्य मिळवून आम्ही काय करावे -
शब्दार्थ
हे (वृषभ) मनोरथ पूर्ण करणाऱ्या परमेश्वरा, (गोमतः) (जनस्य) ज्ञान- किरणे वा अध्यात्म किरणांनी युक्त आत्म्याद्वारे केल्या जाणाऱ्या या (संस्थे) उपासना- यज्ञात अथवा हृदयातील देवासुर- संग्रामात (श्वसन्तम्) आमची हिंसा करण्यासाठी तत्पर अशा व्याधी, स्त्यान, संश, प्रमाद, आलस्य आदींचा तसेच दुःख, दौर्मनस्य आदी विघ्न समूहांचा (त्वया) (ह) (स्वित्) तुझ्यासारख्या सहाय्यकाच्या मदतीने आम्ही (उपासका गण) (प्रति ब्रीवीमहि) प्रतिकार करू.।। या मंत्राचा राजापर अर्थही करावा. अर्थ असा सावी की गोपालक प्रजाजनांच्या गायी चोरण्याचा जर कोणी यत्न केला, तर राजाकडून मदत घेऊन गोपालकांनी चोरांचा प्रतिकार केला पाहिजे.।। ५।।
भावार्थ
आध्यात्मिक आंतरिक प्रकाशाला जो दोषादी समूह पुनः मोहान्घकारात ढकलू इच्छितात, त्या काम - क्रोधादी दोषांना उपासकाने परमेश्वराने दिलेल्या आत्मिक शक्तीने यथाशक्ती प्रतिरोध केला पाहिजे. त्याचप्रमाणे गौ - सेवकांच्या गायींचा वध करण्याचा जे हिंसक जन यत्न करतात, त्यांना राजाने व प्रजेने दंडित केले पाहिजे.।। ५।।
विशेष
या मंत्रात श्लेष अलंकार आहे.।। ५।।
तमिल (1)
Word Meaning
வர்ஷிப்பவனே! பசுக்களோடான சனங்களின் போரிலே கோபத்தால் பெருமூச்சுவிடும் மனிதனை உன் நட்பினால் நாங்கள் எதிர்க்கட்டும்.
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